Russia Ukraine War: मास्को ने कुछ नहीं खोया अभी तक जंगी मोर्चें पर

Russia Ukraine War: जंग के पांचवे सप्ताह के दौर से गुज़र रही है। यूक्रेनी सेना के मजबूत प्रतिरोध ने एक शक्तिशाली रूसी सेना के हमलों का कामयाबी से बचाव किया है। कोई ये भविष्यवाणी करने के लिये ललचा सकता है कि बहादुर यूक्रेनी रक्षक हमलावरों पर जीत हासिल करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। छोटे-क्षमता वाले हथियारों के साथ गुरिल्ला रणनीति का इस्तेमाल करते हुए लड़ने वाली यूक्रेनी सेनायें किसी भी जमीन को हासिल करने, पीछे हटने या रूसी भूमि पर हमला करने से काफी दूर हैं। रूस यूक्रेन युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे खराब मानवीय संकट में तब्दील हो गया है।

फिलहाल राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की (President Volodymyr Zelensky) अपने मुल्क की सीमाओं को नाटो और यूरोपीय संघ तक पहुँचाने की कोशिश को विराम दे चुके है। ऐसे में क्या राष्ट्रवादी खेमों और “नागरिक समाज” को निर्देशित करना वाला अमेरिका के दबाव को देखते हुए कीव के लिये मास्को के साथ शांति वार्ता करना नामुमकिन है? अगर थोड़ी सी भी संभावना होती तो पुतिन के साथ बातचीत के लिये बातचीत की गुज़ाइशें जरूर बनती है, जिसे ज़ेलेंस्की टालते रहे। इतिहास उन्हें पुतिन के साथ यूक्रेन के विनाश के लिये समान रूप से जिम्मेदार ठहरायेगा।

रूस का न्यूक्लियर डेटेरेंट (Nuclear Deterrent) ये सुनिश्चित कर रहा है कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से कोई भी यूक्रेन के पक्ष में उसे बचाने के लिये सैन्य हस्तक्षेप ना कर पाये। वैश्विक शक्तियाँ यूक्रेन को बचाने की मुकाबले रूस का मज़ाक उड़ाने और राष्ट्रपति पुतिन के खिलाफ प्रदर्शन करने में ज़्यादा रुचि रखती हैं। रूसी चिंताओं को समझने की कोई कोशिश नहीं की गयी!

ज़ेलेंस्की ने भी अपने सभी मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालकर सिर्फ और सिर्फ रूसी हमले के प्रतिरोध में लगे हुए है, साथ ही पश्चिमी ताकतों और नाटो मुल्कों से सैन्य सहायता और यूक्रेन को नो-फ्लाई ज़ोन घोषित करने के लिये दिन-प्रतिदिन भीख माँग रहे हैं। पिछले महीने में दुनिया ने राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के लाइव मोनोलॉग्स और फ्लिप-फ्लॉप (Live Monologues and Flip-Flops) को नाटो से सैन्य हस्तक्षेप के लिये, नाटो की निंदा करने और वार्ता के लिये रूस की गुज़ारिश करते हुए देखा।

राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की महान कलाकार होने के साथ साथ मीडिया सोशल-मीडिया से जुड़े एजेंडा आधारित इफॉर्मेशन वॉर छेड़ने में महारथी है। ज़ेलेंस्की पश्चिम द्वारा समर्थित इफॉर्मेशन वॉर (Information War) जीत रहे है और अमेरिकी कांग्रेस, यूरोपीय संघ, ब्रिटिश और कनाडाई संसदों में उनके भाषण इंटरनेट पर तबाड़तोड़ छाये हुए है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है, जिस पर हमले वाले देश के राजनीतिक नेता से उम्मीद की जाती है। इस जंग को रोकने के लिये उनके राजनयिक प्रयासों के बारे में पब्लिक डोमेन में रत्ती भर भी जानकारी नहीं है। जब तक वार्ता में कोई बड़ी कूटनीतिक कामयाबी नहीं मिलती, यूक्रेन को बचाया नहीं जा सकता। राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को अपना अहंकार उस स्तर तक नहीं बढ़ना चाहिये, जहाँ से वो ये नहीं देख सकते कि उसके लोगों के लिये क्या अच्छा है और क्या बुरा।

