धर्म संसद हेट स्पीच मामले में कोर्ट ने Delhi Police को लगायी फटकार, पुलिसिया छानबीन पर भी जतायी हैरानगी

नई दिल्ली (प्रियंवदा गोप): सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिसंबर 2021 में दिल्ली में धर्म संसद (Dharma Sansad in Delhi) के कार्यक्रम में दिये गये कथित भड़काऊ भाषणों को लेकर मामले के जांच अधिकारी से आज (13 जनवरी 2023) ये बताने को कहा कि जांच को आगे बढ़ाने के लिये उनकी ओर से क्या कदम उठाए गये। मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि, “हमारा मानना है कि जांच अधिकारी (IO) के लिये ये जरूरी होगा कि वो 19 दिसंबर 2021 को हुई घटना के बाद से जांच को आगे बढ़ाने के लिये उठाये गये कदमों को रिकॉर्ड पर रखे।”

भारत के मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud) और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा (Justice P S Narasimha) ने निर्देश देते हुए जांच अधिकारी को दो हफ्ते के भीतर हलफनामा दायर करने का भी निर्देश दिया। अदालत इस मामले पर कथित लेटलतीफी के लिये पुलिस महानिदेशक के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही की मांग पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा कि तहसीन पूनावाला (Tehseen Poonawala) मामले में अदालत के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया है, इस तरह के मामलों से कैसे निपटा जाये।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता शादान फरासत (Advocate Shadan Farasat) ने कहा कि एफआईआर (FIR) वारदात के पांच महीने बाद मई 2022 में दर्ज की गयी थी। इस घटना पर उन्होंने कहा कि, “असल में ये एक खास तरह की हिंसा के लिये कार्रवाई का आह्वान है। ये काफी गंभीर है। ये एक व्यक्ति की अगुवाई नहीं है बल्कि उनके साथ शपथ लेने वाले लोग हैं।”

अधिवक्ता शादान फरासत ने न्यायिक बेंच (Judicial Bench) के सामने दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का मकसद ये सुनिश्चित करना था कि ऐसे बयान देने वाले लोगों की पहचान की जाये और उन्हें ऐसे सार्वजनिक मंचों का इस्तेमाल करने की मंजूरी न दी जाये। हालांकि एफआईआर दर्ज करने और चार्जशीट दाखिल करने की जरूरत है, लेकिन पांच महीने तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी, पुलिस अभी भी कह रही है कि जांच चल रही है। वो ये नहीं बताते कि क्या उन्होंने किसी को पूछताछ के लिये तलब किया। उन्होंने (Delhi Police) किसी को गिरफ्तार नहीं किया है। कोई चार्जशीट दायर नहीं की गयी है। ये अपने आप में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है।”

वकील ने कहा कि वो मामले के संबंध में कार्रवाई की मांग कर रहे हैं न कि डीजीपी के खिलाफ अवमानना की। दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज (Additional Solicitor General KM Nataraj) ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के किसी भी निर्देश का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है और कहा कि याचिकाकर्ता ये निर्धारित नहीं कर सकता कि जांच कैसे आगे बढ़नी चाहिये।

CJI ने तब पूछा, “लेकिन आप जांच के संदर्भ में क्या कर रहे हैं? घटना दिसंबर 2021 की है। करीब पांच माह बाद प्राथमिकी दर्ज की गयी। एफआईआर दर्ज करने के लिये आपको पांच महीने क्यों चाहिये?” एएसजी ने जवाब दिया कि देरी जानबूझकर नहीं की गयी थी। उन्होंने कहा कि पुलिस को मिले इनपुट के आधार पर जांच आगे बढ़ रही है।

मुख्य न्यायधीश ने आगे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज से पूछा कि- “4 मई के बाद आपने क्या कदम उठाये? आपने कितनी गिरफ्तारियां की? आपने क्या पड़ताल की? इस दौरान कितने लोगों की जांच की गयी? नटराज ने कहा कि ये डिटेल खासतौर से पहले नहीं मांगी गयी थी।

सीजेआई ने इस बात पर भी हैरानी जतायी कि जब पांच महीने बाद प्राथमिकी दर्ज की जाती है तो वो कैसे कह सकते हैं कि इसके दिशा-निर्देशों का ठीक से पालन हुआ है। CJI से पूछा और जानना चाहा कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद जांच में क्या प्रगति हुई है। मुख्य न्यायधीश ने कहा कि- “आपने दिशानिर्देशों का कैसे पालन किया, अगर आप पांच महीने बाद और आठ महीने बाद एफआईआर दर्ज करते हैं तो कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है?”

नटराज ने कहा कि ये सिर्फ याचिकाकर्ता के आरोप थे और उन्होंने कहा कि वो जांच की प्रगति पर निर्देश लेंगे और अदालत को पर्याप्त जानकारी मुहैया करवायेगें।

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