Sudan Crisis: खूनी इबारत के बीच लोकतंत्र की राह तलाशता सूडान

Sudan Crisis: 15 अप्रैल, 2023 को शुरू हुआ सूडान का मौजूदा संकट पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। दो सैन्य गुटों के बीच सिर्फ चार दिनों की भंयकर लड़ाई में 200 से ज्यादा लोग आधिकारिक तौर पर मारे गये और 1800 से ज्यादा बुरी तरह घायल हुए हैं। हालांकि ये सटीक आंकड़े नहीं हैं, मारे गये या घायलों की तादाद को दर्शाते ये वो आंकड़े है, जो कि रेड क्रॉस (Red Cross) की ओर से जारी किये गये है। चश्मदीदों ने खुलासा किया कि कई सौ और मारे गये हैं जिनकी लाशों के टुकड़े अलग-अलग इलाकों में बिखरे पड़े हैं जहां झड़पें हुईं।

सूडान को खूनी संघर्षों की भूमि कहा जा सकता है क्योंकि ये देश 1500 ईसा पूर्व से ही कई जातीय संघर्षों (Ethnic Conflicts) का सामना करता आ रहे है, जब स्थानीय लोगों ने मिस्र (Egypt) के शासन के खिलाफ विद्रोह किया था। तब से लेकर आज तक इस मुल्क की रेत पर खून का गिरना कभी नहीं रुका। 1956 ईस्वी के बाद से जब सूडान आज़ाद हुआ, इसने कई जंगें और खूनी संघर्ष देखे हैं, जिसके नतीज़न इस मुल्क के लाखों मूल निवासी मारे गये। तमाम झगड़ों में एक बात कॉमन थी मौजूदा संकट समेत सभी संघर्ष सत्ता हासिल करने के लिए हुए।

फिलहाल मौजूदा संघर्ष की जड़ साल 1989 के सैन्य तख्तापलट से सीधे जुड़ी हुई है, जहां ब्रिगेडियर उमर अल-बशीर (Brigadier Omar al-Bashir) ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और प्रधान मंत्री सादिक अल-महदी (Prime Minister Sadiq Al-Mahdi) की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। बशीर ने मुल्क चलाने के लिये 15 सैन्य अधिकारियों की एक टीम बनाई और तानाशाही सल्तनत को मुल्क में कायम किया, जो कि सरकार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ के बेरहमी से दबाती है। उन्होंने साल 2019 में एक और तख्तापलट में हटाये जाने तक तीन दशक से भी ज़्यादा वक्त तक सूडान पर शासन किया। लेफ्टिनेंट जनरल अहमद अवेद इब्न औफ (Lieutenant General Ahmad Awed Ibn Auf) जो कि बशीर के डिप्टी थे, ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और खुद को सरकार का असल वारिस घोषित कर दिया। साल 2021 में लेफ्टिनेंट जनरल अहमद औफ ने एक अन्य सैन्य जनरल अब्देल फत्ताह अल-बुरहान (Military General Abdel Fattah al-Burhan) को सत्ता सौंपी जो कि सूडान के मौजूदा दौर के नेता हैं।

मौजूदा संघर्ष का एक और पक्ष भी है जनरल मोहम्मद हमदान दगालो (General Mohamed Hamdan Dagalo), जो न सिर्फ सैन्य परिषद के उपाध्यक्ष के तौर पर काम कर रहे थे बल्कि सूडानी सशस्त्र बलों (SAF- Sudanese Armed Forces) के बाद देश में दूसरे सबसे ताकतवर सशस्त्र गुट रैपिड सपोर्ट फोर्स है (आरएसएफ) की भी अगुवाई कर रहे है। आरएसएफ मिलिशिया संगठन है जो कि दारफुर नरसंहार (Darfur Genocide) के लिए कुख्यात था जहां 4 लाख से ज्यादा लोगों को बेरहमी से मार दिया था। सत्ता में ताकत मिलने के बाद से ही दगलो ने अवैध सोने की खदानें चलाकर भारी भरकम पैसा कमाया और एक लाख जंजावीद मिलिशिया की कमान संभाली। हालांकि RSF के मुकाबले SAF में लड़ाकों की तादाद बेहद कम है, लेकिन वो खूनी जंग के लिये बेहतर प्रशिक्षित हैं। इस गुट के जवान ज्यादातर सोवियत दौर के हथियारों का इस्तेमाल करते है।

