Scams In Defence Deals: पुरानी रही हैं रक्षा सौदों में घोटालों की रवायतें

Scams In Defence Deals: हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि साल 2007 से 2012 के बीच जब देश यूपीए सरकार के अधीन था, राफेल फाइटर जेट बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन (French company Dassault Aviation) ने फर्जी चालान की बुनियाद पर भारत में कुछ बिचौलियों को 65 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी। मनमोहन सिंह की सरकार में कौन थे वो लोग, जो राफेल डील करवाने के लिए रिश्वत लेते थे।

भारत में पहला रक्षा घोटाला साल 1948 में हुआ था, जब देश ने सेना के लिये ब्रिटेन से जीपें खरीदी थी। आजादी से लेकर अब तक भारत ने जब भी जीपें खरीदीं, तोपें खरीदीं या विमान खरीदे, हर सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप लगे। भारत पूरी दुनिया में हथियार खरीदने के मामले में दूसरे नंबर पर है, लेकिन फिर भी भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भारत में हथियारों की कमी है।

पश्चिम मोर्चे पर भारत पाकिस्तान के साथ 3,323 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। और पूर्व में चीन के साथ 4,000 किमी लंबी सीमा है। इन दोनों मोर्चों पर भारत के लिये अक्सर युद्ध जैसे हालात रहे हैं और किसी भी युद्ध से निपटने के लिए सेना को हथियारों की जरूरत होती है लेकिन भारत में ऐसा कोई दौर नहीं था जब सेना के पास पर्याप्त हथियार हों। सरकारों और सेना ने हर समय ये माना है कि अगर भारत को पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ एक ही समय में युद्ध लड़ना पड़ा तो हथियारों का मौजूदा बेड़ा युद्ध की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं होगा।

इस कमी का सबसे बड़ा कारण हथियारों की खरीद में देरी है और ये देरी इसलिए है क्योंकि भारत में रक्षा सौदों में अक्सर भ्रष्टाचार और घोटाले के आरोप लगते रहते हैं। फ्रांस के इन्वेस्टिगेटिव जर्नल मेडियापार्ट (Investigative Journal Mediapart) की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक राफेल फाइटर जेट्स (Rafale fighter jets) की खरीद प्रक्रिया में 75 लाख यूरो यानि कि करीब 65 करोड़ रुपये की रिश्वत ली गयी।

ये रिश्वत साल 2007 और 2012 के बीच फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन के जरिये दी गई थी, जब यूपीए सरकार भारत में थी। यानि आरोप है कि इस कंपनी ने यूपीए सरकार में बिचौलियों को 65 करोड़ रुपये रिश्वत के तौर पर दिये ताकि भारत इस डील को जल्द से जल्द फाइनल कर सके। इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि साल 2018 से इस मामले में सभी सबूत केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई और ईडी के पास हैं।

यूपीए सरकार में ये रिश्वत सुषेण गुप्ता नाम को दी गयी थी, जिसका नाम ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले में भी सामने आया था। एक और संयोग ये है कि साल 2007 से 2012 के बीच जब राफेल डील कराने के लिये 65 करोड़ रुपये की रिश्वत ली गई थी, उसी समय ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाला भी हुआ था यानि कि एक ही वक़्त में दो बड़े रक्षा सौदों में घोटाले और रिश्वतखोरी के आरोप हैं।

हथियारों की खरीद के मामले में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। साल 2016 से 2020 के बीच भारत ने सऊदी अरब के बाद अन्य देशों के साथ सबसे ज्यादा रक्षा सौदे किये। इतना ही नहीं पिछले साल दुनिया में जितने भी हथियार खरीदे गये उनमें से 10 फीसदी हथियार अकेले भारत को मिले। इसके अलावा बीते 15 सालों में हमारे देश ने हथियारों की खरीद पर 80 अरब अमेरिकी डॉलर यानि 6 लाख करोड़ रुपये खर्च किये।

