Indian media trend: वो भी इक दौर था…

हमने वो दौर भी देखा है जब देश का मीडिया (Media) दिल्ली से बाहर निकलकर किचन, पेट्रोल पंप, चौराहों, सब्जी मंडियों में प्याज के बोरों पर लेटा रहता था! चूल्हे पर चढ़ी कढ़ाई में गर्म तेल और उसमे तड़कते जीरे को कलछी से घुमाती गृहिणियों की व्यथा (Agony of housewives) सुनाता था! आलीशान बैठक में 20RPM की स्पीड में घूम रहे सीलिंग फैन के नीचे हाथ वाला पंखा झल रहे लोगों के दुखदर्द को जनता के सामने लाता था! यूपी-बिहार के क्लासरूम में घुसकर मास्टर/मास्टरनियों की परीक्षा लिया करता था! झारखंड के रांची तथा बिहार के बेउर जेल से देश के अलग अलग शहरों में पूछताछ के लिए ले जाये जा रहे आतंकियों को दिखाया जाता था!

कुछ पत्रकार तो इतने बहादुर थे कि वे दाऊद के घर का पता ढूंढ कर सरकार के मुंह पर मार चुके थे कि ये रहा दाऊद जाओ पकड़ लो!

सीमापार से हुई गोलीबारी में हताहत सैनिकों के परिजन छाती पीटते हुए दिखाये जाते थे! शहीदों की विधवाओं के आंसू तक ज़ूम कर के दिखाए गये!

किसानों के चेहरे पर मौजूद झुर्रियों और उनके सूख चुके खेतों में निकल आयी पपडियों को तब की मीडिया अपने HD कैमरे से फिल्माती थी!

….और मीडिया का यही काम है! जनता और सत्ता के बीच जो संवाद कायम करे, वही मीडिया है!

लेकिन पिछले कुछ सालों से भारतीय मीडिया अपना काम भूल चुकी है! उसने अपना वो हाल कर लिया है कि इनकी विश्वसनीयता तक खतरे में आ गयी है!

सरकार के बचाव में इन मीडिया घरानों ने अपने स्टूडियो बुलेट ट्रैन के परीक्षण, सर्जिकल स्ट्राइक के फिल्मांकन (Filming of surgical strikes) से लेकर बगदादी को मारने और माल्या को पकड़ने तक- वह सबकुछ किया जो भारत सरकार इनसे करवाना चाहती थी!

कुछ तो 2000 की नोट में चिप तक ढूंढ लाये थे!

भारतीय मीडिया की इस अतिउत्साही रिपोर्टिंग ने देश भर में तख्तापलट कर दिया! पहले केंद्र और फिर राज्यों में एक एक कर के बीजेपी अपनी पैठ बनाती चली गयी!

और हकीकत में जो मिला वो सब हमारे सामने है! सेना के जवानों की पेंशन कटौती तक की नौबत आ गयी है!

आज हमारे देश का मीडिया इतना बेबस हो चुका है कि वह अपने तथा प्रधानमंत्री के बीच मौजूद इस जंजीर को लांघ भी नहीं पा रहा! ….सवाल पूछना तो दूर की बात है!

सीमा पार से हुई गोलीबारी में हताहत जवानों के शव अभी परसों तक देश के गांवों में आये हैं! सालाना 12 हजार किसान आज भी आत्महत्या कर रहे हैं! रोजगार की खोज में आज भी युवा दर दर भटक रहे हैं! एक महामारी ने लाखों लोगों की जान ले ली है!

महंगे पेट्रोल और औकात से बाहर की सब्जियों फलों से घिरी गृहिणियां आज भी अपना किचन सजाकर उन पत्रकारों की बाट जोह रहीं हैं जो किसी दौर में कढ़ाई में फड़फड़ाते जीरे को फिल्माया करते थे!

(नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं! उनको बहुत बहुत बधाई! उनका पहला और दूसरा कार्यकाल आज भी याद किया जाता है! उन दोनों कार्यकालों के वक्त देश की सत्ता मनमोहन सिंह के हाथ में थी और कोई भी पत्रकार उनके मुंह के सामने माइक लगाकर सवाल कर सकता था! दो दो तीन तीन घण्टों तक देश की मीडिया को झेलने वाले मनमोहन सिंह ने कभी बिहार का हक नहीं मारा! हर आपदा में वे बिहार के साथ खड़े रहे! तब नीतीश कुमार बिहार के लिए स्पेशल पैकेज की मांग किया करते थे! कोई उनसे पूछे कि क्या बिहार को उसका पिछले साल का GST वाला हिस्सा मिल गया है? दो करोड़ नौकरी, PPE किट, कोरोना वैक्सीन वगैरह में बिहार के हिस्सेदारी की बात फिर कभी करेंगे!)

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