Kashmir में गैरकश्मीरियों की हत्यायें और विस्थापन के पिछले दरवाज़ें

Kashmir: आज हमारे पास एक बेहद ही अहम सवाल है। क्या आप अपने ही देश में किसी को अप्रवासी कह सकते हैं? क्या आप भारत के किसी अन्य राज्य में रोजगार के लिये नहीं जा सकते? और अगर भारत का कोई नागरिक अपने गृह राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में रोजगार के लिये जाता है, तो क्या यह कहकर उसकी हत्या कर दी जायेगी कि वो उस राज्य का मूल निवासी नहीं है? और अगर ये हत्यायें धर्म के नाम पर हो रही हैं तो आप क्या कहेंगे?

कश्मीर में इन दिनों यही हो रहा है। वहां रोजगार के लिये गये लोगों को देखा जाता है, उनके नाम पूछे जाते हैं और अगर वे गैर-मुस्लिम (Non Muslim) पाये जाते हैं, तो उन्हें मार दिया जाता है। आतंकियों की इस साजिश में पाकिस्तान की ISI और अफगानिस्तान के तालिबान के पैरों के निशान साफ ​​दिखाई दे रहे हैं। आज हम आपको ISI के उस टूल किट के बारे में बतायेगें, जिसके तहत आतंकवादी कश्मीर में ऐसी स्थिति पैदा करना चाहते हैं कि एक भी गैर-मुस्लिम नागरिक न बचे और भारत के लोग वहां जाने की सोच से ही डरने लगें।

कश्मीर के कुलगाम, पुलवामा और बडगाम जैसे जिलों में आतंकियों के डर से बड़ी संख्या में हिंदू पलायन (Hindu exodus) कर रहे हैं, लेकिन हमारे देश का एक खास तबका इन लोगों को ‘गैर-देशी’ यानि भारत के दूसरे राज्यों के नागरिक बता रहा है और आतंकवादी चाहते हैं कि भारत के किसी भी राज्य का कोई भी नागरिक कश्मीर को अपने देश का हिस्सा मानने की हिम्मत न करे।

भारत का संविधान (The constitution of India) देश के नागरिकों को समान अधिकार देता है। ये धर्म, जाति और राज्य के आधार पर भेदभाव नहीं करता है लेकिन ये भेदभाव कश्मीर में उन लोगों के साथ हो रहा है जो भारत के दूसरे राज्यों से गये हैं। जब आतंकवादी कश्मीर में दूसरे राज्य के व्यक्ति को निशाना बनाते हैं, तो उसके लिए 'गैर-देशी' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। आज हम आपसे पूछना चाहते हैं कि क्या भारत के 100 करोड़ हिंदुओं को कश्मीर में अप्रवासी माना जायेगा? क्या कश्मीर में उनकी स्थिति बदल जाती है?

अकेले इसी महीने कश्मीर में अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है और इनमें ज्यादातर वे लोग हैं जो काम की तलाश में दूसरे राज्यों से कश्मीर आये थे। अब तक हुए सभी हमलों में आतंकियों ने पहले शख्स का आईडी कार्ड चेक किया और फिर उसकी हत्या कर दी यानी हत्या का पैटर्न बिल्कुल एक जैसा है।

मारे गये लोगों में अरविंद कुमार शाह (Arvind Kumar Shah) भी शामिल हैं, जिन्हें 16 अक्टूबर को श्रीनगर में आतंकियों ने मार गिराया था। वो बिहार के बांका जिले के रहने वाले थे और उनकी उम्र महज 30 साल थी। पिछले कुछ सालों से वो श्रीनगर में ठेला लगा रहा था लेकिन आतंकवादियों ने उसे मार डाला क्योंकि उसने दूसरे राज्य से कश्मीर में आकर रोजगार करने की हिम्मत की।

उनकी तरह राजा देव (Raja Dev) भी बिहार के मजदूर थे और काफी समय से कश्मीर की एक दुकान में काम कर रहे थे लेकिन आतंकियों ने उसी दुकान में उसकी हत्या कर दी। मारे गये लोगों में बिहार के रहने वाले जोगिंदर देव (Joginder Dev) भी शामिल थे। उनकी भी उसी दुकान पर हत्या कर दी गयी, जहां उसके साथी राजा देव की हत्या की गयी थी।

कश्मीर में आतंकवादी हिंदुओं को निशाना बनाकर हत्या कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद हमारे देश का एक खास वर्ग इस पर खामोश है। मान लीजिये आज अगर बिहार के मजदूरों को कश्मीर की जगह गुजरात में इस तरह मार दिया जाता तो क्या होता? ऐसे में मानवाधिकारों की रक्षा करने वाले कई संगठन वहां पहुंच जाते और इसे लोकतंत्र पर हमला करार देते लेकिन कश्मीर में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।

इस पर तमाम विपक्षी नेता और बड़े अंतर्राष्ट्रीय संगठन खामोश हैं। आज एक बड़ा सवाल ये भी है कि कश्मीर में हत्यायें उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में हुई हत्याओं से अलग कैसे हो सकती हैं? लेकिन हमारे देश के तमाम नेता और मीडिया कश्मीर में हुई हत्याओं पर खामोश बैठी हैं। आज आप भी कश्मीर से पलायन कर रहे हिंदुओं का दर्द सुनें, जो कह रहे हैं कि उन्होंने कश्मीर को गोद लिया है लेकिन हमारे देश के कुछ लोग उन्हें कश्मीर में कभी नहीं अपना सके।

संस्थापक संपादक – अनुज गुप्ता

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