अब सवाल ये है कि जब भारत पूरी दुनिया में हथियार खरीदने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है तो भारतीय सेना के पास पर्याप्त हथियार क्यों नहीं हैं? मिसाल के लिये अगर भारत को आज एक ही समय में चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ युद्ध लड़ना है तो कुल 756 लड़ाकू विमानों की जरूरत होगी लेकिन भारतीय वायु सेना के पास सिर्फ 594 लड़ाकू विमान हैं। चीन से ही तुलना करें तो भी भारत की ताकत थोड़ी कम है। जैसे चीन के पास 74 पनडुब्बियां हैं, वैसे ही भारत के पास 16 पनडुब्बियां हैं। चीन के पास 2 विमानवाहक पोत हैं जबकि भारत के पास सिर्फ 1 विमानवाहक पोत है।

कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष गाहे बगाहे आरोप लगाता रहा है कि भारतीय सेना टू फ्रंट वॉर (Two Front War) के लिये तैयार नहीं है और सरकार भी मानती है कि सेना के पास हथियारों की कमी है तो ये कमी क्यों है, आपको इसे समझना होगा। दरअसल आजादी के कुछ महीने बाद ही भारत ने हथियारों का आयात करना शुरू कर दिया था। और इस खरीद के साथ ही रक्षा सौदों में घोटालों की काली परंपरा भी शुरू हो गयी।

साल 1948 में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ब्रिटेन से 200 नई जीप खरीदने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये लेकिन सौदे के उल्ट उस समय भारतीय सेना को सिर्फ 155 जीप ही डिलीवर की गयी। बाद में जब इस पर विवाद हुआ तो तत्कालीन अंतरिम सरकार पर रक्षा सौदे में घोटाले का आरोप लगा। और ये भी कहा गया कि वीके कृष्ण मेनन ने इस सौदे की आड़ में मोटी रिश्वत ली। ये वही वीके कृष्ण मेनन थे, जिन्हें नेहरू का बेहद करीबी माना जाता था और जो बाद में भारत के रक्षा मंत्री बने। साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी उनके पास रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी थी।

साल 1987 में लंबे इंतजार के बाद भारत सरकार ने स्वीडन की एक कंपनी के साथ बोफोर्स तोपों (Bofors Cannon Scam) की खरीद का सौदा किया तो इसमें भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। कहा गया था कि तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को इस सौदे के लिये 64 करोड़ रुपये की रिश्वत मिली थी। साल 1989 के लोकसभा चुनाव में ये मुद्दा बहुत बड़ा हो गया, जिसके कारण राजीव गांधी की सरकार बुरी तरह हार गयी। इस घोटाले की वजह से बोफोर्स तोप की खरीद में कई दिक्कतें आयी, जिसका सीधा असर भारतीय सेना पर पड़ा।

कुछ इसी तर्ज पर साल 2000 में तत्कालीन भारत सरकार ने इस्राइल के साथ 200 बराक मिसाइलों का सौदा (Barak Missiles Deal) किया लेकिन बाद में आरोप लगे कि सरकार ने इन मिसाइलों को ऊंचे दामों पर खरीदा था, जिसका इस रक्षा सौदे पर भी बुरा असर पड़ा और सेना को समय पर ये मिसाइलें नहीं मिल सकीं।

कुछ इसी क्रम में यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान 12 वीवीआईपी हेलीकॉप्टरों की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप लगे और इस घोटाले को साल 2013 में अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला (AgustaWestland scam) के नाम से जाना गया। ये घोटाला 64 करोड़ रुपये का बताया गया और अब राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद में भी इसी तरह के आरोप लगाये जा रहे हैं। गौर करने वाली बात ये है कि इन सभी मामलों में भ्रष्टाचार के आरोप कभी साबित नहीं हुए लेकिन सेना को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा।

दरअसल जब रक्षा खरीद सौदे में घोटाले के आरोप लगते हैं तो पूरी व्यवस्था चरमरा जाती है और अगर मामला कोर्ट में जाता है तो हथियार हासिल करने में सालों लग जाते हैं। इससे रक्षा सौदे में पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं। साथ ही सेना को भी काफी नुकसान होता है। और यही वजह है कि भारत रक्षा के क्षेत्र में बड़ा खिलाड़ी होने के बावजूद हथियारों की कमी से जूझ रहा है।

सह-संस्थापक संपादक: राम अजोर

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