पश्चिमी मुल्कों की जंगी ताकतें निहित स्वार्थ के तहत ज़्यादा से ज़्यादा सीधेतौर जंग में शामिल हुए बिना युद्ध का विस्तार करने का इरादा रखती हैं। युद्ध के बीच में विभिन्न संसदों को संबोधित करने के लिये राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को निमंत्रण और पश्चिमी मीडिया के युद्ध उन्माद जैसी नाटकीयता उनकी ओर से बेहद ज़्यादा हिंसात्मक उत्तेजना बढ़ाती हैं। हालांकि किनारे बैठकर तमाशा देख रहे ब्लिंकन और नुलैंड (Blinken and Nuland) चाहते हैं कि ज़ेलेंस्की आखिर दम तक जंग में अपनी ताकत झोंकते रहे। साफ दिखाई देता है कि ज़्यादा आक्रामकता के साथ भयानक हमले का सामना करने की भावना कहां है?

अमेरिका संघर्ष पर रोज़ाना ब्रीफिंग दे रहा है, जिसके लिये वो ना तो लड़ रहे हैं और न ही उनका कोई ठिकाना है। पश्चिमी गठबंधन ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाये हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये प्रतिबंध खोये और जान गंवाये लोगों की ज़िन्दगी वापस लायेगें? क्या पश्चिम ने दूसरे देश को बर्बाद कर दिया है?

बदकिस्मती से आज तक उत्साही यूक्रेनी प्रतिरोध के अलावा किसी को भी युद्ध के लिये कोई बाहरी सैन्य अवरोधक नहीं देखा गया। राष्ट्रपति बिडेन यूक्रेन संघर्ष में सैन्य हस्तक्षेप करने से बेहद घबराये हुए हैं और डरते हैं, लेकिन भारत को “अस्थिर” कहते हैं। साल 1971 में भारत ने बंगालियों को पाकिस्तानी सेना के नरसंहार और उन्माद के चंगुल से मुक्त करने के लिये पूर्वी पाकिस्तान में उग्र मानवीय संकट में दखल दिया। भारत को बांग्लादेश को आजाद कराने से रोकने के लिये अमेरिका ने अपना सातवां जंगी बेड़ा भेजा। लेकिन वो नाकाम रहें। अमेरिकी नौसेना जिसने भारत के संप्रभु जलीय सीमा में नेविगेशन संचालन को बिना जानकारी दिये अंज़ाम दिया, उसे अभी तक क्रीमिया प्रायद्वीप (Crimean Peninsula) के तट से दूर अज़ोव सागर, काला सागर तट, केर्च जलडमरूमध्य की विवादित जलीय सीमा में उसी कवायद को दोहराना चाहिये।

राष्ट्रपति पुतिन ने अपने सैन्य नेतृत्व के लिये इस स्पेशल ऑप्रेशन के मकसद को साफ किया और 24 फरवरी को राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि- “यूक्रेन के विसैन्यीकरण और विमुद्रीकरण के लिये ये प्रयास किये जायेगें” यहीं मसला उनके एजेंडे में सबसे ऊपर था। यूक्रेन को नाटो का हिस्सा नहीं बनने दिया जायेगा, डोनेट्स्क और लुहान्स्क (Donetsk and Luhansk) को आज़ाद मुल्कों के तौर पर मान्यता दी जानी चाहिये, क्रीमिया को रूस के हिस्से के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। इसके अलावा भी उनके कई घोषित रणनीतिक उद्देश्य थे।

घोषित उद्देश्यों के अलावा पुतिन काला सागर पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं। जिससे रूस एक बार में यूक्रेन के पूरे 1,400 किलोमीटर के काला सागर तट का नियंत्रण पा लेगा। साथ ही इससे भूमध्य और अटलांटिक सागरीय इलाकों (Mediterranean and Atlantic Ocean Regions) में उसका सीधे तौर पर सामरिक दबदबा होगा। काला सागर दुनिया के लिये रूस का प्रवेश द्वार है। रूसियों ने कमोबेश वो हासिल किया है, जो वो यूक्रेन में करना चाहते थे।

