Kremlin का खुलासा, बगावत के पांच दिन बाद हुई थी वैगनर चीफ़ येवगेनी प्रिगोझिन और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात

एजेंसियां/न्यूज डेस्क (अमित त्यागी): क्रेमलिन (Kremlin) ने आज (10 जुलाई 2023) कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Russian President Vladimir Putin) ने 29 जून को वैगनर चीफ़ येवगेनी प्रिगोझिन (Wagner Chief Yevgeny Prigozhin) से मुलाकात की, ये मुलाकात वैगनर ग्रुप की ओर से की गयी बगावत के ठीक पांच दिन बाद हुई थी। जब वैगनर ग्रुप के लड़ाके जंगी मैदान छोड़कर वापस मास्को की तरफ लौट रहे थे, ठीक उसके 120 घंटे बाद पुतिन और प्रिगोझिन एक दूसरे से मिले थे।

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव (Dmitry Peskov) ने मीडिया को बताया कि पुतिन ने यूनिट कमांडरों समेत 35 लोगों को बैठक में उन्हें आने का न्यौता दिया था और ये मीटिंग लगातार तीन घंटे तक चली। पेसकोव ने कहा कि, वैगनर कमांडरों ने पुतिन से कहा कि वो उनके सैनिक हैं और उनके लिये वो लड़ना जारी रखेंगे।

प्रिगोझिन की अगुवाई में हुई क्रेमलिन विरोध बगावत में वैगनर ग्रुप के लड़ाकों ने दक्षिणी शहर रोस्तोव (Rostov) पर नियंत्रण कर लिया, इन हालातों के बीच पुतिन अपना कार्यकाल संभालने के बाद से पहली बार रूसी सत्ता पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिये सबसे गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ा। बता दे कि 1999 के दिसंबर महीने में रूस के सर्वोपरि नेता के तौर पर व्लीदिमीर पुतिन ने पहली बार राष्ट्रपति पद संभाला था।

माना जा रहा है कि बगावत को लेकर वैगनर चीफ़ येवगेनी प्रिगोझिन और राष्ट्रपति व्लीदिमीर पुतिन के बीच बेलारूस (Belarus) के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको (President Alexander Lukashenko) ने सुलह करवायी, साथ अपनी जोरदार मध्यस्थता का इस्तेमाल करते हुए वैगनर ग्रुप और क्रेमलिन के बीच के तनाव को खत्म कर दिया। इसके बाद पुतिन ने अराजकता और गृहयुद्ध को टालने के लिये अपनी सेना और सुरक्षा सेवाओं को धन्यवाद दिया।

इस मामले पर प्रिगोझिन का कहना है कि बगावत का मकसद पुतिन सरकार को उखाड़ फेंकना नहीं था, बल्कि सेना और रक्षा प्रमुखों को यूक्रेन में उनकी भूलों और गैर-पेशेवर कामों के लिए इंसाफ के कटघरे में लाना था। क्रेमलिन और वैगनर ग्रुप के बीच सौदे की शर्तों के तहत प्रिगोझिन को बेलारूस के लिये रवाना होना था, लेकिन लुकाशेंको ने कहा कि पिछले हफ्ते वो रूस में वापस आ गये थे और वैगनर लड़ाकों ने अभी तक बेलारूस में नहीं पहुँचे है। जिससे कि इस समझौते के लागू होने पर बड़े सवालिया निशान लग रहे हैं।

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