Manipur Crisis: नगा समुदाय के एमएलए भी हुए लामबंद, अमित शाह से करेगें मुलाकात, कहा मणिपुर समझौते में हमें भी करें शामिल

नई दिल्ली (प्रतिष्ठा भारद्वाज): Manipur Crisis: मणिपुर में ताजा हिंसा भड़कने के बाद सूबे के 10 नागा विधायकों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक करने से ठीक एक दिन पहले बीते सोमवार (5 जून 2023) को नई दिल्ली पहुंचे। विधायकों के साथ बाहरी मणिपुर सांसद लोरहो फोजे (MP Lorho Foje) भी थे, जो कि भाजपा की सहयोगी नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF- Naga People’s Front) से हैं।

नागा विधायक दल में एनपीएफ के पांच विधायक शामिल हैं: मणिपुर के परिवहन मंत्री खाशिम वासुम, लीशियो कीशिंग, अवांगबो न्यूमाई, राम मुइवा और लोसी दिखो। दो विधायक, एस एस ओलिश और डिंगांगलुंग गणमेई, एन बीरेन सिंह की अगुवाई वाली सत्तारूढ़ भाजपा के हैं, जबकि एन काइसी और जनहेमलुंग पनमेई (Ann Kayisi and Janhemlung Panmei) कोनराड संगमा के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट पीपुल्स पार्टी (NPP- Nationalist People’s Party) से हैं, जो कि भाजपा की सहयोगी भी है।

शाह के साथ बैठक की तैयारी में सोमवार सुबह नगा समुदाय (Naga community) के बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता भी जुटे। हालांकि नागा समुदाय मणिपुर में हिंसा में शामिल नहीं रहा है, जो कि मैतेई को संभावित एसटी दर्जे को लेकर मैतेई और आदिवासी कुकी के बीच रहा है, इसके प्रतिनिधियों ने शाह के साथ बैठक का अनुरोध किया था, जब उन्होंने इस महीने की शुरुआत में मणिपुर का दौरा किया।

मामले को लेकर प्रतिनिधिमंडल के सदस्य ने ट्रैंडी न्यूज नेटवर्क को बताया कि “उस समय, उनके (गृहमंत्री अमित शाह) पास हमसे मिलने का वक्त नहीं था। लेकिन उन्होंने हमें 6 जून को मिलने के येए कहा था। इसलिए हम यहां हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि, “आज सिविल सोसाइटी के साथ बैठक के दौरान नागा समुदाय के निर्वाचित प्रतिनिधि और सिविल सोसाइटी के सदस्य एक ही मंच पर हैं। हम चिंता हैं कि भारत सरकार की ओर से समाधान अकेले एक समुदाय के लिये नहीं बल्कि पूरे इलाके के लिए होना चाहिये। सिर्फ एक समुदाय के लिये समाधान की कवायद पूरे क्रम के बेमतलब कर देगी। इससे कुछ हल नहीं होगा। केंद्र सरकार को संतुलन बनाना चाहिए।”

प्रतिनिधिमंडल से जुड़े एक अन्य सदस्य ने कहा कि- “हम चल रही हिंसा के बारे में चिंता जतायेगें। मौजूदा हालातों में ये नागा समुदाय पर किसी भी तरह का कोई असर नहीं डालता है, लेकिन हमें ये जानने की जरूरत है कि ऐसे हालातों से कैसे निपटा जाये। फिलहाल हम कुकी समुदाय के साथ एक संभावित समझौते को लेकर चिंतित हैं – जिसका इशारा गृह मंत्री अमित शाह ने दिया है। ये समझौता नागा जनजातियों पर सीधा असर डालेगा है। ऐसा इसलिये है क्योंकि ज्यादातर जमीनों पर कुकियों का मालिकाना हक़ है और वो ऐतिहासिक तौर पर नागाओं से जुड़े होने का दावा करते हैं। संभावित समझौते में इस पहलू को पुख़्ता तौर पर दरकिनार किया जायेगा, ऐसे में इस समझौते को कबूल कर पाना मुश्किल होगा।”

