America vs China: वैश्विक वर्चस्व के अखाड़े में बीजिंग और वॉशिंगटन, तीसरी दुनिया के मुल्क बने प्यादे

America vs China: “आप लोकतंत्र को निगल नहीं सकते। मानवाधिकार आत्मा को बनाए रख सकते हैं लेकिन शरीर को नहीं।” अमेरिका की ओर से प्रायोजित कार्यक्रम समिट ऑफ डेमोक्रेसी (Summit of Democracy) में जाम्बिया के राष्ट्रपति हाकिंडे हिचिलेमा (Hakinde Hichilema, President of Zambia) के भाषण के इस अंश को समझने के लिये ये तथ्य हो सकता है कि दुनिया की ज्यादातर आबादी उन मुल्क में क्यों रहती है जिनके नेता पश्चिमी मूल्यों को साझा नहीं करते हैं? और क्योंकि नयी उभर रही विश्व व्यवस्था के ढ़ांचे और उस पर चीन का दबदबा हो सकता है।

यूएस-केंद्रित आयोजन के रूप में ब्रांडेड होने से बचने के लिये कोस्टारिका, नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया और जाम्बिया की ओर से लोकतंत्र के इस शिखर सम्मेलन की सह-मेजबानी की गयी, जिनके नेता का भाषण लुसाका से प्रसारित किया गया। इस वर्चुअल समिट में 120 देश शामिल थे। मार्च और अप्रैल की शुरुआत में राजनयिक हलचलों में तेज हड़बड़ाहट का एक हिस्सा इस कार्यक्रम में भी देखा गया।

इस बीच जिस खब़र ने दुनिया भर में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं, वो थी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मॉस्को की तीन दिवसीय राजकीय यात्रा। हेग में अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय की ओर से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (President Vladimir Putin) के खिलाफ युद्ध अपराधों के लिये गिरफ्तारी वारंट जारी करने के कुछ ही दिनों बाद यूक्रेन पर युद्ध शी जिनपिंग का ये मास्को दौर हुआ।

अटकलें लगायी गयी कि शी जिनपिंग (Xi Jinping) का ये दौर जंग के शांतिपूर्ण समाधान का रास्ता साफ करेगा बेबुनियादी साबित हुआ। जबकि चीन बार-बार यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा करते हुए संयुक्त राष्ट्र के वोटों से दूर रहा, इस यात्रा ने कोई संदेह नहीं छोड़ा कि रूसी तेल की स्थिर आपूर्ति के लिये चीन की आवश्यकता ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लंघन पर चिंताओं को खत्म कर दिया।

कई अमेरिकी खुफिया विश्लेषकों का मानना है कि चीन यूक्रेन पर युद्ध को काफी करीब से देख रहा है, और इससे वो काफी सब़क भी सीख रहा है, जिसे बीजिंग चीन का हिस्सा मानता है।

ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन (President Tsai Ing-wen) चीनी सरकार के गुस्से को दरकिनार करते हुए कैलिफोर्निया में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष केविन मैककार्थी (Kevin McCarthy) से मिलीं, जिसे वाशिंगटन ने ट्रांजिट स्टॉपओवर माना जाता है। मैककार्थी ने ताइवान को हथियारों की बिक्री जारी रखने और आर्थिक सहयोग को मजबूत करने के लिये अमेरिका की जरूरतों और प्रतिबद्धताओं पर बल दिया।

त्साई-इंग-वेन का कैलिफोर्निया स्टॉपओवर मध्य अमेरिका की यात्रा के आखिर में आया, जहां उनके आने से कुछ दिन पहले उनके मुल्क को दर्दनाक दलबदल का सामना करना पड़ा था, जिसके तहत होंडुरास (Honduras) ने ताइवान के साथ राजनयिक रिश्ते तोड़ लिए और आधिकारिक तौर पर चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। अंदरखाने माना जा रहा है कि होंडुरास ने चेकबुक डिप्लोमेसी के तहत ये काम किया। माना जा रहा है कि चीन होंडुरास को चीन ने एक हाइड्रोइलैक्ट्रिक बांध बनाने के लिये पैसे देने का लालच दिया था।

होंडुरास दलबदल ने ताइवान को सिर्फ 13 देशों के साथ छोड़ दिया जिसके साथ उसके राजनयिक संबंध हैं। साल 2017 के बाद से डोमिनिकन गणराज्य, पनामा, अल सल्वाडोर और निकारागुआ (El Salvador and Nicaragua) सभी ने ताइवान को चीन के पक्ष में धोखा दिया।

चीन के साथ औपचारिक संबंध रखने वाले ज्यादातर लैटिन अमेरिकी मुल्क अब इस तरह के पैटर्न पर राजनयिक अखाड़े में कूदते दिख रहे है। यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के मुताबिक साल 2005 और 2020 के बीच चीन ने लैटिन अमेरिका में 130 बिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है। चीन-लैटिन अमेरिका कारोबार इतनी तेजी से बढ़ा है कि अगले दस सालों में इसके 700 बिलियन डॉलर से ज्यादा तक पहुंचने की उम्मीद है।

