Ashok Gehlot के सियासी कदम और हालातों की नब़्ज टटोलते निर्दलीय विधायक

राजस्थान में गैर-कांग्रेसी और गैर-भाजपा दलों के 13 में से 10 निर्दलीय विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के समर्थक और बेहद खास सियासी सिपहसालार हैं। पहले पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट (Sachin Pilot) के साथ सीएम गहलोत के झगड़े में, ये विधायक अक्सर उन्हें बढ़त देते रहे है, लेकिन अब ये सभी अनिश्चित राजनीतिक भविष्य की ओर देख रहे होंगे क्योंकि गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने पर सीएम पद छोड़ना पड़ सकता है। जब पायलट की बात आती है तो अब इन गहलोत समर्थक निर्दलीय विधायकों के सुर बदले बदले से दिखायी दे रहे है। सचिन राजस्थान के लिये कांग्रेस नेतृत्व की पहली पसंद है, जिन्हें संभवत: मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के लिये कह दिया गया है।

निर्दलीय विधायकों (Independent Legislators) ने साल 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद गहलोत को सीएम के रूप में चुने जाने में अहम भूमिका निभायी, जिन्होनें कांग्रेस को 100 के बहुमत के आंकड़े से आगे का समर्थन दिया। इनमें से ज्यादातर कांग्रेस के पूर्व नेता हैं, और यहां तक ​​कि केंद्रीय मंत्री भी हैं, जिन्होनें कांग्रेस टिकट ना पाने की हालात में खफ़ा होकर बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ा था।

गहलोत समर्थक निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन करने का वादा तभी किया जब 71 वर्षीय को अशोक गहलोत सीएम बनाया गया। इसी वजह से सचिन पायलट के सपनों पर पानी फिर गया और उन्हें डिप्टी सीएम की कुर्सी से ही समझौता करना पड़ा। साल 2020 में जब पायलट ने गहलोत और पार्टी से बगावत की तो इन विधायकों ने फिर सीएम गहलोत का पक्ष लिया, और सभी कांग्रेस विधायकों के साथ होटल और रिसॉर्ट में रहे, जबकि पायलट और उनके 18 विधायकों के गुट ने एक महीने से ज़्यादा वक्त तक दिल्ली और हरियाणा (Delhi and Haryana) में डेरा डाले रखा। इस साल हुए राज्यसभा चुनाव में निर्दलीय विधायकों ने भी कांग्रेस को वोट दिया।

इस गुट के बीच गहलोत को मिलने वाले समर्थन का स्तर देखते हुए राजनीतिक विश्लेषकों को बड़ी हैरानगी नहीं हुई। जब सिरोही के विधायक संयम लोढ़ा (Sirohi MLA Sanyam Lodha) ने हाल ही में कहा कि मुख्यमंत्री को कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर भी अपने पद पर बने रहने की मंजूरी दी जानी चाहिये। लोढ़ा जो कि सीएम गहलोत के सलाहकार भी हैं, ने मीडिया से कहा कि, “इंदिरा जी, राजीव जी, नरसिम्हा राव जी, सभी कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधान मंत्री दोनों रहे। राजस्थान के मौजूदा हालातों में मैं कहना चाहूंगा कि अशोक गहलोत साहब ने चार साल में बेहतरीन काम किया है। उन्होंने गरीबों के कल्याण के लिये योजनाएं शुरू कीं और अभूतपूर्व विकास कार्य किये… उनके चेहरे पर ही कांग्रेस को इन कामों से फायदा मिल सकता है। मुझे लगता है कि उन्हें मुख्यमंत्री बने रहना चाहिये और कांग्रेस का भी नेतृत्व करना चाहिये।

गहलोत ने बीते गुरूवार (23 सितम्बर 2022) को कहा कि हालांकि कांग्रेस पार्टी की उदयपुर घोषणा में तय “एक व्यक्ति, एक पद” का सिद्धांत मनोनीत पदों के लिये था, ना कि उन पदों के लिये जिनके लिए चुनाव होते हैं, दो पदों पर रहने वाला चयनित व्यक्ति कांग्रेस अध्यक्ष पद के साथ न्याय करने में सक्षम हो तो उस पर विचार किया जाना चाहिये।

लोढ़ा सिरोही से तीन बार के विधायक रह चुके हैं। साल 2018 में वो उन दिग्गज नेताओं में से थे जिन्हें कांग्रेस ने चुनावी टिकट नहीं दिया था। उस समय सचिन पायलट ने राज्य कांग्रेस इकाई का नेतृत्व किया और युवा उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से कुछ की पृष्ठभूमि छात्र राजनीति से जुड़ी हुई थी, लेकिन सचिन पायलट का ये दांव उल्टा पड़ गया।

लोढ़ा ने चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार और भाजपा के मौजूदा मंत्री ओटाराम देवासी (Otaram Dewasi) को हराया, जिन्होंने पहले गौ कल्याण मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। गहलोत के खेमे में अन्य निर्दलीय विधायकों में पूर्व केंद्रीय मंत्री और खंडेला के विधायक महादेव सिंह खंडला, शाहपुरा के विधायक आलोक बेनीवाल जो कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता और गुजरात की पूर्व राज्यपाल कमला बेनीवाल के बेटे है, गंगापुर के विधायक रामकेश मीणा और थानागाजी के विधायक कांति प्रसाद खासतौर से शामिल है।

13 निर्दलीय विधायकों में से तीन के सचिन पायलट के साथ करीबी सियासी तालुक्कात हैं, इनमें ओम प्रकाश हुडला, खुशवीर सिंह और सुरेश टाक शामिल है। गहलोत अब कांग्रेस के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिये पूरी तरह तैयार हैं और पार्टी नेतृत्व ने अगले सीएम के लिये सचिन पायलट का नाम पर एकमत राय रखती है। डिप्टी सीएम पद के लिये के लिये दूदू विधायक बाबूलाल नागर (Babulal Nagar) का नाम सामने आ रहा है, जो कि गहलोत के सलाहकारों और कट्टर समर्थकों में से एक हैं।

खास बात ये है कि हाल ही में पिछले हफ्ते एक जनसभा में उन्होनें ये कहकर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था कि “राजीव गांधी अमर रहे” और “अशोक गहलोत जिंदाबाद” के अलावा अगर किसी ने और कोई नारा लगाया तो उसे सीधे जेल होगी। खास बात ये कि उन्होनें ये बात कांग्रेस के मंत्री गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला (Gurjar leader Kirori Singh Bainsla) के अस्थी विसर्जन के बाद कही। इस कार्यक्रम में सचिन पायलट जिंदाबाद का नारे लगे थे और मंच पर पायलट समर्थकों ने जूते और बोतलें फेंकी थी।

लेकिन हाल ही में बाबूलाल नागर के सुर बदले बदले से सुनायी दिये, उन्होनें हाल ही में मीडिया से कहा कि- “पायलट राजस्थान के युवा नेता हैं। उनके सामने लंबा राजनीतिक जीवन है। उनका अपना खास व्यक्तित्व है और इसलिए मुझे लगता है कि कोई भी उनकी संख्या (अंक) को कम या बढ़ा नहीं सकता है। उनमें काबिलियत है और उसी के मुताबिक वो राजनीति कर रहे हैं। मैंने उन्हें उस समय देखा है, जब वे राजनीति में नहीं थे। मैं राजेश पायलट जी (सचिन के पिता) का कट्टर समर्थ (कट्टर समर्थक) और वफादार कार्यकर्ता रहा हूं।

सह-संस्थापक संपादक : राम अजोर

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