Indian Mother Tongues: फैशन और अंग्रेजियत के बीच अस्तित्व के लिये संघर्ष करती भारतीय मातृभाषायें

Indian Mother Tongues: भाषायी गर्व और अस्मिता किसी भी सभ्य समाज के लिये बहुत बड़ी चीज़ होती है। अभिव्यक्ति के साथ ये सांस्कृतिक पहचान भी दिलवाती है। भारत जैसे राष्ट्र में तो भाषा को लेकर आमजन काफी संवेदनशील है। हमारे देश में कई भाषायें और बोलियां जिन पर सहज़ गर्व होता है। कश्मीर की घाटी से लेकर उत्तर भारत के विशाल उपजाऊ मैदानी इलाके, गुजरात के तटीय इलाकों से लेकर सूदूर पूर्वोत्तर के जंगलों तक भाषाओं और बोलियों के कई स्वरूप देखे जाते है। दक्षिण भारत में तो बड़े स्तर भाषायी राजनीति होती है। बड़े पैमाने पर इसकी तस्वीर महाराष्ट्र में भी देखने को मिलती है, जहां शिवसेना (Shiv Sena) जैसी क्षेत्रीय पार्टियां इस मुद्दे को लेकर काफी संजीदा रहती है। चालू चलन के हिसाब से देखा जाये आज का युवा मातृभाषा से नाक भौं सिकोड़कर उसे दूरी बनाता दिख रहा है। अंग्रेजीदां दिखना एक फैशन सा हो गयी है।

इस बीच कनाडा की एक ऐसी खबर सामने आयी, जो हम हिंदुस्तानियों का सीना गर्व से चौड़ा कर रही है।  ये पहली बार है जब भारतीय मूल के किसी सांसद ने कनाडा की संसद में अपनी मातृभाषा कन्नड़ (Kannada) में भाषण दिया। इस सांसद का नाम चंद्र आर्य है और ये कनाडा की लिबरल पार्टी (Liberal Party of Canada) के नेता हैं। पहले भारतीय मूल के नेता वहां की संसद में अंग्रेजी भाषा में भाषण देते थे लेकिन इस सांसद ने इस परंपरा को बदल दिया।

साल 2020 में न्यूजीलैंड में भारतीय मूल के एक सांसद गौरव शर्मा ने भी संस्कृत में शपथ ली थी। गौरव शर्मा हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के रहने वाले हैं और वो न्यूजीलैंड (New Zealand) के सबसे युवा सांसदों में से एक हैं।

अब बड़ा सवाल ये है कि जब विदेशों में भारतीय मूल के लोग अपनी मातृभाषा को उचित सम्मान दे रहे हैं तो हमारे देश में क्या हो रहा है। आज हमारे देश में बहुत से लोग अपनी मातृभाषा को एक ही भाषा मानते हैं। हमारे देश में बच्चों को अंग्रेजी कवितायें तो याद रहती हैं लेकिन उन्हें अपनी मातृभाषा में कहानियां और कवितायें याद नहीं रहतीं।

आजकल सफर के दौरान हेडफोन लगाकर अंग्रेजी गाने सुनने का चलन हो गया है। अंग्रेजी बोलना, पढ़ना और लिखना स्टेट्स सिंबल (Status Symbol) है। हम हिन्दी के ‘नमस्ते’ से ज्यादा अंग्रेजी के ‘हैलो’ शब्द से अभिवादन करना पसंद करते हैं। हमारे समाज में ये बातें भी कही जाती हैं कि अगर आप अंग्रेजी सीखते हैं तो आपको नौकरी मिलेगी और सम्मान मिलेगा। यानि अगर आज भाषाओं का विश्वयुद्ध होता है तो हिंदी, मराठी, गुजराती, बंगाली, पंजाबी और उड़िया जैसी भारत की भाषायें बिना किसी लड़ाई के हार जायेगी।

