Ram Navmi Special: भगवान राम, कोरोना के मौजूदा हालात और भारतीय राजनीति

अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा….

प्रभु श्रीराम (Prabhu Shriram) समुद्र तट पर ध्यान लगाए बैठे हैं! समुद्र से अनुनय विनय कर रहे हैं कि मुझे और मेरी सेना को लंका जाने भर का रास्ता दे दो!

मान मनौव्वल का तीसरा दिन है! मर्यादा पुरुषोत्तम गुस्से में आ जाते हैं और अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहते हैं-

बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।

बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति॥

लक्ष्मण! तीन दिन बीत गए और ये मूर्ख समुद्र विनय नहीं मान रहा! लगता है बिना भय के प्रीति नहीं होगी इससे!

इसके बाद प्रभु कुछ ज्ञान की बातें करते हैं! बाबा लिखते हैं-

सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति।

सहज कृपन सन सुंदर नीति॥

ममता रत सन ग्यान कहानी।

अति लोभी सन बिरति बखानी॥

क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा।

ऊसर बीज बएँ फल जथा ।।

हे लक्ष्मण! मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति, कंजूस से उदारता की नीति, ममता में फँसे हुए मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शांति की अपेक्षा और कामी से भगवान की कथा- इन सबका हश्र वही होता है जो ऊसर खेत में पड़े बीज का होता है! सब व्यर्थ जाता है!

इसलिए हे लक्ष्मण!

लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥

मेरा धनुष-बाण लाओ! अभी के अभी मैं अग्निबाण से इस समुद्र को सोख डालूँगा!

लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि दुनिया में इतनी भयंकर महामारी (Severe epidemic) आयी हुई है! लोग चौतरफा मर रहे हैं! कुछ लोग मदद कर रहे हैं! दवाएं, इंजेक्शन, ऑक्सीजन बेड वगैरह उपलब्ध करवा रहे हैं! आप कुछ क्यों नहीं कर रहे??

…तो बात ये है भइये, ….कि मैं इसलिए कुछ नहीं कर रहा हूँ कि ये हमारा काम ही नहीं है! इन्ही सब जनकल्याण कार्यों के लिये सरकारें चुनी जाती हैं, जिसमें जनता अपने टैक्स के पैसे से अपनी मनमर्जी के जनप्रतिनिधियों को चुनती है!

ये जनप्रतिनिधि तंत्र (Public representative system) का हिस्सा बनते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि उनके वोटरों को गड्ढा रहित सड़कें, साफ़ सुथरा पेयजल, उत्तम स्वास्थ्य व शिक्षा सेवाएं मुहैया करायी जाएँगी! ऐसे तमाम विषय केंद्र व राज्यों के मध्य बंटे हुए हैं! उसमें हमारा कहीं जिक्र ही नहीं है!

लेकिन इसके लिए सच्चा, ईमानदार, संवेदनशील व जमीन से जुड़ा प्रत्याशी चुनना पड़ता है, जो आपके हर दुःख दर्द में उपस्थित रहे! हमारा काम यहाँ है!

…और हमने बखूबी इसे अंजाम दिया! पूरी कोशिश की लोगों को जगाने की!

बॉर्डर पर सैनिक शहीद हुए, हमने जगाया!

अरबों खरबों के घपले हुए, हमने जगाया!

बेरोजगारी बढ़ी, हमने जगाया!

महंगाई बढ़ी, हमने जगाया!

प्रदूषण पर लोगों को आगाह किया!

मिड डे मील खाकर बच्चे मरे, हमने चेताया!

शिक्षकों पर लाठियां चलीं, हमने चेताया!

किसानों पर वाटर कैनन व आंसूगैस के गोले चले, हमने तब भी आगाह किया!

एयरलाइन्स व बैंककर्मियों की नौकरियां छीन ली गयीं, हमने तब भी आगाह किया!

लेकिन लोग नहीं माने! हमारी सलाह को जाति, धर्म, क्षेत्र, गाय, बकरी, मंदिर, मस्जिद जैसे गौण मुद्दों के नीचे दबा दिया गया! मैं हाथ पकड़ता रहा! लोग मुझे कोहनी मार कर आगे बढ़ गये! ….और अपने बेशकीमती वोट को शराब, मुर्गा, कम्बल, मंगलसूत्र, साड़ी, छाता, दाढ़ी, तिलक जैसी तुच्छ वस्तुओं के बदले बेच डाला!

जिसका नतीजा हुआ कि देश की संसद और विधानसभाओं में ईमानदार प्रत्याशियों की जगह करोड़पति धन्नासेठों, बलात्कार व हत्या के आरोपियों, साम्प्रदायिक जहर उगलने वाले राक्षसों ने ले ली!

अस्पताल, डॉक्टर, ऑक्सीजन, बिस्तर, एम्बुलेन्स- इन सारे मुद्दों को जिन मतदाताओं ने खुद हाशिये पर ढेकला है, आज वे ही हलकान हो रहे हैं!

ऐसा कत्तई नहीं है कि ये सब देखकर हम खुश हैं! तकलीफ़ हमें भी है! ये दिन किसी को न देखने पड़ें, इसी के लिए तो आगाह कर रहे थे!

हम ये भी जानते हैं कि किसी दिन ये महामारी हमारे दरवाजे पर भी दस्तक देगी! चंद लालची मतदाताओं की लालच का खामियाजा हमें भी भुगतना पड़ेगा! थोड़ा बहुत भुगत भी चुका हूँ! लेकिन क्या करें! यही लोकतंत्र है!

इसमें उन्हें भी भुगतान करना पड़ता है, जो मतदान के दिन पिकनिक पर चले जाते हैं!

35% लोगों चुने गए प्रतिनिधियों के फैसले का असर बाकी के 75% लोगों पर भी पड़ता है- जिस दिन ये बात समझ आ जायेगी उस दिन ये सवाल कोई मायने नहीं रखेगा ….कि हम क्यों कुछ नहीं कर रहे!

प्रभु श्रीराम ने जैसे ही धनुष पर वाण चढ़ाया, समुद्र त्राहिमाम त्राहिमाम करता हुआ प्रकट हुआ और प्रभु के चरणों में गिर पड़ा! बोला-

सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे।

छमहु नाथ सब अवगुन मेरे।।

कागभुशुण्डि महराज यहाँ कहते हैं-

काटेहिं पइ कदरी फरइ, कोटि जतन कोउ सींच।

बिनय न मान खगेस सुनु,डाटेहिं पइ नव नीच॥

हे गरुड़जी! चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला काटने पर ही फलता है! ठीक उसी प्रकार, नीच इंसान विनय से नहीं मानता! वह डाँटने पर झुकता है! ठोकर खाने के बाद रास्ते पर आता है! सेकंड वेव के बाद जो लोग बचेंगे, खुद ब खुद रास्ते पर आ जायेंगे!

साभार- कपिल देव

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