Ravidas Jayanti: चुनावी मौसम के बीच संत श्री रविदास दास जयंती के सियासी मायने

कल (16 जनवरी 2022) पूरा देश संत रविदास (Ravidas Jayanti) की जयंती मना रहा था। अब सोचने वाली बात ये कि इसमें खास क्या है? रविदास जयंती हर साल पड़ती है। लेकिन इस बार हर बड़ा नेता रविदास मंदिर में पूजा-अर्चना करता नजर आया। प्रधानमंत्री मोदी सबसे पहले दिल्ली के करोल बाग देवनगर (Karol Bagh Devnagar) स्थित रविदास मंदिर पहुंचे और उनकी तस्वीरें पूरे देश में वायरल हो गयी। और फिर धीरे-धीरे पंजाब और उत्तर प्रदेश के तमाम बड़े नेता रविदास जयंती मनाने लगे।

आखिर इस बार की रविदास जयंती में क्या खास है। पंजाब और उत्तर प्रदेश (Punjab and Uttar Pradesh) के चुनावों में जिस भी पार्टी को संत रविदास का आशीर्वाद मिलता है, उस पार्टी के जीतने की संभावना बढ़ जाती है।

हर साल माघ पूर्णिमा (Magha Purnima) के दिन संत रविदास की जयंती मनाई जाती है। लेकिन इस बार अचानक रविदास जयंती इतनी अहम हो गयी कि सभी दलों के वरिष्ठ नेता रविदास मंदिर में दर्शन करते नज़र आये। यानि सारी सड़कें संत रविदास के मंदिरों की ओर जा रही थीं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Congress General Secretary Priyanka Gandhi Vadra) ने बनारस के रविदास मंदिर में लंगर बांटा और बाद में जमीन पर बैठकर लंगर खाया। ऐसा माना जाता है कि बनारस में जिस जगह पर ये मंदिर बना है, जहां सन् 1450 में संत रविदास का जन्म हुआ था। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Chief Minister Charanjit Singh Channi) ने भी बनारस के उसी रविदास मंदिर के दर्शन किये थे।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बनारस के उसी मंदिर में पूजा-अर्चना की। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Chief Minister Arvind Kejriwal) और पंजाब में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भगवंत मान ने भी जालंधर (Jalandhar) में संत रविदास के मंदिर का दौरा किया, जहां उन्होंने चुनाव पर लोगों से बातचीत भी की। यानि दिन भर रविदास जयंती की चर्चा रही।

अब सवाल ये है कि रविदास जयंती अचानक सभी पार्टियों के लिये इतनी अहम क्यों हो गयी? दरअसल पंजाब की 117 विधानसभा सीटों पर 20 फरवरी को मतदान होना है। यानि वोटिंग में महज चार दिन बचे हैं।

पंजाब भारत का एक ऐसा राज्य है, जिसकी कुल आबादी में सबसे ज्यादा दलित हैं। वहां की कुल आबादी का करीब 32 फीसदी हिस्सा दलित समुदाय से बनता है। इससे भी अहम बात ये है कि दलितों की कुल आबादी का 61 प्रतिशत अकेले रविदासिया समुदाय से आता है। यानि वो समाज जो संत रविदास को अपना गुरु मानता है। और इसीलिए इस समुदाय को अपने साथ लाने के लिये हर पार्टी रविदास जयंती मना रही है।

पंजाब के दोआबा इलाके में रविदासिया समुदाय का सबसे ज़्यादा प्रभाव है। दोआबा का मतलब है दो नदियों के बीच का इलाका। ये दो नदियाँ हैं, सतलुज और ब्यास नदी।

इस इलाके में कुल चार जिले आते हैं और यहां की कुल आबादी 52 लाख है, जिसमें से 12 लाख लोग रविदासिया समुदाय के हैं। और ये 12 लाख लोग यहां की 23 सीटों पर हार-जीत में निर्णायक साबित होते हैं।

साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने इस इलाके में शानदार प्रदर्शन किया था। तब कांग्रेस ने 15 सीटें, अकाली दल ने 5, आम आदमी पार्टी ने दो और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थी। लेकिन इस बार यहां कांटों की टक्कर हो रही है। उसके दो बड़े कारण हैं।

माना जा रहा है कि रविदासिया समुदाय के वोट तीन पार्टियों में बंटे हुए हैं। कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी। आम आदमी पार्टी साल 2017 से इस दौड़ में शामिल हुई है। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जो खुद दलित हैं, इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि अगर वो पिछली बार की तरह इस इलाके में रविदासिया समुदाय को अपने साथ रखने में कामयाब हो जाती है तो उसे इतनी सीटें मिल सकती हैं।

बीजेपी को भी रविदासिया समुदाय से भी काफी उम्मीदें हैं। दरअसल रविदासिया समुदाय चाहता है कि जब देश में फिर से जनगणना शुरू हो तो इस समुदाय को सिख धर्म और हिंदू धर्म के हिस्से के रूप में नहीं बल्कि एक अलग धर्म का दर्जा दिया जाये। और इसके लिये इस समुदाय की ओर से प्रधानमंत्री मोदी को पत्र भी लिखा गया है और भाजपा जानती है कि अगर वो इस समुदाय का विश्वास जीतने में कामयाब हो जाती है तो वो दोआबा क्षेत्र में कुछ सीटें जीत सकती है।

अब जानिये कौन थे संत रविदास? इसके लिये सबसे पहले आपको भक्ति आंदोलन के बारे में समझना होगा। 12वीं और 13वीं शताब्दी में जब उत्तर भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों का नियंत्रण था और हिंदुओं पर अत्याचार किया जा रहा था, तब भक्ति आंदोलन नामक एक सामाजिक अभियान शुरू किया गया।

इस आंदोलन में सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी, संत कबीर दास, मीरा बाई, सूरदास और तुलसीदास जैसे कवि और महान दार्शनिक शामिल थे। इस भक्ति आंदोलन का उद्देश्य हिंदू धर्म में मौजूद रूढ़िवादी मान्यताओं और बुराइयों को दूर करना था।

संत रविदास भी इस आंदोलन की अहम कड़ी थे। माना जाता है कि उनका जन्म साल 1450 में बनारस, उत्तर प्रदेश में हुआ था। कुछ किताबों में ये भी जिक्र मिलता है कि संत कबीर दास और संत रविदास एक दूसरे के समकालीन थे। यानि दोनों एक ही समय में बनारस के महान कवि और विचारक थे।

संत रविदास की आवाज उनके समय में इतनी लोकप्रिय हुई कि उनकी आवाज को विभिन्न समूहों और धर्मों के लोगों ने याद किया। और बाद में सिखों के पवित्र धार्मिक ग्रंथों, जिन्हें श्री आदि-ग्रंथ साहिब कहा जाता है, में संत रविदास की 40 कवितायें शामिल हैं और तब से उन्हें पंजाब में गुरु का दर्जा दिया गया है।

अगर हम सिख धर्म के इतिहास की बात करें तो सिख धर्म में कोई जाति व्यवस्था नहीं है, लेकिन फिर भी इतिहास में पंजाब के दलितों को सिख धर्म अपनाने पर समान दर्जा नहीं मिला, जिसकी वज़ह से अलग-अलग जगहों पर दलित सिखों द्वारा उनके अलग-अलग गुरुद्वारे और डेरे बनाये गये। इन्हीं प्रमुख डेरों में से एक है संत रविदास का, जो पंजाब के जालंधर में मौजूद है।

इस डेरे की स्थापना 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई थी, लेकिन आज ये पंजाब में सभी पार्टियों के लिये बेहद ही अहम जगह रखता है। क्योंकि ये पार्टियां जानती हैं कि रविदासिया समुदाय के समर्थन का मतलब दोआबा की 23 सीटों पर सीधा फायदा है और इसीलिए हर नेता रविदास जयंती मनाता दिखा।

सह-संस्थापक संपादक: राम अजोर

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