अमेरिका और Taliban के बीच रहा है बचपन वाला प्यार

अप्रैल 2001 में अमेरिकी सरकार ने तालिबान प्रमुखों (Taliban chiefs) को न्यूयॉर्क बुलाया। वजह थी कि तालिबान के इलाके से ऑयल पाइपलाइन लेकर आने का प्रोजेक्ट। ये प्रोजेक्ट Unocal Oil Company नाम की कंपनी के पास था। Unocal Oil Company के मालिकों में डिक चेनी और डॉनल्ड रेम्सफ़ील्ड शामिल थे।

तालिबान से बात हो गयी काम चलने लगा। इस बीच में 9/11 हो गया। अमेरिका ने हमला करने का फैसला लिया। कार्लाइल ग्रुप हथियार मुहैया कराने की सबसे बड़ी कंपनी है चूँकि आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई में हथियारों की जमकर खरीद हुई तो इससे कार्लाइल ग्रुप को बड़ा फ़ायदा पहुँचा लेकिन इस कार्लाइल ग्रुप (Carlyle Group) के बड़े हिस्सेदारों में ‘सऊदी बिन लादेन’ ग्रुप शामिल है, जो इस ‘जंग’ से बेहद अमीर बना।

अगर आपको अब भी याद न आया हो तो बता दें कि ओसामा बिन लादेन इसी सउदी बिन लादेन ग्रुप (Saudi Bin Laden Group) का बिगड़ा हुआ बेटा था। दूसरी तरफ़ जॉर्ज एच बुश बिन लादेन ग्रुप के प्रमोटर थे चूँकि वो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति भी थे और तत्कालीन राष्ट्रपति के काफी करीबी भी तो उन्हें सीआईए के सभी क्लासिफ़ाइड ऐक्सेस (CIA classifieds access) मिले हुए थे। व्हाइट हाउस का कहना था कि भले ही उन्हें सारी खुफ़िया जानकारी होगी लेकिन वो भले आदमी हैं, बिन लादेन से पैसा ले लेंगे लेकिन उन्हें जानकारी नहीं देंगे।

उन पर न जाते हुए उनके बेटे पर आते हैं। बुश ने लादेन और तालिबान पर हमला करने में पर्याप्त देरी की और सिर्फ़ 11 हज़ार अमेरिकी सैनिक अफ़गानिस्तान (Afghanistan) में उतारे। ये संख्या कितनी कम है समझने के लिए जान लें कि सिर्फ़ दिल्ली में इससे 8 गुना ज़्यादा पुलिस वाले तैनात हैं। इतने सैनिकों से कुछ नहीं होना था लेकिन सत्ता परिवर्तन हुआ और हामिद करज़ई को कुर्सी मिली। अब ये अलग बात है कि करज़ई Unocal Oil Company के कर्मचारी थे। नौकरी करने वाला आदमी राष्ट्रपति नहीं बन सकता क्या?

बराक ओबामा ने सैनिक बढ़ाने की बात की थी उन्होंने 30 हज़ार सैनिकों को रवाना करने की बात कही साथ ही ये भी कहा कि 18 महीने बाद ये सैनिक वापस भी बुला लिये जायेगें। मतलब आप तालिबान को साफ़-साफ़ बता रहे थे कि 18 महीने के लिये पहाड़ियों में छिप जाओ और फिर हम खुद तुम्हें बुला लेंगे।

दूसरी और जो तीस हज़ार सैनिक कथित रूप से ओबामा के समय डिप्लॉय हुए थे। अमेरिकी वॉचडॉग (उनका सीएजी) के मुताबिक उसमें से 40 प्रतिशत घोस्ट थे यानि उनके नाम पर बिल तो जमा हो रहे थे, लेकिन उन सैनिकों को कोई वजूद ही नहीं था।

अब पूरे काबुल में महज़ 5200 अमेरिकी सैनिक थे। 20 सालों में लगभग 2400 अमेरिकी सैनिक मारे गये और 20,000 घायल हुये। वहीं अफ़गानिस्तान ने 66,000 सुरक्षाकर्मी और सैनिक खोये 47,245 और आम अफ़गान नागरिक मारे गये। 1,144 सैनिक सहयोगी देशों के मारे गये। 9/11 में मारे गये लोगों की कुल संख्या 3000 के करीब थी। इन सब डेटा में इराक शामिल नहीं है, उसकी कहानी तो अलग ही है।

कुल मिलाकर बिन लादेन ग्रुप ने Unocal Oil Company, और कार्लाइल ग्रुप ने मिलकर धंधा किया। मालिक के बेटे ने नौकर के बेटे से झगड़ा कर लिया और 20 साल की जंग छेड़ दी। लाख अफ़गान नागरिक बिना किसी वजह के मारे गये। बैक अप के तौर पर 4.6 लाख इराकी मार दिये गये। साथ ही 4,500 अमेरिकी सैनिक भी मारे गये।

अब जो बिडेन ने उन सभी अफ़गानों की मौत का वॉरेंट (Afghan death warrant) साइन कर दिया, जो अमेरिका के साथ मिलकर काम कर रहे थे। कहें कि अच्छे प्रगतिशील लोग थे लेकिन इन बीस सालों में सबसे दोयम दर्जें का प्रेसिडेंट कौन डोनाल्ड ट्रंप ? आप किस दुनिया में जी रहे हैं समझ लीजिए बाकी बचपन का प्यार है भूलिएगा मत। सारी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, कुछ भी क्रॉसचेक कर सकते हैं।

साभार – अनिमेश मुखर्जी

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