विपक्षी एकता की राह तैयार करते Nitish Kumar, बुनेगें कई सियासी समीकरणों का ताना-बाना

मोदी सरकार की ओर से दिल्ली सरकार को सेवाओं की बागडोर सौंपने के सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 11 मई के फैसले को रद्द करने के लिये अध्यादेश जारी करने के बामुश्किल दो दिन बाद बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) सुप्रीमो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) नई दिल्ली पहुँचे, जहां उन्होनें सीएम और आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) से मुलाकात की और मोदी सरकार के साथ चल रहे ने आमने-सामने के मुकाबले में उन्हें पूरा समर्थन देने की बात कहीं।

नीतीश कुमार को इस महीने की शुरुआत में तब झटका लगा था, जब पटना हाई कोर्ट ने उनकी महागठबंधन सरकार की ओर से शुरू किये गये जाति सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी। रोक हटाने से इनकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते कहा कि उच्च न्यायालय ने मामले को 3 जुलाई को सुनवाई के लिये रखा है, अगर उच्च न्यायालय किसी वज़ह से इस पर सुनवाई नहीं करता है तो सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के सामने 14 जुलाई को इस मामले को उठाया जायेगा।

साल 2024 के लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा से टक्कर लेने के लिये विपक्षी एकता के अपने प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिये नीतीश, जिन्होंने संघीय ढांचे को कमजोर करने के लिये केंद्र को शायद ही कभी बख्शा हो, अब उन्होनें दिल्ली सरकार के खिलाफ आये अध्यादेश के खिलाफ खुद को भी इस मामले से जोड़ लिया है। इस मुद्दे ने नीतीश को विपक्षी दलों के खिलाफ प्रतिशोध की राजनीति पर भाजपा सरकार के खिलाफ लड़ाई में विपक्षी एकता को एक नया हथियार दे दिया।

जैसा कि कर्नाटक विधानसभा चुनावों (Karnataka Assembly Elections) में शानदार जीत से कांग्रेस को नया आत्मविश्वास मिला है, नीतीश ने इसे अनुमानित जीत कहकर कम करके आंकने की कोशिश की।

बिहार के आठ बार के नीतीश कुमार सीएम नहीं चाहते थे कि कांग्रेस की जीत उनकी पार्टी के मिशन नीतीश 2024 के लिये आगे आये और उनके सियासी कद को कम कर दे। ये अलग बात है कि नीतीश इस बात पर अड़े रहे हैं कि वो प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल नहीं हैं और उनका मौजूदा लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ साल 2024 के महामुकाबले के लिये गैर-बीजेपी दलों की ज्यादा से ज्यादा तादाद को एक मंच पर लामबंद करना है, जहां नेतृत्व की भूमिका में कांग्रेस होगी।

विपक्षी एकता परियोजना को और रफ्तार देने के लिये बीते सोमवार (22 मई 2023) नीतीश ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी से मुलाकात की।

नीतीश ने ये भी सुनिश्चित किया कि उनके साथ उनके डिप्टी सीएम, राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव, कांग्रेस नेताओं समेत केजरीवाल से लेकर बंगाल की सीएम और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और सपा अध्यक्ष तक देश भर के आला विपक्षी नेताओं के साथ उनकी ज्यादातर बैठकों के दौरान विपक्षी एकता को लेकर रोडमैप तैयार हो। इसी क्रम में नीतीश कुमार ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार और शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को भी खास तव्ज़जों दी है।

तेजस्वी को अपने पक्ष में रखना नीतीश की 2024 की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा और उनकी आकांक्षाओं के बंटवारे को साफ ज़ाहिर करता है, क्योंकि वो पहले ही मान चुके हैं कि बिहार 2025 के विधानसभा चुनावों में तेजस्वी महागठबंधन का चेहरा होंगे। कहा जाता है कि नीतीश ने भाजपा के दिग्गज नेता सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) को भी उतनी अहमियत नहीं दी, जब वो तत्कालीन एनडीए गठबंधन सरकार में उनके डिप्टी थे।

मिशन विपक्षी एकता में नीतीश एक अहम फैक्टर के तौर पर उभरे हैं क्योंकि वो कांग्रेस, ममता और केजरीवाल जैसे कुछ अहम क्षेत्रीय सियासी खिलाड़ियों के बीच बेरूखी की बर्फ को तोड़ने में कामयाब रहे हैं, जिनके आपसी रिश्तें एक वक्त में खटासभरे और तनावपूर्ण रहे थे।

बिहार के मुख्यमंत्री ने बीजद सुप्रीमो नवीन पटनायक से मिलने के लिये भुवनेश्वर का भी दौरा किया, हालांकि वो अपने बाद वाले अपने रुख पर अड़े रहे कि वो भाजपा और कांग्रेस से बराबर दूरी बनाये रखेगें।

नीतीश हालांकि अब तक तेलंगाना के मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सुप्रीमो के चंद्रशेखर राव (KCR- K Chandrasekhar Rao) और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और वाईएसआरसीपी प्रमुख वाईएस जगन मोहन रेड्डी (YS Jagan Mohan Reddy) से नहीं मिल सके, जो कि कांग्रेस से अलग हो गये हैं। केसीआर की अपनी राष्ट्रीय आकांक्षायें हैं और वो अपने सामने किसी दूसरी विपक्षी खिलाड़ी को किसी भी भूमिका में उभारता हुआ देखना कतई पसंद नहीं करते हैं।

विपक्षी एकता योजना में नीतीश फैक्टर की कारगर क्षमता तभी मानी जायेगी, जब वो 2024 के चुनावों के लिये केसीआर और जगन जैसे दक्षिण भारत के बड़े गैर-भाजपाई नेताओं को बड़े विपक्षी पाले में लाने में कामयाब होंगे। तमिलनाडु के सीएम और डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन (MK Stalin) पहले से ही कांग्रेस के कट्टर सहयोगी रहे हैं।

संयुक्त मोर्चे के लिए अपने कोशिशों को आगे बढ़ाते हुए, नीतीश चाहते हैं कि विपक्षी पार्टियां कोशिश करें और 2024 के चुनावों में वोट बंटने से रोकने के लिये भाजपा के खिलाफ अपने उम्मीदवारों को ज्यादा से ज्यादा सीटों पर खड़ा करें। दूसरी ओर कांग्रेस को कई संभावित सहयोगियों के साथ सीटों के बंटवारे पर सियासी बखेड़े का सामना करना पड़ेगा।

विपक्षी एकता की खिचड़ी पकने के लिये कई बातों का एक साथ आना अहम है, भले ही नीतीश ने कुछ ज़मीनी पहल की हों। बिहार के मुख्यमंत्री को अब अपनी कोशिशों को एक दूसरे स्तर पर ले जाने की जरूरत है, जो कुछ अहम नतीज़े दे सकती है। नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ जो शह और मात की बिसात बिछाना चाहते है उसका रूख़ काफी हद तक मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ (Rajasthan and Chhattisgarh) चुनावों के बाद पूरी तरह साफ हो जायेगा।

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक – अमित कुमार त्यागी

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