मिसाल के लिये बॉलीवुड में आज सभी फिल्म निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और अभिनेत्रियां अपनी मातृभाषा के बजाय अंग्रेजी में बात करना पसंद करते हैं। हिंदी भाषा की फिल्मों में काम करने वाले अभिनेता शूटिंग के दौरान हिंदी में बात करना शर्मिंदगी का सब़ब समझते हैं। बड़े-बड़े डायरेक्टर्स से लेकर प्रोड्यूसर तक हर कोई हिंदी भाषा में फिल्में बनाकर पैसा कमाना चाहता है, लेकिन वो एक-दूसरे से हिंदी में बात करना नागवार समझते है, और अंग्रेजी भाषा को ज्यादा तरजीह देना फैशन का हिस्सा मानते हैं।

हालांकि दक्षिण भारतीय फिल्मों में ऐसा नहीं है। दक्षिण भारत (South India) के कलाकार अपनी मातृभाषा को गौरव की बात मानते हैं। वो ये नहीं मानते कि अगर वो अपनी मातृभाषा में फिल्म बनाते हैं या अपनी मातृभाषा में बोलते हैं तो उनकी स्थिति दोयम दर्जें हो जायेगी या उन्हें अनपढ़-ज़ाहिल माना जायेगा।

मातृभाषा का अर्थ है वो पहली भाषा जो बच्चा जन्म के बाद सीखता है। मातृभाषा तीन चीजों को जोड़ती है- सांस्कृतिक मूल्य, इतिहास और स्थापित परंपरायें यानि मातृभाषा हमारे अंदर तीन विचारों को अंकुरित करती है।

हालाँकि प्रांतीय भाषाओं जिन्हें भारत में मातृभाषा भी कहा जाता है, की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है और लोग अपनी मातृभाषा से अधिक अंग्रेजी पसंद करते हैं।

हमारे देश में बहुत से लोग इस मामले की गंभीरता को नहीं समझते हैं। इस वक़्त फ्रांस के कान्स शहर में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (International Film Festival in Cannes City) का आयोजन हो रहा है, जिसमें भारत से भी कई अभिनेता और अभिनेत्रियां वहां पहुंचे हैं। इन्हीं में से एक हैं दीपिका पादुकोण। इस फेस्टिवल में जब दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) इंडिया के पवेलियन पहुंचीं तो वो ठीक से हिंदी भाषा भी नहीं बोल पा रही थीं।

दीपिका पादुकोण भारत की तरफ से इस फेस्टिवल में गयी हैं लेकिन हैरानी की बात ये है कि उन्होंने अभी तक इस फेस्टिवल में भारत की मौजूदगी को लेकर कोई ट्वीट नहीं किया। उन्होंने अपना आखिरी ट्वीट 25 फरवरी 2021 को किया था, जिसमें वो फ्रांस की मशहूर कंपनी लुई वुइटन के बैग्स का प्रचार कर रही थीं।

इससे पता चलता है कि जिन हस्तियों और कलाकारों को हम अपना आदर्श मानते हैं, वो पैसे के लिये ट्वीट करते हैं। हालांकि जब वो ऐसे अंतरराष्ट्रीय उत्सव में भारत की अगुवाई करने जाते हैं, तो वो हमारे देश के बारे में बात भी नहीं करते हैं। ये लोग अपने देश से ज्यादा अपने क्लाइंट के लिये ट्वीट करते हैं।

आपको याद होगा कि पहले क्रिकेटर्स भी अपनी मातृभाषा के प्रति इस हीन भावना का प्रदर्शन किया करते थे। पहले हमारे क्रिकेटर जो खेलने के लिये विदेश जाते थे, वहां अपनी मातृभाषा में बोलने से हिचकिचाते थे। आज भी अधिकांश खिलाड़ी हिंदी या अपनी मातृभाषा के बजाय अंग्रेजी में बोलना पसंद करते हैं।

मातृभाषा के प्रति इस नज़रिये को बदलने के कई कोशिशें हुई। पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Former Prime Minister Atal Bihari Vajpayee) भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने साल 1977 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा को हिंदी भाषा में संबोधित किया। यानि आजादी के 30 साल बाद तक हिंदी भाषा को इंतजार करना पड़ा। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी भारत के विदेश मंत्री थे। इसके अलावा भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने भी संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया है।

सह-संस्थापक संपादक : राम अजोर

Leave a comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More