दगाबाज़ी से भरी है Beijing की मंशा, गलवान संघर्ष था कड़ी शुरूआती हिस्सा

Beijing: भारत-चीन गलवान संघर्ष का तीसरा साल पूरा होने से ठीक पहले पीएलए सैन्य विज्ञान अकादमी के वरिष्ठ कर्नल झाओ शियाओझुओ (Colonel Zhao Xiaozhuo) ने सिंगापुर में हाल ही में शांगरी-ला डायलॉग (Shangri-La Dialogue) में कहा कि-“चीन की रक्षा प्रणाली जटिल और व्यवस्थित तौर पर काफी मंझी हुई है। आने वाले कई दशकों तक इसी क्षमताओं चुनौती दे पाना नई दिल्ली के लिये आसान नहीं होगा। भारत का कमजोर औद्योगिक बुनियादी ढांचा और लड़खड़ाती युद्धक प्रणालियां बीजिंग को कहीं से भी किसी तरह परेशान नहीं कर सकती है।”

अब ये भारत के नीति नियतांओं पर निर्भर है कि वो या तो कर्नल झाओ शियाओझुओ के इस बयान मनोवैज्ञानिक युद्ध के तौर पर एक सिरे से नकार दे या फिर इसे आत्मानिर्भरता अभियान को रफ्तार देने के लिये कैटेलिस्ट (उत्प्रेरक) मानकर अपनी जंगी तैयारियों को और धार दे। कठोर तथ्य ये है कि दुनिया के तीसरे सबसे बड़े रक्षा बजट के साथ परमाणु-हथियार संपन्न और अंतरिक्ष शक्ति होने के बावजूद भारत सैन्य हार्डवेयर सबसे बड़ा आयातक बना हुआ है।

रक्षा उपकरणों और स्पेयर पार्ट्स के सप्लायर के तौर पर रूस की निरंतर विश्वसनीयता अब सवालिया घेरे में फंसती दिख रही है। बीजिंग से बढ़ती गलबाहियां और दोस्ती के गीत, साथ ही दबी छिपी अमेरिकी अगुवाई में लड़ा जा रहा यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) विश्वसनीयता का बड़ा संकट पैदा कर रहे है। इस तरह के हालात भारतीय सशस्त्र बलों के लिये किसी भी सूरत में अच्छे नहीं है। ऐसे में बेहतरीन जंगी ताकत बनने के लिये भारत विकल्प ढूढ़ने की नहीं बल्कि दूसरे मुल्कों के लिये विकल्प बनने की जरूरत है।

इस मामले की तस्दीक तब दिखी जब चीनी दबदबा इस दशक में पहली बार 15-16 जून 2020 गलवान संघर्ष में देखा गया था, अप्रैल में चीन की ओर से पूर्वी लद्दाख (Eastern Ladakh) के कई इलाकों में घुसपैठ करने के बाद दोनों ओर के हालात पहले से ही तनावपूर्ण थे, जिन पर भारत दावा करता है। अक्टूबर 1975 के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पहली बार गलवान में 20 सैनिकों की मौत हुई थी, जब अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला (Tulung La of Arunachal Pradesh) में एक चीनी एम्बुश में चार असम राइफल्स (Assam Rifles) के जवान मारे गये थे।

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA- People’s Liberation Army) ने गलवान में एलएसी पर भारत की तरफ टेंट और एक ऑब्जर्वेशन पोस्ट लगा रखी थी। 15 जून की रात को उस इलाके में पीएलए की लगातार मौजूदगी पर असहमति के कारण खूनी संघर्ष हुआ।

उस वक्त की रिपोर्टों के मुताबिक, 16 बिहार (गलवान में तैनात ज्यादातर सैनिक इसी यूनिट के थे) के कमांडर कर्नल बी संतोष बाबू (Colonel B Santosh Babu), जो कि चीनी सेना को आमने सामने की चुनौती दे रहे थे। पीएलए सैनिकों की ओर से उनके साथ मारपीट की गई थी। इस वज़ह से दोनों पक्षों के लगभग 600 सैनिकों के बीच लगभग पाँच घंटे की लड़ाई चली।

सरसरी निगाहों से देखा जाये तो तकनीक कौशल, मनोवैज्ञानिक युद्ध और भू-राजनीतिक वज़हों के हवाला देकर बीजिंग नई दिल्ली को इस मोर्चें पर उलझाये रखना चाहता है। कर्नल झाओ शियाओझुओ का बयान इस बात की तस्दीक करता है। 18 दौर की सैन्य वार्ताओं के बावजूद चारडिंग नाला जंक्शन और देपसांग (Charding Nala Junction and Depsang) के मुद्दे अभी जस के तस बने हुए है। ऐसे में टैक्नोलॉजी दिग्गज चीन की कूटनीतिक और राजनीतिक कवायदों को लेकर सवाल उठाना लाज़िमी है।

म्यामांर (Myanmar) में मैकमोहन लाइन (McMahon Line) पर सहमति, रूस समेत सभी देशों (भारत और भूटान को छोड़कर) को लेकर सीमा विवाद पर विराम, तिब्बत में तेज रफ्तार से बुनियादी ढ़ांचों का विकास, अक्साई चिन (Aksai Chin) और लद्दाख में इंफैंट्री के साथ आर्टिलरी और आर्म्ड दस्तों की तैनाती, पाकिस्तान को लेकर रहमदिली और कई दक्षिण एशियाई (जैसे मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार) मुल्कों में लगातार फैलता चीनी निवेश का मकड़जाल ये सभी लक्षण किसी बीमारी की ओर इशारा करते है, इसे अच्छे से समझा जा सकता है। गलवान संघर्ष तो बड़े कैनवास को एक कोना भर है।

सह-संस्थापक संपादक ट्रेंडी न्यूज नेटवर्क : राम अजोर

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