Germany: मुस्लिम तुष्टीकरण की भेंट चढ़ता जर्मनी और मध्य यूरोप में फैले इस्लामोफोबिया की हकीकत

Germany: भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जहां मुस्लिम तुष्टिकरण (Muslim appeasement) के नाम पर राजनीति की कई दुकानें चल रही हैं। बल्कि इनमें वे पश्चिमी देश भी शामिल हैं, जिन्होंने कभी कहा था कि इस्लामी कट्टरवाद (Islamic fundamentalism) एक परिकल्पना से ज्यादा कुछ नहीं है। लेकिन आज जर्मनी में इस बात पर बहस चल रही है कि क्या वो धीरे-धीरे मुस्लिम राष्ट्र बनेगा।

इसी बहस की पृष्ठभूमि में कोलोन शहर की मेयर का हालिया फैसला है, जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय (Muslim community) की मांग पर वहां की मस्जिदों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है। इसके तहत हर हफ्ते शुक्रवार को जुमे की नमाज (Juma Namaz) के दिन मस्जिदों में 5 मिनट के लिये लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जा सकता है। और ये फैसला वहां की सभी 35 मस्जिदों पर लागू होगा, जिसका कई लोग विरोध कर रहे हैं।

जर्मनी के इस शहर की पहचान ईसाई धर्म के सबसे पुराने शहर के रूप में की जाती है। यहां जर्मनी का सबसे पुराना और सबसे बड़ा चर्च भी है, जहां दुनिया के अलग-अलग कोनों से लोग पहुंचते हैं। माना जाता है कि 19वीं शताब्दी तक इस शहर में कोई मुस्लिम आबादी नहीं थी, लेकिन शरणार्थियों के लिये जर्मनी की सहानुभूति ने शहर की विरासत को खतरे में डाल दिया और आज लोग कह रहे हैं कि जर्मनी धीरे-धीरे मुस्लिम राष्ट्र बनने की राह पर है।

इस पूरे मुद्दे पर मेयर का कहना है कि ये फैसला जर्मनी में धार्मिक स्वतंत्रता और विविधता को दर्शाता है और इस्लामी मान्यताओं के लिये सम्मान और उदारता की मिसाल भी पेश करता है। ये बातें सुनने और बोलने में अच्छी लगती हैं लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। दरअसल, जर्मनी के इस शहर की सभी 35 मस्जिदों को चलाने के लिए तुर्की से फंडिंग मिलती है। यानि इसके पीछे तुर्की का हाथ है।

तुर्की सरकार का एक धार्मिक संगठन, जिसका नाम तुर्की-इस्लामिक यूनियन फॉर रिलिजियस अफेयर्स (Turkish-Islamic Union for Religious Affairs) है, जो कि जर्मनी में मस्जिदों का संचालन करता है और ये मौलवियों की तनख्वाह और दूसरे खर्चों के लिये बड़े पैमाने पर धन उपलब्ध कराता है। साल 2018 में जब इस शहर में सबसे बड़ी मस्जिद बनी थी तब भी इसकी फंडिंग इसी संस्था से हुई थी और इसका उद्घाटन भी खुद तुर्की के राष्ट्रपति ने किया था।

जर्मनी की कुल आबादी करीब 8 करोड़ है, जिसमें मुस्लिम आबादी 56 लाख है। इस हिसाब से कुल आबादी का 14 फीसदी मुस्लिम समुदाय से है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल जर्मनी में करीब 900 मस्जिदों का संचालन तुर्की सरकार के उसी धार्मिक संगठन द्वारा किया जा रहा है, जिसके वहां 8 लाख से ज्यादा मेम्बर हैं। इसका साफ मतलब ये हुआ कि 56 लाख मुसलमानों की कुल आबादी में से 15 फीसदी तुर्की की सरकार के लिये काम कर रहे हैं।

स्पष्ट तौर पर ये इस्लामी कट्टरवाद का एक मताधिकार है, जिसकी जर्मनी में कई शाखाएँ खुली हैं। साल 2007 में एक जर्मन इमाम जो कि इस संगठन से जुड़ा था उस पर तुर्की सरकार के लिए जासूसी करने और ईसाई धर्म के खिलाफ नफरत फैलाने का आरोप लगाया गया था। और वही आज वहां हो रहा है। वहां के लोग मस्जिदों में लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल से ज्यादा चिंतित हैं कि इन मस्जिदों के अंदर क्या हो रहा है और किनके हाथ में उनका रिमोट कंट्रोल है।

यूरोप के कई देश अभी भी इस्लामी कट्टरवाद को लेकर असमंजस में हैं। वे खुद को आतंकवाद से बचना चाहते हैं, लेकिन साथ ही वो धर्मनिरपेक्षता (Secularism) की अंधी दौड़ में शामिल होना चाहते हैं ताकि वे पूरी दुनिया में धर्मनिरपेक्ष दिखें और हम अच्छे मानते हैं कि दो नावों में इस सवारी के नतीज़े यूरोप के इन देशों के लिये क्या होंगे। उदाहरण के तौर पर साल 2016 में नये साल के जश्न के दौरान जर्मनी में बड़े पैमाने पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की वारदातें हुईं और बाद में पता चला कि इन घटनाओं के पीछे वही मुस्लिम शरणार्थी हैं, जिन्हें जर्मनी ने रहने दिया गया था।

यूरोपीय मामलों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ पत्रकार- सुनील चौधरी

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