पश्चिमी टिप्पणीकारों ने महीने पुराने इस जंगी अभियान को रूसी नुकसान बताते हुए इसे रूसी श्रद्धांजलि बता रहे हैं। रक्षा पर भारत के साथ देश के घनिष्ठ समन्वय के कारण रूस को जानने के बाद लगता कि वो अपनी सैन्य उन्नति के लिये कोई अवास्तविक लक्ष्य निर्धारित नहीं करते हैं। सिर्फ कोई नौसिखिया ही रूसी आक्रामकता को हल्के में लेगा।

पश्चिमी मुल्कों के मुताबिक रूस ने यूक्रेन और उसके आसपास 1,00,000 से 1,90,000 सैनिक तैनात किये हैं। पश्चिमी मीडिया घरानों की कई कहानियाँ और रिपोर्टें दावा कर रही हैं, “रूस जंग हार रहा है। उनके पास सैन्य क्षमता नहीं है, सैन्य आक्रमण “ठप्प” के साथ निराशा में रूस ने जानबूझकर नागरिकों और छोटे शहरों को टारगेट किया है। घायल और बदकिस्मती से टूटे हुए युद्धग्रस्त देश से 22,000 से ज़्यादा छात्रों को बचाकर वापस भारत लाना रूस के खिलाफ किसी भी तरह के नैरेटिव का खंडन करने के लिये ये सबूत काफी है। जो कि बताता है कि मास्को शहरी इलाकों और आम नागरिकों को कितना निशाना बनाने के लिये बेताब है?

रूसी सेना की सैन्य अक्षमता के दावे पर किसी तरह का कोई शक नहीं करना चाहिये। अक्सर ये दावा किया जाता है कि संघर्ष जितना लंबा चलेगा, ये रूस की युद्ध क्षमता को कम करेगा और हमलावर को चोट पहुंचायेगा। ये रिपोर्ट रूस की सैन्य क्षमताओं को कम आंकती हैं और इस तथ्य अच्छे से समझाना जाना चाहिये कि रूस दुनिया के सबसे बड़े हथियार और गोला-बारूद निर्माताओं और निर्यातकों में से एक है। सीरियाई संघर्ष (Syrian Conflict) में 11 साल रूस ना थका और ना ही उसने हार मानी।

साल 1971 के दौरान भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत ने बेहद कम ताकत इस्तेमाल करते हुए रूसी मिसाइलों को लॉन्च कर कराची बंदरगाह पर तबाही मचायी, उसकी खौफनाक तस्वीरें अभी इस्लामाबाद के हुक्मरानों के दिलोंदिमाग में ताज़ा है। करीब 15 दिनों तक कराची बंदरगाह (Karachi Port) धू-धूकर जलता रहा। अगर रूस अपनी पूरी ताकत के साथ यूक्रेन पर हमला करता है तो क्या हाल होगा इसका आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

राष्ट्रपति पुतिन (President Putin) लगातार हवाई हमले कर रहे है, जिसमें यूक्रेनी सशस्त्र बलों (Ukrainian Armed Forces) को निशाना बनाया जा रहा हैं जबकि नागरिक इसकी जद में कम से कम आ रहे है। साल 1993 के इराक युद्ध के पहले ही दिन अमेरिका ने यूक्रेन में पिछले एक महीने में रूस की मुकाबले में ज़्यादा हवाई उड़ानें भरीं और इराक (Iraq) पर भारी तादाद गोला-बारूद दागा। पिछले 30 दिनों के संघर्ष में रूस ने लगभग 1800 उड़ानें भरी हैं और यूक्रेन को निशाना बनाते हुए लगभग 1200 मिसाइलें दागी।

