Indian Economy: मौजूदा हालातों में दीर्घकालीन आर्थिक सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था की पहली जरूरत

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में निराशाजनक आंकड़े देखे गये। बीती मई 2021 के दौरान बेरोजगारी दर 11.9 प्रतिशत तक पहुंच गयी और बीते जून में बढ़ती रही। नतीज़न एक करोड़ नौकरियों का नुकसान हुआ और घरेलू आय में 97 फीसदी की कमी आयी।

डेलॉयट के सर्वेक्षण के अनुसार खासतौर से ग्रामीण भारत में उपभोक्ता की चिंता अब तक के उच्चतम स्तर पर है। सरकार के अनुमानों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी में 7.3 प्रतिशत की कमी आयी है।

हम इस आर्थिक संकट में कैसे पहुँचे और हम इससे कैसे बाहर निकलेंगे?

पश्चिमी देशों की चीन के साथ रणनीतिक समस्यायें हैं, जो हाल ही में नाटो शिखर सम्मेलन के दौरान स्पष्ट रूप से सामने आया। ये भारत के लिए सकारात्मक है क्योंकि मौजूदा हालातों में चीन द्वारा प्रदान की जाने वाली ट्रिलियन-डॉलर की सप्लाई चेन नई दिल्ली के हाथों में आ सकती है।

भारत के पास निर्माण और मैन्युफैक्चरिंग के लिये जरूरी विशाल भूमि संसाधन, शिपिंग के लिए विशाल तटरेखा, अर्ध-कुशल और कुशल लेबर फोर्स सब कुछ है।

ये पहलू भारत को साम्यवादी राष्ट्र चीन का विकल्प बनने में मदद कर सकते हैं। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी संकट में है जो कि कोविड-19 महामारी से बहुत पहले शुरू हुआ था।

विमुद्रीकरण और जीएसटी लागू होने के बाद हमारी जीडीपी वित्त वर्ष 2017 में 8 फीसदी से गिरकर वित्त वर्ष 2020 में 4 प्रतिशत हो गयी। ये देश में कोरोना के आने से पहले की बात है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत की जीडीपी साल 2016-17 में 8.26 फीसदी से घटकर साल 2019-20 में 4.2 फीसदी और साल 2020-21 में -7.3 प्रतिशत हो गयी।

अप्रैल और मई 2020 के महीनों में देशव्यापी लॉकडाउन के बाद से भारतीय श्रम बाजार (Indian labor market) अपनी सबसे बुरे हालातों से गुजरा। जैसा कि हम दूसरी लहर के बाद अनलॉक की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे में अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का एक तरीका सरकारी खर्च।

दुख की बात है कि महामारी की दूसरी लहर के लिये केंद्र सरकार की राजकोषीय प्रतिक्रिया (Fiscal Response) हल्की रही है। अर्थव्यवस्था को पटरी से उतरने से रोकने के लिए कोई राजकोषीय प्रोत्साहन नहीं होने के वज़ह से केन्द्र सरकार द्वारा अप्रैल 2021 में भारी कर संग्रह करने के बावजूद सरकार आवंटित बजट 2021-22 को आनुपातिक आवंटन के आधार पर खर्च करने में भी मजबूत नहीं दिखायी दी।

अप्रैल 2021 में सरकार ने 2.27 लाख करोड़ रुपये खर्च किये, जो कि सालाना बजटीय खर्च 34.8 लाख करोड़ रुपये का महज 6.5 फीसदी था। ऐसे वक़्त में जब आम आदमी नौकरी छूटने और वेतन कटौती के दौर से गुजर रहा है, सरकार को खर्च बढ़ाना चाहिये था। दिलचस्प बात ये है कि इसमें कमी आयी है।

अप्रैल 2021 में सरकार का खर्च बीते 2020 के इसी महीने (अप्रैल 2020) के मुकाबले 26.2 प्रतिशत कम दर्ज किया गया। डेलॉयट सर्वेक्षण के अनुसार, “45 प्रतिशत उपभोक्ता अपने स्वास्थ्य, वित्तीय कल्याण और अपने विस्तारित परिवार के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं।