कुकी-ज़ोमी समुदाय से जुड़े नागरिक समाज के कार्यकर्ता हिंसा के मद्देनजर अलग प्रशासन के लिये दबाव डाल रहे हैं, जिसमें अब तक कम से कम 98 लोग मारे गये हैं और कई सैकड़ों लोग अंदरूनी तौर पर विस्थापित हुए हैं।

बता दे कि कुकियों और नागाओं ने औपनिवेशिक काल से दुश्मनी भरे रिश्ते साझा किये हैं, और अतीत में दोनों के बीच जातीय संघर्ष भी हुए हैं। साल 1990 के दशक की शुरुआत में कुकी विद्रोह ने मणिपुर के नागाओं के साथ जातीय संघर्ष के बाद रफ्तार पकड़ी, साथ ही कुकी जनजातीय समुदाय ने नागा हमले के खिलाफ खुद को तैयार किया। माना जाता है कि साल 1993 में टेंग्नौपाल में NSCN-IM ने 115 कुकी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया था। आज भी कुकी समाज उस दिन को याद करते हुए  ‘ब्लैक डे’ मनाता है।

कुकी-ज़ोमी विद्रोही गुट बड़े पैमाने पर मणिपुर के चुराचंदपुर जिले से बाहरी इलाके में रहता है हैं, लेकिन कानपोकपी और चंदेल जिलों (Kanpokpi and Chandel Districts) में भी इसकी ठीकठाक मौजूदगी हैं, जो कि मुख्य रूप से मोरेह के भारत-म्यांमार सीमावर्ती शहर में हैं। केंद्र सरकार के साथ नागालैंड विद्रोही गुट एनएससीएन-आईएम के समझौते के एक दशक बाद उन्होंने साल 2008 में भारत सरकार के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एसओओ) समझौता किया। हालाँकि विद्रोही गुटों के साथ शांति वार्ता, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशासन के तहत बहुत बाद में शुरू हुई थी।

सूत्रों के मुताबिक फिलहाल कुकी सोओ गुटों और भारत सरकार के बीच जिस शांति समझौते पर चर्चा हो रही है, वो प्रादेशिक परिषदों की अवधारणा की बुनिया पर टिका होगा। इन परिषदों से जनजातियों को खासतौर से वित्त के नियंत्रण के मामले में कहीं ज्यादा स्वायत्तता मिलने की उम्मीद है।

कुकी गुटों ने कुकी-ज़ोमी और नागा जनजातियों के वर्चस्व वाले 10 पहाड़ी जिलों को दो क्षेत्रीय परिषदों में बांटने के लिये कहा है। दूसरी ओर बीरेन सिंह सरकार ने 10 क्षेत्रीय परिषदों का प्रस्ताव दिया है, जो कि हर पहाड़ी जिले के लिये एक है। केंद्र सरकार ने 2:2:1 विभाजन का प्रस्ताव दिया था, ये पेशकश जोमी विद्रोही गुटों की ओर से समर्थित एक प्रस्ताव था।

गौरतलब है कि ये पता चला है कि मैतेई प्रादेशिक परिषद की अवधारणा के तहत नहीं आता हैं। नागा समुदाय के भी अब इसका विरोध करने की संभावना है, खासतौर से राज्य में कुकी और ज़ोमी जनजातियों के लिये प्रशासनिक क्षेत्रों के परिसीमन के बारे में।

इस मामले को लेकर एक नगा कार्यकर्ता ने ट्रैंडी न्यूज नेटवर्क को बताया कि “केंद्र सरकार से बात करने की दरकार ये है कि समझौता हमें अच्छी तरह से प्रभावित करता है, ना कि सिर्फ कुकी-ज़ोमी जनजातियों को। समाधान के लिये परामर्श प्रक्रिया का दायरा बहुत व्यापक होना चाहिए और इसमें नागाओं को भी शामिल किया जाना चाहिये। केंद्र सरकार किसी एक समुदाय से बातचीत करके जनजातियों के लिये परिषदों का निर्धारण नहीं कर सकती है। सिर्फ निर्वाचित प्रतिनिधियों से परामर्श करना ही काफी नहीं है। सरकार को नागा नागरिक समाज से भी सलाह-मशविरा करने की जरूरत है।”

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