Emergency: साल 1975 में इस तरह Indira Gandhi ने लगायी इमरर्जेंसी, जिससे बदली देश की सियासत

न्यूज डेस्क (प्रियंवदा गोप): 26 जून, 1975 को पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के निर्देशों के तहत पूरे भारत में राष्ट्रीय आपातकाल (Emergency) की घोषणा की। जो 21 महीने तक चला। इस दौरान चुनाव स्थगित कर दिये गये और नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया गया।

46 साल बाद राहुल गांधी कांग्रेस नेता और दिवंगत पीएम इंदिरा गांधी के पोते ने एक कार्यक्रम में कहा कि आपातकाल एक ‘गलती’ थी और उस अवधि में जो हुआ वह ‘गलत’ था।

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने ये भी कहा कि आपातकाल जिसके दौरान संवैधानिक अधिकारों (Constitutional Rights) और नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया गया था, मीडिया को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया था और कई विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था, ‘मौलिक रूप से वो हालात मौजूदा परिदृश्य से बेहद अलग थे।

राहुल गांधी ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौशिक बसु के साथ बातचीत में कहा कि- मुझे लगता है कि ये एक गलती थी। बिल्कुल वो एक गलती थी। और मेरी दादी (श्रीमती गांधी) ने उतना ही कहा। (लेकिन) कांग्रेस ने कभी भी भारत के संस्थागत ढांचे पर कब्जा करने का प्रयास नहीं किया। स्पष्ट रूप से उसके (कांग्रेस पार्टी) पास भी नहीं है वो क्षमता।

लेकिन आपातकाल क्या है और ये कैसे लागू हुआ और इसने इस देश की पूरी राजनीतिक गतिशीलता को कैसे बदल दिया - ये कुछ ऐसा है जो शायद आज की पीढ़ी नहीं जानती। तो यहां हम आपको सरल शब्दों में बताते हैं कि 1975 में क्या हुआ था, जिसे आसानी से स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल कहा जा सकता है।

Emergency लगाने के पीछे Indira Gandhi ने बतायी ये वज़हें

देश में आपातकाल का कारण 'आंतरिक अशांति' को नियंत्रित करना था, जिसके लिए संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस को वापस ले लिया गया था। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने इस चरम कदम को सही ठहराने के लिए तीन कारण बताये- पहला, जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किये गये आंदोलन के कारण भारत की सुरक्षा और लोकतंत्र खतरे में था।

दूसरा कारण बताया गया कि इंदिरा गांधी की राय थी कि तेजी से आर्थिक विकास और वंचितों के उत्थान (upliftment of the underprivileged) लिये ये जरूरी है। तीसरा उन्होंने विदेशों से आने वाली शक्तियों के हस्तक्षेप के खिलाफ चेतावनी दी, जो भारत को संभावित तौर पर अस्थिर और कमजोर कर सकती हैं।

Emergency लगने से पहले की सिलसिलेवार कड़ियां

  • 1971 - संसदीय चुनावों में इंदिरा गांधी ने रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से राज नारायण को हराया था, जिन्होंने बाद में इंदिरा गांधी पर चुनावी कदाचार का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी।
  • जनवरी 1974 - गुजरात में छात्रों ने खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों और राज्य सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन में प्रमुख विपक्षी दल शामिल हुए। इसके चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। नए सिरे से चुनाव कराने की मांग तेज हो गयी। इसके बाद जून 1975 में गुजरात में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस हार गयी।
  • 1974 - बिहार में छात्रों ने इन्हीं मुद्दों के विरोध में आंदोलन शुरू किया। जयप्रकाश नारायण (जेपी) जिन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ दी थी और सामाजिक कार्यों में शामिल थे, ने आंदोलन की अगुवाई की। इसलिये ये मुद्दा तेजी से राष्ट्रीय स्तर पर निकलकर सामने आया। जिसे करीब करीब पूरे देश के समर्थन मिला।

  • 12 जून 1975 - न्यायमूर्ति जगमोहनलाल सिन्हा ने प्रधानमंत्री को उनके चुनाव प्रचार के दौरान सरकारी तंत्र के दुरुपयोग का दोषी पाया साथ ही चुनाव को अमान्य घोषित किया और अगले छह सालों के लिए चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी। हालांकि अदालत ने कांग्रेस को पीएम के रूप में गांधी के लिए एक विकल्प खोजने के लिए 20 दिनों की मोहलत भी दी। फैसले के खिलाफ इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
  • 24 जून 1975 - सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील पर फैसला होने तक उच्च न्यायालय के आदेश पर आंशिक रोक लगा दी और कहा कि वो सांसद रह सकती हैं लेकिन लोकसभा की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकती हैं।
  • 25 जून 1975 - जेपी नारायण ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल राजनीतिक रैली का नेतृत्व किया, जहां उन्होंने इंदिरा गांधी के इस्तीफे के लिए एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की। रेलवे के कर्मचारियों ने भी जॉर्ज फर्नांडीस के नेतृत्व में देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया।
  • 25 जून 1975 - 25 जून की देर रात हड़ताल को देखते हुए इंदिरा सरकार की प्रतिक्रिया के रूप में आपातकाल की घोषण कर दी गयी।

Emergency के दौरान ये सब हुआ पूरे देश भर में

  • सारी शक्तियाँ केंद्र सरकार के हाथों में केंद्रित हो गयी।
  • सरकार ने इस अवधि के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित कर दिया।
  • सभी चुनाव स्थगित कर दिये गये और नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया गया।
  • अधिकांश राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया।
  • प्रेस को सेंसर कर दिया गया था। सभी समाचार पत्रों को प्रकाशित होने वाले लेखों के लिए पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता होती थी।
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • संविधान में निरंकुश तरीके से संशोधन किया गया, खासकर 42वें संशोधन में।
  • ये घोषणा करते हुए एक संशोधन किया गया कि प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • संजय गांधी जिनके पास उस समय कोई आधिकारिक पद नहीं था, उन्होनें प्रशासन पर नियंत्रण हासिल कर लिया।
  • इस अवधि में संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन सामूहिक नसबंदी अभियान चलाया गया।

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