क्या एकनाथ शिंदे है Shiv Sena के चुनाव चिन्ह के असली वारिसदार?

न्यूज डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): महाराष्ट्र की राजनीतिक लड़ाई अब खुले सियासी मैदान में है और सुप्रीम कोर्ट इस राजनीतिक परिदृश्य में दखल देने के लिये पूरी तरह तैयार है। अब विभाजित शिवसेना (Shiv Sena) के दोनों धड़े पीछे हटने के मूड में नहीं हैं। और दोनों एक दूसरे को कड़ी टक्कर दे रहे हैं और सत्ता पर काबिज होने के लिये दोनों ने सब कुछ दांव पर लगा दिया है। महाराष्ट्र की सियासी जंग अब असम होते हुए दिल्ली तक पहुंच गयी है।

शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) और उनके साथी विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकायें दायर की हैं, जिस पर आज सुनवाई होने की संभावना है। याचिकायें मुख्य रूप से एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र विधानसभा में विधायक दल के नेता के रूप में हटाकर अजय चौधरी (Ajay Choudhary) की नियुक्ति को चुनौती देती हैं।

दूसरी याचिका विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल (Narhari Jirwal) द्वारा 16 बागी विधायकों को जारी अयोग्यता नोटिस से जुड़ी हुई है, जिसमें विधायकों के परिवारों की सुरक्षा की भी मांग की गयी है। ये मामला न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला (Justice Surya Kant and Justice JB Pardiwala) की अवकाशकालीन न्यायिक पीठ के सामने लिस्टेड किया गया है। शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, दूसरी याचिका विधायक भगत गोगावले (MLA Bhagat Gogavale) की अगुवाई वाले 15 विधायकों की ओर से दायर की गयी है। शिंदे गुट की ओर से पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे (Former Solicitor General Harish Salve) पेश होंगे, जबकि उपाध्यक्ष का प्रतिनिधित्व पूर्व कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) करेंगे। शिवसेना की ओर से कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) कोर्ट में दलीलें पेश करेंगे।

आखिर क्या हैं, याचिका में मुख्य मांगें?

1. महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल द्वारा एकनाथ शिंदे और 15 अन्य विधायकों को जारी अयोग्यता नोटिस पर रोक लगाई जाये।

2. उन्हें निर्देश दिया जाये कि जब तक डिप्टी स्पीकर को हटाने की अर्जी पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक 16 विधायकों की अयोग्यता नोटिस पर कोई कार्रवाई न करें। बागी गुट ने नरहरि जिरवाल को हटाने की मांग की है।

3. डिप्टी स्पीकर के उस फैसले को खारिज कर देना चाहिए, जिसमें उन्होंने अजय चौधरी को विधानसभा में विधायक दल के नेता के तौर पर एकनाथ शिंदे को हटाकर मान्यता दी है।

4. केंद्र सरकार और महाराष्ट्र के डीजीपी को बागी विधायकों के परिवारों को सुरक्षा मुहैया कराने का निर्देश दिया जाये।

आधार जिन पर अयोग्यता नोटिस को चुनौती दी गयी

  • अयोग्यता याचिका विचारणीय नहीं है क्योंकि शिवसेना के पास एकनाथ शिंदे गुट के समर्थन में ज़्यादातर विधायक हैं और उनके पास बहुमत है। इसके अलावा उन विधायकों ने अपनी सदस्यता नहीं छोड़ी है।

  • नोटिस भी लागू करने योग्य नहीं है क्योंकि ये बहुसंख्यक विधायकों की गतिविधियों को चुनौती देता है। ये विधायक मुख्य सचेतक और बहुमत से बनाये गये पार्टी नेता के निर्देश पर काम कर रहे हैं।

  • डिप्टी स्पीकर जिस तरह से काम कर रहे हैं, उससे साफ है कि वो महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार की मिलीभगत से उनके इशारे पर नोटिस जारी कर रहे हैं।

  • डिप्टी स्पीकर ने विधायकों को अयोग्यता नोटिस पर जवाब देने के लिये सिर्फ 48 घंटे का समय दिया है, जबकि उन्हें 7 दिन का समय देना चाहिये था। ये महाराष्ट्र विधानसभा और अयोग्यता नियमों के खिलाफ है।

  • उपाध्यक्ष स्वयं अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे हैं, इसलिए वो स्वयं विधायकों की अयोग्यता के मुद्दे पर फैसला नहीं ले सकते।

शिवसेना के किस गुट को पार्टी का चुनाव चिन्ह रखने का है अधिकार?

केवल एक तरफ तादाद ये सुनिश्चित नहीं करती है कि एकनाथ शिंदे गुट को पार्टी का चिन्ह धनुष और तीर या पार्टी का नाम रखने के लिये मिलता है। अगर शिवसेना को एकनाथ शिंदे के समर्थन में पर्याप्त संख्या में विधायकों के साथ बीच में विभाजित करना था, तो नये गुट को तुरंत एक अलग पार्टी के रूप में मान्यता नहीं दी जायेगी।

दलबदल विरोधी कानून बागी विधायकों की तब तक हिफाजत करता है, जब तक वो किसी अन्य पार्टी में खुद का नहीं मिला लेते हैं।

अगर शिवसेना दो-फाड़ हो जाती है, तो कौन सा गुट ‘असली शिवसेना’ की अगुवाई करता है, ये सिर्फ किसी पक्ष के अधिकतम विधायकों पर निर्भर नहीं करेगा। ये संसद सदस्यों और पार्टी के पदाधिकारी सदस्यों समेत अन्य सांसदों पर भी निर्भर करेगा।

ये तय करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है कि कौन सा गुट मूल पार्टी है और पार्टी के चुनाव चिन्ह की असली मालिक कौन है। चुनाव आयोग उदाहरणों की जांच करके फैसला लेता है कि अतीत में ज़्यादातर विधायक और पदाधिकारी किस ओर झुके थे।

दोनों गुटों को चुनाव आयोग के सामने अपनी बात रखने की मंजूरी दी जायेगी, और अगर दोनों में से कोई भी असंतुष्ट है, तो वो सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं। ऐसे में शिवसैनिकों की राय भी मायने रखेगी। पार्टी कार्यकर्ताओं को भी बहुत बड़ा श्रेय जाता है, जिसके कारण शिवसेना महाराष्ट्र में ताकतवर क्षत्रप बन गयी। शिवसेना का नागरिक निकाय, मुंबई के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन की अगुवाई करने वाली कई यूनियनों पर सीधा नियंत्रण है।

Show Comments (2)

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More