Shani dev Worship: इन उपायों से प्रसन्न होते है शनिदेव

न्यूज डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): सृष्टि के न्यायाधीश शनिदेव (Shani dev) की व्रक दृष्टि से जन सामान्य काफी भयभीत रहते है। शनिदेव के ही कारण गजानन को अपना शीश गंवाना पड़ा था। मेघनाद के जन्म के समय रावण समस्त ग्रहों को 11 वें भाव में कैद कर लिया था। रावण के इस चुंगल में  शनिदेव नहीं आये। इसी वज़ह से मेघनाद की मृत्यु हुई। साथ ही रावण कुल अजेय (Invincible) नहीं बन सका। राज हरिशचंद्र को भी शनि के प्रकोप के कारण अपना राजपाट गवाना पड़ा।

हिन्दू धर्म की स्थापित ज्योतिष मान्यताओं में शनि ग्रह के प्रभाव के बारे में काफी विस्तृत विवरण मिलता है। शनि की साढ़ेसाती शांत करने के लिए जातक सदैव तत्पर रहते है। कई लोग इस काम के लिए शनि शिंगणापुर (Shani Shingnapur) जाते है। इसके साथ ही मथुरा में कोकिला वन भी शनि आराधना के मुख्य स्थलों में से एक है। यहां आकर दान पुण्य कर शनि आराधना करने से जातकों के समस्त कष्ट दूर होते है। जो जातक वस्त्र और छाया दान करते है। उनका कष्ट का निवारण जल्द ही हो जाता है। कहा जाता है कि कोकिलो वन में कोयल का रूप धारण कर शनि महाराज ने महारास के दर्शन किये थे। तब से ही इस स्थान को कोकिला वन कहा जाता है।

प्रत्येक शनिवार को इन मंत्रों का जाप करें-

  • ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः।
  • श्री नीलान्जन समाभासं ,रवि पुत्रं यमाग्रजम।
    छाया मार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम ।।
  • ‘नीलद्युति शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशातं वन्दे सदाऽभीष्टकरं वरेण्यम्।।’
  • ॐ शं शनैश्चरायै नम:
  • ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:
  • ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:
  • ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया।
    कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा।।

शनेर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।
दुःखानि नाशयेन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखम।।  (शनिदेव की अर्धांगिनी को प्रसन्न करने हेतु)

  • ऊं कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात

शनि पूजन के नियम

  • शनिदेव की आराधना उनकी प्रतिमा के समक्ष नहीं अपितु शिला की करनी चाहिए। शिला ना मिलने की दशा में शमी या पीपल के पेड़ को भगवान शनि का मूर्त स्वरूप (Tangible form of Lord Shani) मानकर पूजन करना भी श्रेयस्कर माना गया है।
  • प्रत्येक शनिवार में तेल और छाया दान अवश्य करें। सरसों के तेल, उदड़ की दाल, काले कपड़े और लोहा भगवान शनि को अत्यन्त प्रिय है। पूजन के दौरान इन वस्तुओं का प्रयोग अवश्य करें।
  • शनि पूजन के दौरान साधक को अपना चित्त शांत रखना चाहिए। व्यवहार और भाषा की मर्यादा का खास ख्याल रखना चाहिए। इससे साधन में शुद्धता आती है।
  • शनिवार वाले दिन काला तिल और गुड़ चीटों को खिलाये। काले कुत्तों को भोजन दे। मछलियों को आटे की गोलियां खिलायें। जरूरतमंदों को चमड़े की चप्पल दान में दे। इससे शनि का प्रकोप शांत होता है। इस दिन पवनपुत्र हनुमान को पान को भोग लगाकर उनकी आराधना करने से भी शनि शांत होते है।
  • शनिवार को प्रात: काल में ताम्रपात्र में जलभर चीनी और दूध मिलाकर पीपल के पेड़ को अर्घ्य दें। इस दौरान जातक अपना मुंह पश्चिम दिशा में रखे। इस दिन नीली, बैंगनी तथा काले रंग के कपड़े आवश्य धारण करें।
  • रात्रि के आकाश में देखते हुए शनिमंत्रों को जाप करना अमोघ फलदायी माना गया है। रात में मंत्र साधना करने की कोशिश करें।

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