मोदी सरकार की इन वज़हों से महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली माइलेज


महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीज़े कई मायनों में दिलचस्प सियासी समीकरण और पॉलिटिकल नैरेटिव समेटे दिख रहे है।कांग्रेसी खेमें में ये चुनावी तस्वीर नयी जान फूंकने का काम करेगी और साथ ही बीजेपी के माथे पर बल जरूर पड़ सकते है।ये वक़्त हमेशा इलेक्शन मोड में रहने वाली बीजेपी के लिए ब्रेक लगाकर सोचने का है। आखिर कोर कसर कहां रह गयी? इस पर उसे मंथन करना होगा। 2019 के लोकसभा चुनावी नतीज़ों के बाद कई पॉलिटिकल पंड़ितो ने कांग्रेस के वजूद पर सवालिया निशान लगाते हुए उसे वेन्टिलेटर पर आखिर सांसे गिनता हुआ बताया था। ऐसे राजनैतिक भविष्यवक्ताओं को क्रिकेट से सीखना चाहिए कि जब तक आखिर बॉल ना डाली जाये तो ये कहना मुश्किल होगा कि मैच किस करवट पलटेगा। खैर ये नतीज़े ज़बरदस्त उठा-पटक वाले है। दोनों ही सूबों में भाजपा की सरकारें रही है। महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा 145 सीटों का है। वहीं दूसरी और हरियाणा में बहुमत का आंकडा 46 सीटों का है।
मौजूदा नतीज़ों में साफ देखा जा सकता है कि हरियाणा में 2014 की तुलना में भारतीय जनता पार्टी को सीधे सात सीटों का नुकसान हुआ है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में 16 सीटों पर बढ़त मिली है।
अब बात करते है महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीज़ों की 2014 के मद्देनज़र इन चुनावों में भाजपा को 17 सीटों पर मुँह की खानी पड़ी है। महाराष्ट्र में इस बार कांग्रेस को 2 सीटों पर सीधी बढ़त मिली है। इन नतीज़ों का सीधा मतलब है कि हरियाणा में कहीं ना कहीं भाजपा की कोशिशों में कमी रह गयी है या फिर असंतोष है। दूसरी और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ की वज़ह से भाजपा का इंजन इतना खींच रहा है। यदि शिवसेना ने हाथ मिलाने से इंकार कर दिया होता तो भाजपा की सियासी तस्वीर और भी बदतर हो सकती थी।

बीजेपी के बैकफुट पर रहने के मुख्य कारण
  • अर्थव्यवस्था की हालिया तस्वीर काफी डगमगायी हुई दिख रही है। आईएमएफ और मूडी द्वारा जारी किये गये आंकड़े इस बात की तस्दीक करते है। केन्द्र सरकार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चाहे कितना दम भर ले। लेकिन अर्थव्यवस्था बेहद बुरे दौर से गुजर रही है।

  • ऑटोमोबाइल सैक्टर पर कमज़ोर आर्थिकनीतियों की बड़ी मार पड़ी है। मारूति और अशोक लेंलैड जैसी कम्पनियों को प्रोडक्शनस् यूनिट्स को कामबंदी करनी पड़ी। पारले की भारी मात्रा में कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी।

  • काफी हद तक हिंदुत्व वाले काडर का वोट बैंक भी भाजपा के दामन से खिसका है। कमलेश तिवारी हिंदुत्ववादी छवि के फायर ब्रॉन्ड नेता थे। उनकी हत्या की पहले भी आंशका जतायी गयी थी। योगी सरकार पर अब ये आरोप लग रहे है कि उन्हें पर्याप्त सुरक्षा मुहैया नहीं करवायी गयी। जिसके चलते हिंदुत्व वोट बैंक में खासा नाराज़गी है।

  • देश भर में बेरोजगारी अपने चरम पर है। कर्मचारी चयन आयोग ने तुलनात्मक रूप से काफी कम भर्तियां निकाली है। जिसके कारण युवाओं को कम अवसर मिल रहे है। कम नौकरी निकालने की वज़ह से प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले छात्रों की आयु सीमा भी खत्म होती जा रही है।

  • केन्द्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों में अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों का वेतनमान पिछले बढ़ाया नहीं गया है। जिससे उनमें खासा नाराज़गी है।
  • जिस तरह से सरकारी कंपनियों और बैंकिंग (PMC बैंक) की हालत खस्ता हुई है, उसे देखकर लोगों को विश्वास कहीं ना कहीं भाजपा के प्रति डगमगाया है। BPCL बेचा जाना, बीएसएनएल और एमटीएनएल का बंदी के कगार पर पहुँचना। HAL और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में न्यूनतम मांगों को लेकर हड़ताल और इसरो कर्मियों को कम वेतन दिया जाना, ये सब कहीं ना कहीं आम जनता के बीच गलत संदेश लेकर गया है। जिसका खामियाज़ा ये रहा कि भाजपा के वोट इधर-उधऱ शिफ्ट हो रहे है।

Leave a comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More