जब जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान (Abdel Fatah Al-Burhan) ने देश की बागडोर संभाली तो उन्होंने देश को सात दशक से ज्यादा वक्त तक चले सैन्य शासन और जातीय हिंसा से सूडान के लोकतंत्र के रास्ते पर लाने की योजना बनाई। जिसके मुताबिक चुनाव करवाकर सत्ता को सत्ता सौंपी जानी थी। इसके तहत साल 2023 के आखिर तक लोकतांत्रिक तौर पर प्रतिनिधियों को चुना जाना था। इसी प्रक्रिया के हिस्से के एक हिस्से के तौर पर 6 अप्रैल 2023 को एक औपचारिक रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने थे, जिसमें बुरहान ने देरी की। बुरहान सत्ता पर कब्जा बनाये रखना चाहता है, इसी मकसद से उन्होनें ना सिर्फ इस योजना के ढांचे पर हस्ताक्षर करने में देरी की बल्कि सूडानी परिषद में दगालो और आरएसएफ के प्रतिनिधित्व को भी काफी कम कर दिया। आरएसएफ जिसे आधिकारिक तौर पर एसएएफ में विलय किया जाना था, उसका भविष्य अधर में छोड़ दिया गया। इस वज़ह ने हालातों का काफी भड़का दिया, जिसके बाद आरएसएफ ने पूरे सूडान में अपने सैनिकों को तैनात करना शुरू कर दिया और 15 अप्रैल 2023 को उन सभी ने एक ही समय में विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। विद्रोह के नतीजन प्रमुख हवाई अड्डों, सोने की खानों, औद्योगिक कस्बों और राजस्व स्रोतों पर  ज़बरन कब्जा कर लिया गया। सूडान के आम लोग भी दगालो के समर्थन में उतरे और पूरे देश में इसका खुला विरोध देखा गया। सूडानी सशस्त्र बलों ने विरोध को दबाने के लिये अपनी तैनाती को बढ़ाते हुए चाकचौबंद व्यवस्था कर दी, जिसके परिणामस्वरूप कई प्रदर्शनकारियों की बेरहम हत्या हुई जिससे कि हालात मौजूदा दौर में काफी नाज़ुक हो चले है।

प्रदर्शनकारियों और आरएसएफ की कुछ मांगें हैं। सबसे पहले वो चाहते हैं कि आरएसएफ औपचारिक रूप से सूडानी सशस्त्र बलों के हिस्से के रूप में एकीकृत हो। दूसरा प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि व्यापार, वाणिज्य, उद्योग, कृषि और स्वर्ण खनन में बनी सैन्य पकड़ को नागरिक नेतृत्व को हस्तांतरित की जाये। तीसरा वो उन सैन्य अधिकारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई चाहते हैं, जो कि लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों की हत्या में शामिल थे और चौथा सूडान लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाली की प्रक्रिया की निश्चित समयरेखा निर्धारित की जाये।

सूडान अफ्रीका (Africa) का सबसे अस्थिर और संवेदनशील इलाका है। लाल सागर (Red Sea) में स्थित होने और स्वेज नहर (Suez Canal) का प्रवेश मार्ग होने की वज़ह से ये रणनीतिक तौर पर काफी अहम है। सूडानी तानाशाही व्यवस्था मनमानेढंग से लाल सागर में नाकाबंदी लागू कर सकती है, मनमाफ़िक ढंग से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली को बाधित कर सकती है। सूडान की विशाल खनिज संपदा में खासतौर से सोना, लौह अयस्क, क्रोमाइट, जस्ता, एल्यूमीनियम, निकेल, फॉस्फेट और जिप्सम शामिल हैं। फिलहाल ये खज़ाना बड़े पैमाने पर गृहयुद्ध और सैन्य शासन के दखल से अछूता हैं। सभी वैश्विक ताकतें इसका बड़ा हिस्सा पाने के लिये बेताब हैं और इस तरह मुल्क की सैन्य तानाशाही वाली सरकार चाहती हैं जो उनके अनुकूल हो वो सूडान में दूसरों के अनुकूल न हो।

परंपरागत तौर पर सूडान की सैन्य सरकारें तत्कालीन यूएसएसआर/रूस के काफी करीब रही हैं और अमेरिका-रूस दुश्मनी के मद्देनजर पश्चिमी जंगी ताकतें खासतौर से संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) इस इलाके में रूसी प्रभाव को रोकने के लिये किसी भी हद तक जा सकती है। चीन (China) की भी सूडान की खनिज संपदा पर पैनी नजर है और ड्रैगन अस्थिर सूडान में अंधाधुंध निवेश कर रहा है। ऐसे में सूडान का भविष्य संकट के मुहाने पर खड़ा है, लेकिन एक बात तय है कि सूडान रूसी और पश्चिमी ताकतें के बीच बिजली संकट का एक और बड़ा इलाका बनने जा रहा है। फिलहाल मौजूदा हालातों में गृह युद्ध के मंडरा रहे बादल जल्द छंटने वाले नहीं है।

सह संस्थापक संपादक – राम अजोर

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