Pitru Paksha: वाराणसी का पिशाच मोचन कुंड जहाँ पितरों को मिलती है प्रेत बाधा से मुक्ति

Pitru Paksha: मोक्ष नगरी वाराणसी में चेतगंज थाने के पास पिशाच मोचन कुंड है। गरुड़ पुराण के काशी खंड के अनुसार पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर अवतरण से पहले की है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।

मान्यता के अनुसार यहां स्थित पीपल के वृक्ष पर भटकती आत्माओं को बैठाया जाता है। इस दौरान पेड़ पर सिक्का रखवाया जाता है ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाये और पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें और यजमान भी पितृ ऋण से मुक्ति पा सकें। इस कुंड का बखान गरुड़ पुराण (Garuda Purana) के काशी खंड में भी किया गया है।

सनातन धर्म में पितरों के तर्पण की मान्यता है। श्राद्धकर्म के द्वारा पितरों की आत्मा को तृप्त किया जाता है। 12 महीने के चैत्र से फाल्गुन तक 15-15 दिन का शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष का होता है लेकिन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष से शुरू होता है। पितृपक्ष जिसको कि पितरों की मुक्ति का 15 दिन माना जाता है एवं इन 15 दिनों के अंदर देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध और तर्पण का कार्य होता है, इसके लिए काशी के अति प्राचीन पिशाचमोचन कुंड तीर्थ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है जहाँ पर त्रिपिंडी श्राद्ध (Tripindi Shraddha) होता है और ये पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद के विकारों से मुक्ति दिलाता है। त्रिपिंडी श्राद्ध के दौरान पिशाच मोचन कुंड में पितरों के लिये 15 दिन स्वर्ग का दरवाजा खोल दिया जाता है जो कि उनके मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है ।

गरुड़ पुराण के अनुसार जिन लोगों के पूर्वजों की मौत किसी आकस्मिक दुर्घटना या गैर-प्राकृतिक तरीके से हुई हो उन्हें पिशाचमोचन कुंड में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिये श्राद्ध एवं पिंडदान करने चाहिये। पिशाच मोचन कुंड में श्राद्ध होने के बाद ही 'गया तीर्थ' में किया गया श्राद्ध फलीभूत होता है। पिशाच मोचन कुंड में ये मान्यता है कि हजारों साल पुराने इस कुंड किनारे बैठ कर पितृपक्ष में कर्म कांडी ब्राह्मण से त्रिपिंडी श्राद्ध करवाने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद विकारों से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिये पितृपक्ष के दिनों तीर्थ स्थली पिशाच मोचन पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। ये भी मान्यता है कि वाराणसी (Varanasi) में पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है क्योंकि काशी भगवान शिव की नगरी है।

त्रिपिंडी श्राद्ध कार्य में इस पवित्र तीर्थ पर संस्कृत के श्लोकों (Sanskrit Shlokas) के साथ तीन मिट्टी के कलश की स्थापना की जाती है, जो काले, लाल और सफेद झंडों से सजाये जाते हैं। प्रेत बधाएं तीन तरीके की होती हैं। इनमें सात्विक, राजस, तामस शामिल हैं। इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलवाने के लिये काला, लाल और सफेद झंडे लगाये जाते हैं। इसको भगवान शंकर, ब्रह्म और कृष्ण के ताप्तिक रूप में मानकर तर्पण और श्राद्ध का कार्य किया जाता है।

पिशाचमोचन तीर्थ पर चार प्रकार के श्राद्ध कराये जाते हैं। अकाल मृत्यु को प्राप्त होने व्यक्ति के लिये नारायण बलि और त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है जबकि सामान्य मृत्यु को प्राप्त होने वाले व्यक्ति के निमित्त पारवण और तिथि श्राद्ध का विधान है।

पिशाच मोचन कुंड के बारे में काशी खंड में वर्णन है कि गंगा जी के स्वर्ग से जमीन पर अवतरण के पहले इस विमल कुंड के पास एक वाल्मीकि नाम का कपारधीश्वर का महान  भक्त रहता था। एक बार इसी विमल कुंड के पास वाल्मीकि कि मुलाकात एक पिशाच से होती है, तब वो पिशाच वाल्मीकि को बताता है कि वो गोदावरी नदी के किनारे पर वास करता था जहां उसने बहुत से पाप कर्म किये थे जिसके कारण उसकी मुक्ति नहीं हो पा रही है और उसकी बेचैनी का आलम ये है कि यदि वो किसी जलकुंड के पास स्नान करने के लिये जाता है तो वो जलकुंड भी उसकी प्रेत छाया से दूर भागने लगती है एवं प्यासे होने पर जब वो किसी तरह जल को अपनी अंजुलियों मे लेकर पीने की कोशिश करता है तो उसकी अंजुलियों में जल भी आकर सूख जाता है। इस कारण उसकी आत्मा बेचैन होकर इधर उधर भटक रही है।

पिशाच ने वाल्मीकि से अपनी आत्मा कि मुक्ति के लिये मदद की गुहार लगायी तब पिशाच कि दयनीय अवस्था देखकर कपारधीश्वर के भक्त महान वाल्मीकि को उस पर दया आ गयी तब वाल्मीकि ने उसी विमल कुंड के किनारे पर बैठ कर अपने हाथ में जल लेकर शिव सहस्त्रनाम का पाठ करने लगे एवं जब शिव सहस्त्रनाम का पाठ पूर्ण हो गया तब उन्होनें उस पिशाच को भभूती देते हुये उसे विमल तीर्थ कुंड में स्नान करने को कहा।

नतीजा ये होता है कि इस बार भभूति लगाकर जाने पर बिमल कुंड का जल पिशाच कि छाया से दूर नहीं भागता बल्कि उस पिशाच कि जलकुंड मे स्नान करते ही प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है और उस प्रेत का शरीर जलकुंड मे गल जाता है। कथा के अनुसार प्रेतयोनि से मुक्त होने के बाद पिशाच वाल्मीकि से कहता है कि प्रेतबाधा से ग्रसित जो कोई भी यहां की भभूति को अपने माथे पर लगायेगा, उसे अकाल मृत्यु से मुक्ति मिल जायेगी। पिशाच के मुक्ति के बाद से ही इस कुंड को पिशाच मोचन कुंड के नाम से जाना जाने लगा।

पिशाच मोचन कुंड पर पितृपक्ष में देश के कोने कोने से ही नहीं, बल्कि विदेशों में रहने वाले भारतीय लोग भी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिये पिंडदान करने आते हैं। ये अनंत चौदस से शुरू होकर नवरात्र के एक दिन पहले खत्म होता है। ये लगभग 15 दिनों तक चलता है। यहां दूर-दराज से लोग पिंडदान करने आते हैं। पितृ पक्ष में यहां लाखों की भीड़ होती है। यहां पिंडदान करने से पितरों को अक्षय गति प्राप्त होती है, यहां के बाद ही गया में पिंडदान करने की प्रथा है।

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