UCC पर दिये बयान को लेकर दो-फाड़ हुआ विपक्ष, आम आदमी पार्टी ने दिया सैद्धांतिक समर्थन

न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता (UCC- Uniform Civil Code) पर प्रधानमंत्री मोदी के बयान से सियासी भूचाल आ गया है। बीते मंगलवार (27 जून 2023) को प्रधान मंत्री मोदी (Prime Minister Modi) ने कहा कि संविधान में समान नागरिक संहिता शामिल है और भारत दो तरह के नियमों के तहत काम नहीं कर सकता है। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद विपक्ष ने कई राज्यों के चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिये यूसीसी मुद्दे का इस्तेमाल करने के लिये मोदी प्रशासन की जमकर आलोचना की।

कांग्रेस के नेताओं ने पीएम मोदी पर मंहगाई, बेरोजगारी और मणिपुर जैसे ज्यादा गंभीर मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिये यूसीसी मुद्दे का फायदा उठाने का आरोप लगाया है।

बता दे कि समान नागरिक संहिता की बुनियाद नियमों की ऐसे समूहों पर टिकी है, जिसमें धर्म की परवाह किये बिना सभी लोगों पर विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार जैसे निजी मामलों पर ये नियम लागू होगें। इसके लागू होने से देशभर में पर्सनल लॉ जैसे व्यवस्था खत्म हो जायेगी। धार्मिक पहचान पर टिके कानूनों को बदलकर उसकी जगह यूसीसी को लागू कर दिया जायेगा। समान नागरिक संहिता की सोच जो कि एक देश, एक विधान है, सभी धार्मिक संप्रदायों पर लागू होगी। भारतीय संविधान के भाग 4, अनुच्छेद 44 में खासतौर से समान नागरिक संहिता शब्द का जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 44 के मुताबिक, “राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।”

पीएम मोदी के यूसीसी पर दिये इस बयान को विपक्ष ने वोट बैंक की रणनीति करार दिया है। मौजूदा हालातों में यूसीसी ने सियासी बयानबाज़ियों का दौर गर्म कर रखा है। इसी मसले पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने प्रधान मंत्री की आलोचना करते हुए कहा, “भारत के पीएम भारत की विविधता और इसके बहुलवाद को मुद्दा मानते हैं। इसलिये वो ऐसी बातें कहते हैं… हो सकता है भारत के प्रधान मंत्री को समझ नहीं आता कि अनुच्छेद 29 क्या है। क्या आप यूसीसी के नाम पर देश की विविधता और बहुलता को हटा देंगे?”

इसी मुद्दे पर जेडीयू नेता केसी त्यागी (JDU leader KC Tyagi) ने कहा कि- “हमारी पार्टी इसे आगामी आम चुनावों के लिये इसे ‘राजनीतिक स्टंट’ मानती है और उनके बयान का अल्पसंख्यकों के कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है। जेडी (यू) को पता है कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य अपने सभी नागरिकों के लिये समान नागरिक संहिता प्रदान करने का प्रयास करेगा। ये खंड राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का हिस्सा है, न कि मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) धारा के तहत। जबकि राज्य को यूसीसी लाने का प्रयास करना चाहिए, ऐसा प्रयास, स्थायी और टिकाऊ होने के लिये इस तरह के कदम के पक्ष में व्यापक सहमति पर आधारित होना चाहिए, ना कि ऊपरी फरमान से थोपा जाना चाहिए।”

उन्होनें आगे कहा कि- “ये हमेशा याद रखना अहम है कि हमारा देश विभिन्न धर्मों और जातीय समूहों के लिये कानूनों और शासकीय सिद्धांतों के संबंध में नाजुक संतुलन पर आधारित है। इसलिए ठोस गहन मशवरा किए बिना यूसीसी लागू करने का कोई भी प्रयास नहीं किया जाना चाहिये। इस मुद्दे पर विभिन्न धार्मिक समूहों की सहमति खासतौर से अल्पसंख्यक की रजांमदी लेनी चाहिये। अगर ऐसा ना किया गया तो सामाजिक ढ़ांचा बिखर सकता है। धार्मिक स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी में विश्वास की बुनियाद चरमरा सकती है। यूसीसी को लागू करने के लिए मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों और हिंदुओं (बौद्ध, सिख और जैन समेत) के संबंध में ऐसे मामलों में लागू सभी मौजूदा कानूनों को खत्म करना होगा। सभी के साथ ठोस बातचीत के बिना इतना कठोर कदम शायद ही उठाया जा सकता है। राज्य सरकारों समेत सभी हितधारकों को इसमें शामिल करना होगा।”

30 से ज्यादा आदिवासी समूहों ने भी समान नागरिक संहिता की आदिवासी प्रथागत नियमों को कमजोर करने की कुव्वत के बारे में चिंता ज़ाहिर की है। इसी मुद्दे आदिवासी जन परिषद के प्रमुख प्रेम साही मुंडा (Prem Sahi Munda) ने कहा कि- “हम कई वज़हों से यूसीसी पर आपत्ति करते हैं। हमें चिंता है कि यूसीसी का दो आदिवासी कानूनों छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट (Chhota Nagpur Tenancy Act and Santhal Pargana Tenancy Act) पर सीधा असर पड़ सकता है। दोनों ही कानून आदिवासी इलाकों की रक्षा करते हैं।”

समान नागरिक संहिता को आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) का सैद्धांतिक समर्थन हासिल है। हालांकि पार्टी ने कहा कि इसे सभी संबंधित पक्षों के साथ गहन बातचीत के बाद ही भारत सरकार की ओर से पेश किया जाना चाहिए। मामले पर आम आदमी पार्टी के संदीप पाठक (Sandeep Pathak) ने कहा कि, “सरकार को राजनीतिक दलों और गैर-राजनीतिक संस्थाओं समेत सभी हितधारकों के साथ इस प्रस्ताव पर व्यापक विचार-विमर्श करना चाहिये। आम आदमी पार्टी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 द्वारा समर्थित यूसीसी का सैद्धांतिक तौर पर समर्थन करती है।”

सुप्रीम कोर्ट की ओर से कई फैसलों में यूसीसी के लागू करने की मांग की गयी है। साल 1985 के अपने शाह बानो बेगम (Shah Banu Begum) फैसले में जब एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला ने अपने पूर्व पति से समर्थन का अनुरोध किया तो सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यूसीसी के आवेदन के लिये आग्रह किया। साल 1995 के सरला मुद्गल फैसले और पाउलो कॉटिन्हो बनाम मारिया लुइज़ा वेलेंटीना परेरा (Paulo Coutinho vs Maria Luisa Valentina Pereira) मामले (2019) में न्यायालय ने अधिकारियों से यूसीसी को प्रभावी बनाने का भी आग्रह किया था।

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