Indian Textile Industry: टेक्सटाइल इंडस्ट्री का खात्मा करती भारत सरकार की नीतियां

खब़र आयी है कि साल 2015 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का देश की जीडीपी में कुल योगदान लगभग 15 फीसदी से ज्यादा था जो अब गिरकर 13 फीसदी से भी नीचे आ चुका है। ये असली हाल है मोदी सरकार में मेक इन इंडिया का। कुछ ऐसा ही हाल है टेक्सटाइल इंडस्ट्री (Textile Industry) का। जैसा कि सभी जानते ही है कि कृषि के बाद ये उद्योग सबसे ज्यादा नौकरियां देता है।

कुछ दिन पहले ही संसद में जानकारी दी गयी कि कोरोना काल में भी चीन को कॉटन निर्यात (Cotton Export) को बंद नहीं किया गया और भारत ने तमाम झंझटों के बाद भी चीन को कुल कपास निर्यात का करीब आधा कॉटन एक्‍सपोर्ट किया।

बांग्‍लादेश के बाद चीन भारत से कपास आयात करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। दुनिया में सबसे ज्यादा कपास भारत में ही पैदा होती है, और हम क्या करते हैं ? हम उसे बांग्लादेश और चीन को एक्सपोर्ट कर देते है और फिर वहां से सिले सिलाये वस्त्र यहां इम्पोर्ट किये जाते हैं।

टेक्सटाइल उद्योग का भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान है। टेक्सटाइल उद्योग का भारत की जीडीपी में 5 प्रतिशत का अपना योगदान देता है।

कपड़ा उद्योग देशभर में 4.5 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रोज़गार मुहैया करता है जबकि अप्रत्यक्ष रूप से क़रीब 6 करोड़ लोगों की आजीविका इस पर निर्भर है। कुल मिलाकर देश भर में इससे 21 फ़ीसदी लोगों को रोज़गार हासिल होता है, ये भारत के आईआईपी यानी इंडेक्स आफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (Index Of Industrial Production) का 14 फीसदी है। कहने का मतलब ये है कि भारत में जितने औद्योगिक उत्पादों का उत्पादन होता है, उसमें से टेक्सटाइल का हिस्सा 14 प्रतिशत का है।

यानि टेक्सटाइल इंडस्ट्री वाकई कृषि के बाद सबसे बड़ी रोजगार प्रदाता है

साल 2019 में देश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने सम्मिलित रूप से देश के बड़े अखबारों में एक विज्ञापन जारी किया था विज्ञापन का शीर्षक था- ‘भारत का स्पिनिंग उद्योग बड़े संकट से गुज़र रहा है जिसकी वजह से काफी संख्या में लोग बेरोज़गार हो रहे हैं’ विज्ञापन के मुताबिक दावा किया गया कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री का एक्सपोर्ट पिछले साल के मुकाबले (अप्रैल-जून) करीब 35% घटा है। इससे इंडस्ट्री की एक तिहाई क्षमता भी कम हुई है। मिलें इस हैसियत में नहीं रह गयी हैं कि वो भारतीय कपास को खरीद सकें साथ ही अब इंडस्ट्री में नौकरियां भी जाना शुरू हो गयी हैं।

नोटबंदी और जीएसटी के बाद कपड़ा उद्योग की स्थिति काफी खराब हुई है। कपड़ा उद्योग निवेशकों (Textile Industry Investors) को आकर्षित नहीं कर पा रहा है। टेक्सटाइल सेक्टर में बिक्री में 30-35 प्रतिशत की कमी आयी है। कच्चे माल पर जीएसटी लगने के बाद से लागत बढ़ने के चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पादकों को बहुत परेशानी आ रही है। इसके कारण भारत में सिले सिलाये कपड़ों की लागत काफी बढ़ गयी है और भारत एक्सपोर्ट की प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गया है।

इसके उल्ट चीन अपने सस्ते कपड़े बांग्लादेश भेजकर वहां रेडिमेड कपड़े तैयार करवाकर दुनियाभर में खासतौर पर एशियाई देशों को निर्यात बढ़ाने में सफल रहा है। भारत से कम टैक्स और सस्ते लेबर के कारण बांग्लादेश में सिलेसिलाये कपड़ों की निर्माण लागत 15-20 प्रतिशत तक कम होने के कारण वहां से आयात बढ़ा है।

पिछले सालों में बांग्लादेश ने टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में ही निवेश कर अपनी प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया है, जो आज भारत से भी अधिक हो गयी है।

जीएसटी ओर नोटबन्दी के बाद गुजरात की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री को बड़ा नुकसान हुआ। देशभर में मध्यम और बड़ी कपड़ा प्रसंस्करण इकाइयों (Textile Processing Units) की सर्वाधिक संख्या (600 से ज़्यादा) गुजरात में ही है। गुजरात दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा डेनिम उत्पादक (Denim Producer) है। साल 2017 के पहले एक अनुमान के मुताबिक़ गुजरात में 8.5 से 9 लाख लूम काम करते थे, लेकिन जीएसटी के बाद इनकी तादाद गिरकर 6.5 लाख हो गयी। जीएसटी के लागू होने के बाद कई मालिकों ने एक लाख रुपये की लागत वाले अपने लूम को महज 15 हज़ार रुपये में बेच दिया।

साफ है कि मोदी सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण देश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री बर्बादी के कगार पर पहुंच गयी है। देश में उत्पादित कॉटन की बुकिंग चीन करवा रहा है। पहले ही पोलिएस्टर का मार्केट (Market Of Polyester) चीन के कब्जे में है। मोदी सरकार को यहाँ गारमेंट निर्माताओं के पक्ष में नीति बनानी होगी नहीं तो बचा खुचे बिजनेस से भी हम हाथ धो बैठेंगे।

साभार - गिरीश मालवीय

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