एक महीने की जंग ने यूक्रेन में नागरिक बुनियादी ढांचे को काफी नुकसान पहुंचाया है। ज़ेलेंस्की रूसी हवाई हमलों को युद्ध अपराध बता रहे हैं जबकि रूस नागरिकों के बीच यूक्रेनी सेना के छिपे होने और रूसी सैनिकों पर गुरिल्ला हमले (Guerrilla Attack) शुरू करने का हवाला देते हुए, अपनी कवायदों का बचाव करता रहा है। यूक्रेन ने बच्चों के अस्पताल, पुस्तकालय और थियेटर पर हमला करने के लिये मास्को को दोषी ठहराया जबकि रूस यूक्रेन फॉल्स फ्लैग ऑप्रेशंस के लिये ठहरा रहा है। दूसरी कीव मास्को को युद्ध अपराधों के लिये दोषी बता रहा है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि रूसी सेना उन बहादुर यूक्रेनियन सेना के सामने खड़ी है, जो अपनी मातृभूमि को बचाने के लिये सबकुछ दावं पर लगाये डटे हुए है। रूसी सेना खुद को तत्कालीन यूएसएसआर (USSR) के मुक्तिदाता के तौर पर यूक्रेन पहुंची। उन्हें देशभक्त यूक्रेनियाई लोगों के नारे लगाने, गालियाँ देने और उन्हें वापस जाने के लिये कहने के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। आज़ादी की यूक्रेनी भावना रूसी सशस्त्र बलों के लिए बड़ा मनोवैज्ञानिक झटका है। रूसी सशस्त्र बलों ने अब तक आम यूक्रेनी के शत्रुतापूर्ण व्यवहार की नैतिक दुविधा को दूर कर लिया है और अपने नेतृत्व के मकसद के मुताबिक सफलतापूर्वक काम करना जारी रखे हुए हैं।

जंग शुरू एक महीना बीतने के बाद बड़े पैमाने पर प्रतिबंधों और पश्चिम से यूक्रेन को छद्म समर्थन से जूझ रहा रूस आहत हो रहा है। ओएसआईएनटी की कुछ रिपोर्टें बता रही है कि रूसी सेना का अभी तक बेहद सोची समझी रणनीति के तहत आगे बढ़ रही है। उसे काफी नपातुला नुकसान (Measured Loss) ही पहुँच रहा है, जो कि जंग में होना लाज़िमी है। यूक्रेनी बलों द्वारा रूसी युद्धबंदियों को प्रताड़ित किये जाने के वीडियो लगातार प्रसारित हो रहे हैं। यूक्रेनी सैनिकों के एक वीडियो में मृत रूसी सैनिक के परिवार को फोन करके उनका मजाक उड़ाने और शपथ लेने के लिये बुलाने वाली कॉल के गंभीर नतीज़े हो सकते है। रूसी युद्धबंदियों को लेकर बेरहम यूक्रनी रवैये के अनपेक्षित परिणाम होंगे।

रूस को आहत करना यूक्रेन के लिये अच्छा नहीं है। रूसी नुकसान रूसी पुलबैक में तब्दील नहीं होगा। ये नहीं होगा। जमीनी स्तर के झटके रूस को जंग तेज करने और हवाई हमलों को बढ़ाने लिये उकसायेगें, जिससे यूक्रेन को घेरने के लिये ज़्यादा से ज़्यादा कॉलेटरल डैमेज होगा। नाराज महाशक्ति रूस अपने शस्त्रागार का इस्तेमाल ऐसी तबाही लाने के लिये करेगा जो कि यूक्रेनी शहरों को तबाही के मुहाने पर धकेला देगा।

रूस की लगातार आलोचना की जा रही है कि वो भारी तादाद में आक्रमणकारी बल होने के बावजूद यूक्रेन भांपने में सक्षम नहीं हैं। इसका ज़वाब है कि राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन को तत्कालीन सोवियत संघ के संप्रभु क्षेत्र के रूप में देखते हैं, इसी वज़ह से वो नागरिक बुनियादी ढांचे के बड़े पैमाने पर नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते है। जिससे कि वो ज्यादातर निर्दोष नागरिकों पर सीधे हमलों से बचते हैं। साथ ही दुश्मन को लेकर नरमी बरती जाये तो नुकसान ज़्यादा होने की गुंजाइश बनी रहती है।

अमन और चैन की बीज़ कूटनीतिक वार्ताओं में ही छिप रहते है, ऐसे में शांति का रास्ता इसी से होकर निकलेगा। बाकी रूस की जंगी ताकत से पश्चिमी शक्तियां, मीडिया, नाटो और यूरोपियन संघ भली भांति परिचित है। इस बात को कोई भी नकार नहीं सकता है। भले ही मास्को के खिलाफ कितने ही दुष्प्रचार अभियान, साइकोलॉजिकल वॉर और इंफॉर्मेंशन वॉरफेयर किया जाये।

सह-संस्थापक संपादक : राम अजोर

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