Talaq-e-Hasan: क्या आप जानते है तलाक-ए-हसन के बारे में?

न्यूज डेस्क (मातंगी निगम): सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों वाली न्यायिक पीठ ने हाल ही में एक याचिका पर सुनवाई की, जो ‘तलाक-ए-हसन’ (Talaq-e-Hasan) की प्रथा को चुनौती दे रही थी। ये प्रथा ज्यादातर मुस्लिम विवाहों (Muslim Marriages) में देखी जाती है। याचिका में तलाक की इस तरीके को खत्म करने, इसे असंवैधानिक बताते हुए और महिलाओं के अधिकारों को संरक्षित करने की मांग की गयी थी।

न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ (Justice A.S. Bopanna and Justice Vikram Nath) की अवकाशकालीन पीठ ने याचिकाकर्ता बेनजीर हीना  (Petitioner Benazir Heena) की ओर से पेश अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Advocate Ashwini Upadhyay) की इस दलील पर गौर किया कि याचिका पर तुरन्त सुनवाई की जरूरत है। 17 जून, 2022 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने याचिका पर सुनवाई की।

क्या है तलाक-ए-हसन?

तलाक-ए-हसन मुस्लिम विवाहों में एक तरह की तलाक प्रथा है, जहां पुरुष तीन महीने के दौरान तीन बार “तलाक” बोल कर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। इसका मतलब है कि मुस्लिम व्यक्ति महीने में एक बार तीन महीने तक “तलाक” कह सकता है, जिससे शादी खत्म हो जाती है।

तलाक-ए-हसन तीन तलाक का ये तरीका मुस्लिम शादियों में प्रचलित है। सालों से अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले कई याचिकाकर्ताओं ने इस प्रथा को गलत बताते हुए कहा है कि इसने महिलाओं के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।

तलाक-ए-हसन के खिलाफ क्यों हैं लोग?

हाल ही में एक महिला द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) में दायर की गयी। याचिका में तलाक-ए-हसन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गयी थी। महिला को उसके पति ने जून के पहले हफ़्ते में तलाक का नोटिस दिया था, जिसके बाद याचिकाकर्ता महिला मांग कर रही थी कि नोटिस को खाऱिज करते हुए असंवैधानिक करार दिया जाये।

याचिका में धार्मिक समूहों, निकायों और नेताओं को निर्देश देने की भी मांग की गयी है कि “ऐसी प्रथाओं को अनुमति ना दें ताकि याचिकाकर्ता महिला को शरिया कानून (Sharia Law) के मुताबिक काम करने और तलाक-ए-हसन को मंजूर करने के लिये मजबूर न किया जा सके।” याचिका में महिला ने पुलिस से उसे धार्मिक गुटों और साम्प्रदायिक फिरकों (Religious factions and Communal Fanatics) से बचाने के लिये निर्देश देने की भी मांग की। महिला का मानना था कि तलाक-ए-हसन ना मानने के खिलाफ उसके साथ जोर-ज़बरदस्ती हो सकती है।

तलाक-ए-हसन को कई मुस्लिम महिलाओं द्वारा खारिज किया जा रहा है, जिन्हें ट्रिपल तलाक (Triple Talaq) के जरिये अपने ससुराल के दुर्व्यवहार और धमकी की लिखित शिकायती जानकारी दी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय 18 अगस्त को फिर से याचिका पर सुनवाई करने के लिये तैयार है और सुप्रीम कोर्ट की पीठ भी जल्द ही इस मामले की सुनवाई करेगी।

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