Dussehra Pujan 2020: जानिये दशहरे का मुहूर्त और सम्पूर्ण पूजन विधि

न्यूज़ डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): शारदीय नवरात्रों के पारायण साथ आश्विन शुक्ल दशमी की तिथि को दशहरा (Dussehra) त्यौहार मनाया जाता है। इसके साथ ही वर्षा ऋतु की समाप्ति तथा शरद का आरम्भ हो जाता है। चौमासे में जो मांगलिक काम स्थगित किए गए होते हैं, उनका आरंभ इस दिन के बाद से किया जाता है। इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। परांबा जगतजननी माँ दुर्षा ने इसी दिन महिषासुर (Mahishasura) का संहार किया था। इसीलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई और अधर्म पर धर्म की विजय के रुप में मनाया जाता है। इस साल पितृपक्ष के उपरांत अधिकमास यानि पुरुषोत्तम मास (Purushottam maas) लग जाने के कारण नवरात्रि और दशहरा का त्यौहार एक महीने देर से आ रहे हैं। इस बार दशहरा पर सूर्य तुला राशि और चंद्रमा मकर राशि में होगा। साथ ही धनिष्ठा नक्षत्र के प्रबल योग जातकों के लिए लाभकारी सिद्ध होगें। दशहरे वाले दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन और क्षत्रिय शस्त्र-पूजन करते है।

दशहरा 2020 का मूहूर्त

25 अक्तूबर

विजय मुहूर्त बेला- 01:55 से 02:40 (अपराह्न)

अपराह्न पूजा समय- 01:11 से 03:24 (अपराह्न)

दशमी तिथि का आरंभ- 07:41 (25 अक्तूबर)

दशमी तिथि की समाप्ति- 08:59 (26 अक्तूबर)

दशहरा पूजन (शस्त्र पूजन विधि)

शस्त्र पूजन के लिए जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठे। नित्यक्रिया से निवृति हो स्नान कर, मम क्षेमारोग्यादि सिद्ध्‌यर्थं यात्रायां विजयसिद्ध्‌यर्थं गणपति मातृका मार्ग देवता पराजिता शमी पूजनानि करिष्ये। इस मंत्र का जाप कर दशहरा पूजन का मानस संकल्प ले। घर में रखे सभी शस्त्र एकत्र कर उन्हें गंगाजल से पवित्र कर ले। शस्त्रों पर हल्दी या कुमकुम से तिलक करे। उन्हें सुंगाधित पुष्प और गंध अर्पित करे। शस्त्रों पर शमी वृक्ष के पत्तों का तर्पण जरूर करे। घर के आंगन में गोबर के चार पिण्ड गोल बर्तन जैसे बनाएं। इन्हें  पिंडों को श्री राम समेत उनके अनुजों की छवि माने। इसके बाद गोबर से बने हुए चार बर्तनों में भीगा हुआ धान और चांदी रखकर उसे वस्त्र से ढक दें। तदोपरांत उनकी गंध, पुष्प और द्रव्य आदि से पूजा करनी चाहिए। इसके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके

शमी शमय मे पापं शमी लोहितकंटका।
धारिण्यर्जुन बाणानां रामस्य प्रियवादिनी॥

करिष्यमाणयात्रायां यथाकालं सुखं मम।
तत्र निर्विघ्नकर्त्री त्वं भव श्रीरामपूजिते

इस मंत्र का जाप करें। गोधूलि वेला में ईशान दिशा में भूमि को शुद्ध कर चंदन, कुंकुम और आलता आदि से अष्टदल की छवि उकेरे संपूर्ण मांगलिक और पूजन सामग्री के साथ अपराजिता देवी सहित जया तथा विजया देवियों का मानस आवाह्न करते हुए पूजन करे। शमी का वृक्ष से अखंड विजय श्री के आशीर्वाद का कामना करे। अन्त में शमी के जड़ की मिट्टी को शास्त्र सम्मत विधि विधान के साथ लाकर घर के आसपास किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करें।

Leave a comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More