बाद में पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी का असर महंगाई पर पड़ा। मई में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 6.3 प्रतिशत हो गयी, जबकि थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 12.9 प्रतिशत के उच्च स्तर रिकॉर्ड पर पहुंच गयी।

भारतीय कामकाजी मध्यम वर्ग मुद्रास्फीति और वेतन कटौती के साथ कठिन दौर से गुजर रहा है, प्रत्यक्ष करों का संग्रह दोगुना हो गया है। 2021-22 के लिए शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह (Net Direct Tax Collection) पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि के दौरान इकट्ठा किये गये 927.6 बिलियन रुपये की तुलना में 100.4 प्रतिशत बढ़कर 1.9 ट्रिलियन रुपये हो गया है। इसके ठीक विपरीत अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय (एपीयू) के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट द्वारा तैयार की गयी एक रिपोर्ट में कहा गया कि 230 मिलियन अतिरिक्त भारतीय राष्ट्रीय न्यूनतम गरीबी रेखा से नीचे आ गये हैं।

मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने एक साक्षात्कार में कहा कि- अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का तरीका कोरोना टीकाकरण के माध्यम से जुड़ा हुआ है। इसके परिणामस्वरूप व्यापार और धन का आदान-प्रदान तेजी से शुरू होगा। पूंजीगत व्यय फ्रंट-लोडिंग और अनलॉकिंग अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभायेगा।

आर्थिक संघर्ष से लड़ना आसान नहीं होगा लेकिन स्पष्ट और कड़े कदम भारी अंतर ला सकते हैं। संसद में पूर्ण बहुमत वाली केंद्र सरकार के पास निर्णय लेने के लिये आवश्यक सभी शक्तियाँ हैं। साल 2019 में सरकार ने एक राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन योजना जारी की, जिसके तहत आगामी पांच सालों में 120 ट्रिलियन रुपये के पूंजीगत व्यय की रूपरेखा तैयार की गई। इसमें तेजी लाने की जरूरत है।

कोविन वेबसाइट के बावजूद भारत में टीके अभी भी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। इसे केंद्र और राज्य सरकारों को गंभीरता से लेना होगा। जिलाधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिये, भले ही उनके क्षेत्र का एक अस्पताल सभी आयु समूहों के लिये टीकाकरण प्रदान करने में असमर्थ हो। इससे तीसरी लहर के खिलाफ टीकाकरण में तेजी आयेगी और इस बार हमें अच्छी तरह से तैयार रहना होगा।

क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक सुधार लगातार जारी रहना चाहिये और स्टार्ट-अप को बढ़ावा दिया जाना चाहिए क्योंकि भारत अब वैश्विक स्तर पर अमेरिका और चीन के बाद यूनिकॉर्न के मामले में तीसरे पायदान पर है। भारत में नये स्टार्ट-अप और नवाचार उद्यमियों (Start-up and Innovation Entrepreneurs) का कुल वित्तीय मूल्यांकन 90 बिलियन डॉलर के करीब बैठता है।

आज एक आम मध्यवर्गीय भारतीय उसी दर पर समय पर ईएमआई का भुगतान करता है। वो काम करते हुए और दूर जगहों पर रहकर भी घर में बड़ों का ख्याल रखता है। उसे लॉकडाउन के कारण वेतन में कटौती के बावजूद उसी दर पर प्रत्यक्ष कर का भुगतान करना पड़ रहा है। उसे अभी भी आर्थिक मोर्चे पर सरकार से कोई राहत नहीं मिली है। ये बदलना होगा। अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये पुख़्ता कदमों को उठाये जाने की जरूरत है क्योंकि मौजूदा हालातों में ये सुधार बेहद जरूरी है।

राम अजोर- सह-संस्थापक संपादक

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