Jyotish: शादीशुदा ज़िन्दगी बर्बाद करते है ये ज्योतिषीय कारण

Jyotish: मौजूदा वक़्त में मनुष्य बेहद तनावपूर्ण माहौल में जी रहा है। ऐसे में दिनभर काम करने के बाद जब वो थका हारा घर लौटता है तो घर पर उसका स्वागत गृहक्लेश करते है। लड़ाई-झगड़ा और पारिवारिक टेंशन उसे दिन ब दिन खोखला करती जाती है। कई बार तो इसका असर दांपत्य जीवन पर पड़ता है। स्ट्रेस मैनेज (Stress Management) ना करने के कारण शादीशुदा ज़िन्दगी बर्बादी के कगार पर पहुँच जाती है, जो कि अक्सर तलाक पर आकर खत्म होती है। इस आर्टिकल में हम पाठकों को उन ज्योतिषीय से अवगत कराने जा रहे है, जो कि शादीशुदा ज़िन्दगी तबाह करने का कारण बनते है।

इन ज्योतिषीय कारणों से होती है शादीशुदा ज़िन्दगी बर्बाद

  • यदि सप्तम भाव पर राहु, शनि व सूर्य की दृष्टि हो एवं सप्तमेश अशुभ स्थानों में हो एवं शुक्र पीड़ित व निर्बल हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख नहीं मिलता।
  • यदि सूर्य-शुक्र की युति हो व सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
  • यदि सप्तम भाव में मकर या कुंभ राशि स्थित हो, सप्तमेश सूर्य, शनि व राहु के साथ हो एवं शुक्र पीड़ित व निर्बल हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख (Conjugal happiness) नहीं मिलता।
  • यदि सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
  • यदि द्वादश भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, शुक्र पीड़ित व निर्बल हो और सप्तम भाव पर सूर्य, राहु व शनि का प्रभाव हो व सप्तमेश अशुभ स्थानों में हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
  • यदि लग्न में राहु स्थित हो एवं जन्मपत्रिका में सूर्य व शुक्र की युति हो तो जातक को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
  • यदि लग्न में शनि स्थित हो और सप्तमेश अस्त, निर्बल या अशुभ स्थानों में हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है व जीवनसाथी से उसका मतभेद रहता है।

  • यदि सप्तम भाव में राहु स्थित हो और सप्तमेश पाप ग्रहों के साथ छ्ठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो जातक के तलाक की संभावना होती है।
  • यदि लग्न में मंगल हो व सप्तमेश अशुभ भावों में स्थित हो व द्वितीयेश पर मरणात्मक ग्रहों का प्रभाव हो तो पत्नी की मृत्यु के कारण व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख से वंचित होना पड़ता है।
  • यदि किसी स्त्री की जन्मपत्रिका में गुरु पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, सप्तमेश पाप ग्रहों से युत हो एवं सप्तम भाव पर सूर्य, शनि व राहु की दृष्टि हो तो ऐसी स्त्री को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
  • सप्तम भाव का स्वामी अगर शत्रु नक्षत्र के साथ हो तो वैवाहिक जीवन में बाधक होता है।
  • सूर्य और बुध के साथ शुक्र की युति किसी भी भाव में होने पर वैवाहिक जीवन में कुछ न कुछ दोष अवश्य ही उत्पन्न होता है, जिससे दाम्पत्य जीवन दुखमय रहता है।

उपाय

तांबे के एक लोटे में साबुत मूंग भरकर विवाह के संकल्प के समय हाथ लगाकर रखना चाहिए और इसे जल में प्रवाहित करना चाहिए। यदि ये उपाय विवाह के समय न हो सके तो जिस वर्ष उक्त तीनों ग्रह लाल किताब के वर्षफलानुसार आठवें भाव में आये उस वर्ष कर सकते हैं।

  • शुक्र यदि आठवें भाव में हो तो जातक की पत्नी सख्त स्वभाव की होती है, जिससे आपसी सामंजस्य का अभाव रहता है। इस योग की स्थिति में विवाह 25 वर्ष की उम्र के बाद ही करना चाहिये। इसके पहले विवाह करने पर पत्नी के स्वास्थ्य के साथ-साथ गृहस्थ सुख पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

उपाय

आठवें भाव में स्थित शुक्र के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए नीले रंग के फूल घर से बाहर जमीन में दबा दें या गंदे नाले में डाल दें।

  • शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं।
  • सप्तमेश अगर अष्टम या षष्टम भाव में हो तो यह पति पत्नी के मध्य मतभेद पैदा करता है। इस योग में पति पत्नी के बीच इस प्रकार की स्थिति बन सकती है कि वे एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं। ये योग विवाहेत्तर सम्बन्ध भी कायम कर सकता है।

