Hijab मामले पर कर्नाटक कोर्ट का फैसला और खास ज़मातों में हाय-तौबा का माहौल

हिजाब (Hijab) मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में तीन बड़ी बातें कही। सबसे पहला कि हिजाब इस्लाम (Islam) का जरूरी हिस्सा नहीं है, इसलिये मुस्लिम लड़कियां इसे पहनने के लिये कानूनी मान्यता हासिल नहीं कर सकती हैं। अदालत ने ये भी कहा कि जिन छह मुस्लिम छात्राओं ने मामले में याचिका दायर की थी, वो किसी भी तरह से ये साबित नहीं कर सकीं कि उन्हें शुरू से ही अपने स्कूलों में हिजाब पहनने की अनुमति थी। माननीय न्यायालय ने इन मुस्लिम छात्राओं की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि अगर वो बिना हिजाब के स्कूलों में पढ़ती हैं तो ये इस्लाम का अपमान होगा और इससे धर्म का महत्व कम हो जायेगा। दरअसल कोर्ट ने कहा है कि अगर ये मुस्लिम लड़कियां हिजाब नहीं पहनती हैं तो इससे इस्लाम धर्म को खतरा नहीं होगा।

दूसरा कोर्ट ने कहा कि स्कूलों और कॉलेजों में वर्दी की व्यवस्था कानूनी रूप से वैध है और ये व्यवस्था संविधान (Constitution) में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है। यानि जो मुस्लिम छात्रायें स्कूलों में हिजाब पहनने को अपना संवैधानिक अधिकार बता कर रही थीं, उन्हें अदालत ने खारिज कर दिया है। फैसले में साफतौर पर कहा गया है कि संविधान में नागरिकों को दिये गये मौलिक अधिकार असीमित नहीं हैं और सरकार उन पर उचित प्रतिबंध लगा सकती है। अगर वो संयमित तौर पर चाहती है तो।

और तीसरा कोर्ट ने कर्नाटक सरकार के उस सर्कुलर को बरकरार रखा, जिसे 5 फरवरी को लागू किया गया था। तब इस सर्कुलर के तहत सरकार ने उन सभी शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर रोक लगा दी थी, जहां छात्रों के लिये यूनिफॉर्म तय की गयी है।

इस फैसले के बाद कर्नाटक की मुस्लिम छात्राओं ने ऐसा ही किया। इन छात्राओं ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि अगर आज बाबा साहिब डॉक्टर भीम राम राव अंबेडकर (Baba Sahib Dr. Bhim Ram Rao Ambedkar) जिंदा होते तो इस फैसले पर उनका दिल रोता।

ये मुस्लिम लड़कियां कह रही हैं कि अगर डॉ. भीमराव अंबेडकर आज जिंदा होते तो उनके साथ अन्याय नहीं होता। अंबेडकर ने एक बार कहा था कि इतिहास में ऐसी कोई घटना नहीं घटी जो कि गर्व और दुख के क्षण में हिंदुओं और मुसलमानों को जोड़ती हो। इसलिये हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते। और मुसलमानों के लिये पाकिस्तान जाना सही फैसला होगा।

संक्षेप में ये फैसला देश को बताता है कि पहले हिजाब की मांग और फिर किताब की मांग असंवैधानिक है और इसे जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में स्कूलों में हिजाब का समर्थन करने वाले नेताओं, कार्यकर्ताओं और धर्मगुरुओं ने न सिर्फ कोर्ट के इस फैसले को मानने से इनकार किया है बल्कि कोर्ट पर अभद्र टिप्पणियां भी की। इन कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों (Radical Islamic Forces) की सच्चाई ये है कि जब अदालतें उनके पक्ष में फैसला करती हैं, तो वो उनकी जय-जयकार करने लगती हैं। लेकिन जब कोर्ट ने उनके खिलाफ फैसला सुनाया तो वो न्यायालय के अपमान पर उतर आये।

सोचिये कि मुस्लिम लड़कियां और विपक्षी नेता जो कुछ दिन पहले तक कह रहे थे कि वो अदालत के हर फैसले के साथ होंगें, अब वो कह रहे हैं कि इस देश की अदालतें ये तय नहीं करेंगी कि इस्लाम में क्या अनिवार्य है और क्या नहीं। ये वही लोग हैं, जो देश के संविधान और लोकतंत्र के लिये खतरा हैं। लेकिन जब देश की अदालत संविधान के तहत फैसला देती है और वो फैसला उनके पक्ष में नहीं आता है, तो वो इसे मानने से इनकार कर देते हैं। और देश की न्यायिक व्यवस्था को भेदभावपूर्ण बताते हैं।

बाबा साहिब अम्बेडकर हिजाब और बुर्का के भी खिलाफ थे। आज अगर इन मुस्लिम छात्राओं ने हिजाब की जगह किताब की अहमियत दी होती और अंबेडकर के विचारों के बारे में पढ़ा होता तो उन्हें पता चल जाता कि बाबा साहिब अम्बेडकर हमेशा से इस पर्दा प्रथा के खिलाफ रहे।

ये फैसला पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India-PFI) जैसे इस्लामिक संगठनों के लिये बड़ा और कारारा झटका है, जो देश के स्कूलों को कट्टरपंथी बनाकर उन्हें चरमपंथ की प्रयोगशाला बनाना चाहते थे। लेकिन वो अपने मकसद में कामयाब नहीं हुए। इसलिए अब वो मुस्लिम छात्राओं का ब्रेनवॉश कर रहे हैं। हालांकि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई (Chief Minister Basavaraj Bommai) ने राज्य के सभी छात्रों से कोर्ट के फैसले का सम्मान करने की अपील की है।

संस्थापक संपादक : अनुज गुप्ता

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