Pausha Putrada Ekadashi: पौष पुत्रदा एकादशी का मुहूर्त, कथा, विधि और मंत्र

नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): हिन्दू मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक वर्ष दो बार पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) आती है। पहली पौष (दिसंबर-जनवरी) माह में और दूसरी श्रावण (जुलाई-अगस्त) के दौरान आती है। साधक यदि पूर्ण भक्तिभाव और समर्पण से व्रत के नियमों का पालन करें तो उसे यशस्वी पुत्र रतन की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस व्रत के प्रभाव से संतान दीर्घायु, निरोगी और तेजवान होती है। निस्संतान दंपत्ति (Childless couple) इस व्रत का खास तौर से पालन करते हैं। ये व्रतपूर्ण रूप से निराहार और निर्जला है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप लड्डू गोपाल को पंचामृत अभिषेक करवाने का विशेष महात्मय है।

पौष पुत्रदा एकादशी का मंगल मुहूर्त

एकादशी तिथि का आरंभ- 23 जनवरी रात्रि 08 बजकर 56 मिनट से 

एकादशी तिथि की समाप्ति- 24 जनवरी रात्रि 10 बजकर 57 मिनट तक

पौष पुत्रदा एकादशी का पारणा मुहूर्त- 25 जनवरी 2021 को प्रात: 07 बजकर 49 मिनट से 09 बजकर 06 मिनट तक

पारण की समयावधि- 2 घंटे 8 मिनट

पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत विधि

  • दशमी तिथि को दूसरे प्रहर में भोजन के पश्चात् सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। इस दौरान सात्विक भोजन ग्रहण करने के साथ साधक ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • व्रत वाले दिन ब्रह्मकाल में शैय्या त्याग दें। नित्यक्रया और स्नानादि के बाद भगवान विष्णु का मानस स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  • संकल्प पश्चात तुलसीदल, पुष्प, पंचामृत, गंगाजल और तिल से भगवान विष्णु को षोडशोपचार स्तुति करे। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  • यदि किसी कारणवश (मधुमेह, केलेस्ट्रॉल या रक्तचाप) व्रती निराहार और निर्जला होने में असमर्थ है तो, संध्याकाल में दीपदान के बाद व्रती फलाहार कर सकते है।
  • अगले दिन यानि द्वादशी तिथि पर नित्यक्रया और स्नानादि के पश्चात पूजन और रसोई तैयार करें। किसी ब्राह्मण या गरीब को श्रद्धापूर्वक भोजन करवाकर उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे। जिसके बाद व्रती पौष पुत्रदा एकादशी का पाराण कर सकते है। दान में गर्म वस्त्र, कंबल, तिल और अन्न देना अतिउत्तम माना गया है।

पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा

अर्जुन की याचना पर पौष पुत्रदा एकादशी की कथा भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें सुनाई थी। कथा कुछ इस प्रकार है- भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नामक प्रजाप्रिय राजा राज करता था। धर्मानुसार आचरण करते हुए वह अपना राजपाट चला रहा था। उसके कोई संतान ना थी। जिसका संताप लगातार उसे सताता रहता था। उसके द्वारा अर्पित किये गये तर्पण और पिंड पितृ देवता और पूर्वज बड़े भारी मन से स्वीकारते थे। पितृ देवताओं और पूर्वजों को लगता था कि सुकेतुमान के पश्चात उन्हें कोई पिंड अर्पित करने वाला नहीं होगा।

राजा और प्रजा सहित सभी लोग इस बात से बहुत व्यथित थे। बिना पुत्र के पितृ ऋण से मुक्ति संभव नहीं है। इसी चिंता में उद्विग्न हो, एक दिन राजा घोड़े पर सवार होकर बिना बताये महल से निकल गया। अकेले जंगल में विचरण करते हुए उसका मन शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। एकाएक राजा सुकेतुमान (King suketuman) को कमल पुष्पों से परिपूर्ण एक सरोवर नज़र आया। जहां कई सिद्ध योगी ऋषि मुनि वेद मंत्रों को गान कर रहे थे। दिव्य वातावरण को देख राजा वहां खिंचता चला गया। सुकेतुमान ने वहां उपस्थित सभी सिद्ध पुरूषों को नमन किया।

राजा के भक्तिभाव पूर्ण आचरण से सिद्ध योगी, ऋषि मुनि सभी अत्यंत प्रसन्न हुए। राजा उन सभी से अपने मन की व्यथा कह सुनाई। ऋषियों ने उनसे अर्धांगिनी सहित पुत्रदा एकादशी का व्रत सम्पूर्ण श्रद्धाभाव से करने का विचार दिया। राजा वापस अपने राज्य में आये और पौष पुत्रदा एकादशी के व्रत का संपूर्ण विधि विधान के साथ पालन किया। व्रत के मंगल प्रभाव से राजा को यशस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिससे संपूर्ण प्रजा में हर्ष व्याप्त हो गया। राजा के समस्त पूर्वज और पितृ देवता भी तुष्ट हुए।

इन मंत्रों का करे जाप

  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
  • ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।
  • ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
  • ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। 

ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

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