Delhi में सिर्फ 5 फीसदी मजदूर ही पाते सरकारी तयशुदा न्यूनतम वेतन

बिजनेस डेस्क (राजकुमार): दिल्ली (Delhi) में मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी तक असल पहुंच पर वर्किंग पीपल्स कोएलिशन (Working People’s Coalition) द्वारा किये गये एक अध्ययन में पाया गया है कि आवश्यक कौशल होने के बावजूद 95 फीसदी मजदूरों को दिल्ली सरकार (Delhi Government) द्वारा तय कानूनी न्यूनतम मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है। अध्ययन में पाया गया है कि 75 फीसदी से ज़्यादा कर्मचारी पर्याप्त सुविधाओं या सुरक्षा के बिना ही काम करते हैं।

न्यूनतम मजदूरी तक पहुंच की रिपोर्ट जनवरी और फरवरी 2022 में दिल्ली में चार समूहों-घरेलू, निर्माण, औद्योगिक और सुरक्षा गार्डों में 1,076 मजदूरों के सर्वेक्षण (Survey) पर आधारित थी। इसमें पाया गया कि लगभग 46 फीसदी मजदूर 5,000 रूपये से 9,000 रूपये के बीच मासिक वेतन कमाते हैं, जबकि लगभग 15% कर्मचारी 3,000 रूपये से 5,000 रूपये और 13% श्रमिकों 9,000-12,000 रूपये से कमाते हैं। 5 फीसदी से कम कर्मचारियों महीने की आमदनी 16,000 रूपये से ज़्यादा हैं। हालांकि संशोधित न्यूनतम वेतन अकुशल श्रमिकों (Unskilled Workers) के लिये 16,506 रूपये, अर्ध-कुशल श्रमिकों (Semi-Skilled Workers) के लिये 18,187 रूपये और कुशल श्रमिकों के लिये प्रति माह 20,019 रूपये निर्धारित किया गया है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दो-तिहाई से ज़्यादा श्रमिकों को उन कानूनों के बारे में जानकारी नहीं है, जो उचित वेतन हासिल करने के उनके अधिकार को मजबूत करते हैं और 98% श्रमिकों को सैलरी स्लिप नहीं मिलती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 60 फीसदी से ज़्यादा मजदूर शिक्षा के प्राथमिक स्तर से नीचे हैं, जो उनके श्रम बाजार की गतिशीलता में रूकावट पैदा करेगा और उन्हें कौशल विकास के अवसरों तक पहुंचने से वंचित करेगा, क्योंकि कई कौशल विकास कार्यक्रमों में न्यूनतम माध्यमिक शिक्षा योग्यता की दरकार होती है।

अध्ययन में ये भी पाया गया कि लगभग 74 फीसदी कर्मचारी हर महीने 500 रूपये से कम की बचत करने में सक्षम हैं। रिपोर्ट में सुझायी गयी ये रकम भारत सरकार (Indian government) द्वारा प्रदान की गयी सामाजिक बीमा योजना ईएसआईसी (Social Insurance Scheme ESIC) को हासिल करने के लिये भी नाकाफी है। जिससे कि ये नतीज़ा निकला कि 90 फीसदी से ज़्यादा मजदूर अपने सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि, “इसका श्रेय या तो श्रमिकों में जागरूकता की कमी या सामाजिक सुरक्षा कानूनों को सुस्त तरीके से लागू करने को दिया जा सकता है।”

रिपोर्ट में कहा गया कि, “कारगर न्यूनतम वेतन प्रणाली स्थापित की फौरी जरूरत है, जो कि समावेशी विकास को बढ़ावा देगी।”

इस बीच मुंडका (Mundka) कारखाने में आग पर वर्किंग पीपल्स कोएलिशन की फैक्ट फाइडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कानूनों के ठीक से लागू कर इस तरह के हादसे को टाला जा सकता था। टीम ने बताया कि इलाज का सारा खर्च स्थानीय गैर सरकारी संगठनों की मदद से खुद कर्मचारी वहन कर रहे थे। वर्किंग पीपल्स कोएलिशन के राष्ट्रीय सचिव धर्मेंद्र कुमार ने मजदूरों की सुरक्षा की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि मुंडका फैक्ट्री में आग न तो पहली घटना है और न ही आखिरी।

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