  • सप्तम भाव का स्वामी अगर कई ग्रहों के साथ किसी भाव में युति बनाता है अथवा इसके दूसरे और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह हों और सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता है।
  • चतुर्थ भाव में जिनके शुक्र होता है उनके वैवाहिक जीवन में भी सुख की कमी रहती है।
  • कुण्डली में सप्तमेश अगर सप्तम भाव में या अस्त हो तो यह वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है।
  • गुरू यदि वृषभ-मिथुन राशि और कन्या लग्न में निर्बल-नीच-अस्त का हो तो वैवाहिक जीवन का नाश कराता है।
  • मकर-कुंभ लग्न में सप्तम का गुरू भी वैवाहिक जीवन समाप्त कराता है।
  • मीन राशि का गुरु सप्तम में होने पर वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है।
  • सप्तम यानि केन्द्र स्थान विवाह और जीवनसाथी का घर होता है। इस घर पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर या तो विवाह विलम्ब से होता है या फिर विवाह के पश्चात वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य की कमी रहती है।
  • जिस स्त्री या पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी पांचवें में अथवा नवम भाव में होता है उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता है। इस तरह की स्थिति जिनकी कुण्डली में होती है उनमें आपस में मतभेद बना रहता है जिससे वे एक दूसरे से दूर जा सकते हैं। जीवनसाथी को वियोग सहना पड़ सकता है। हो सकता है कि जीवनसाथी को तलाक देकर दूसरी शादी भी कर ले।
  • सप्तम भाव का स्वामी अगर शत्रु नक्षत्र के साथ हो तो वैवाहिक जीवन में बाधक होता है।
  • जिनकी कुण्डली में ग्रह स्थिति कमज़ोर हो और मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है। ग्रहों के इस योग के कारण पति पत्नी में अनबन रहती है।
  • केन्द्र भाव में मंगल, केतु अथवा उच्च का शुक्र बेमेल जोड़ी बनाता है। इस भाव में स्वराशि एवं उच्च के ग्रह होने पर भी मनोनुकल जीवनसाथी का मिलना कठिन होता है।
  • शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं।
  • सप्तमेश अगर अष्टम या षष्टम भाव में हो तो यह पति पत्नी के मध्य मतभेद पैदा करता है। इस योग में पति पत्नी के बीच इस प्रकार की स्थिति बन सकती है कि वे एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं। ये योग विवाहेत्तर सम्बन्ध भी कायम कर सकता है।

  • सप्तम भाव का स्वामी अगर कई ग्रहों के साथ किसी भाव में युति बनाता है अथवा इसके दूसरे और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह हों और सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता है।
  • चतुर्थ भाव में जिनके शुक्र होता है उनके वैवाहिक जीवन में भी सुख की कमी रहती है।
  • कुण्डली में सप्तमेश अगर सप्तम भाव में या अस्त हो तो ये वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है।
  • गुरू यदि वृषभ-मिथुन राशि और कन्या लग्न में निर्बल-नीच-अस्त का हो तो वैवाहिक जीवन का नाश कराता है।
  • मकर-कुंभ लग्न में सप्तम का गुरु भी वैवाहिक जीवन समाप्त कराता है।
  • मीन राशि का गुरु सप्तम में होने पर वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है।
  • जन्म कुंड़ली मे शत्रु राशि में मंगल या शनि हो, अथवा क्रूर राशि में स्थित होकर सप्तम भाव में स्थित हो तो क्रूर मारपीट करने वाले जीवनसाथी की प्राप्ति होती हैं।
  • यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता और किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है।
  • यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला कई स्त्री-पुरुष से संबंध रखने वाला व्यभिचारी होता हैं और विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है। उक्त ग्रह दोष के कारण ऐसा जीवनसाथी मिलता हैं, जिसके कई स्त्री-पुरुष के साथ अवैध संबंध होते हैं। जो अपने दांपत्य जीवन के प्रति अत्यंत लापरवाह होते हैं।
  • यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव में हों, तो यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद पैदा होता हैं। इस योग के कारणा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं।
  • इस योग के प्रभाव से पति-पत्नी दोंनो के विवाहेत्तर संबंध बन सकते हैं। इस लिये जिन पुरुष और कन्या की कुंडली में में इस तरह का योग बन रहा हों उन्हें एक दूसरे कि भावनाओं का सम्मान करते हुए अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिये।

वैवाहिक जीवन में सुखानुभूति हेतु सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए निम्नलिखित मंत्र का जप विधि विधानपूर्वक करना चाहिए।

मंत्र : ऐं श्रीं क्लिम् नमस्ते महामाये महायोगिन्धीश्वरी। सामान्जस्यम सर्वतोपाहि सर्व मंगल कारिणीम्॥

यदि कुंडली में वैधव्य योग हो तो शादी से पहले घट विवाह, अश्वत्थ विवाह, विष्णु प्रतिमा या शालिग्राम विवाह कराना और प्रभु शरण में रहना चाहिये।

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