जैसा कि “आप लोकतंत्र को खा नहीं सकते” – चीनी मदद या लोन मानव अधिकारों के अवलोकन और लोकतांत्रिक शासन के महत्व पर व्याख्यान से बंधे नहीं हैं।

अफ्रीका में इस रवैये की खुलकर तारीफ की जाती है, जहां चीन की गहरी जड़ें हैं और अमेरिकी कंपनियां खराब बुनियादी ढांचे और भ्रष्टाचार की शिकायत करते हुए यहां निवेश करने से कतराती हैं। यूएस इंस्टीट्यूट फॉर पीस के आंकड़ों के मुताबिक चीन अफ्रीका में निवेश करने को लेकर कम चिंतित है और इसके नतीजन साल 2021 तक 254 अरब डॉलर के कारोबार के साथ य अफ्रीका का सबसे बड़ा दो-तरफा कारोबारी भागीदार बन गया है।

ये उतनी ही बड़ी चुनौती है जितनी लैटिन अमेरिका में अमेरिकी प्रभाव का विस्तार करना।

अफ्रीका के सबसे अधिक आबादी वाले देश नाइजीरिया के उपाध्यक्ष येमी ओसिनबाजो ने अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस के अफ्रीकी दौरे के दौरान एक ट्वीट में कहा कि, “ज्यादातर अफ्रीकी देश चीन के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के बारे में सही नहीं हैं।”

हैरिस जिन्होंने घाना, तंजानिया और जाम्बिया का दौरा किया, इस साल अफ्रीका का दौरा करने वाले 18 अमेरिकी अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल में वो सबसे सीनियर लीडर थी। ट्रेजर सेक्रेटरी जेनेट येलेन (Treasury Secretary Janet Yellen) जनवरी में आई थीं और सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एंथोनी ब्लिंकन ने फरवरी में इथियोपिया और नाइजीरिया (Ethiopia and Nigeria) का दौरा किया था।

उपराष्ट्रपति ने जिन परियोजनाओं का ऐलान किया उनमें लगभग 1 बिलियन डॉलर के नये कार्यक्रम और निवेश शामिल हैं, जो अफ्रीकी कारोबारी महिलाओं को सशक्त बनाते हैं, पश्चिम अफ्रीका में सुरक्षा सहायता के लिये 100 मिलियन डॉलर और तंजानिया के साथ कारोबार को सुगम बनाने के लिये 500 मिलियन डॉलर का निवेश इसमें खासतौर पर शामिल हैं।

राष्ट्रपति जो बिडेन जिन्होंने बीते दिसंबर महीने में अफ्रीकी नेताओं के लिए शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी, ने अगले कुछ सालों में अफ्रीकी महाद्वीप को $55 बिलियन देने का वादा किया है, लेकिन अभी तक इसे लेकर रूपरेखा औप प्लान ऑफ एक्शन तैयार नहीं किया गया है। अफ्रीकी नेता इस तरह की प्रतिबद्धताओं से काफी सावधान रहते हैं क्योंकि ये निश्चित नहीं है कि कोई दूसरा प्रशासन उन पर कायम रहेगा या नहीं।

अफ्रीकी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत करने के लिये यू.एस. को न सिर्फ पहले से पूरी हो चुकी या चल रही परियोजनाओं पर चीन के नफे को पकड़ना है, बल्कि रूसी-अफ्रीकी संबंधों के साथ भी जो गहरे हैं और वापस चले गए  हैं, उनमें नयी रवानगी फूंकनी है।

शीत युद्ध जब सोवियत संघ ने अफ्रीकी मुक्ति आंदोलनों का साथ दिया। अमेरिका के उलट सोवियत संघ ने दक्षिण अफ्रीका की नस्लवादी रंगभेद प्रणाली को खत्म करने के लिए लड़ने वाले गुटों के लिए खुलकर हथियारों समेत तीखों तकरीरों के संग उनका साथ दिया था।

ये दिखाता है कि यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा करने वाले पिछले साल के संयुक्त राष्ट्र महासभा के वोट से दूर रहने वाले 35 देशों में से 17 अफ्रीकी क्यों थे। इनमें दक्षिण अफ्रीका, अंगोला और अल्जीरिया भी शामिल थे।

वहीं दूसरे मोर्चें पर पश्चिमी ताकतों के पक्ष में 141 वोट पड़े। इसे पश्चिमी लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए भारी समर्थन के तौर पर देखते हुए इसक तारीफ की गयी। यूक्रेन पर जंग के नतीजन अहम मिनरल्स और कच्चा माल जैसे सामानों की सप्लाई चैन अफ्रीकी महाद्वीप से होकर गुजरती है। अफ्रीका में इन्हीं चीजों की बहुतायत देखते हुए बीजिंग और वॉशिंगटन अपने पक्ष में माहौल तैयार करते दिख रहे है।

सह-संस्थापक संपादक – राम अजोर

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