इलेक्टोरल बॉन्ड पर मचा सियासी घमासान

राफेल के बाद कांग्रेस के पास लंबे समय से सरकार को घेरने का कोई पॉलिटिकल नैरेटिव नहीं था। मौजूदा शीतकालीन सत्र में कांग्रेस की ओर इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा उठाया गया है। आज लोकसभा सदन में मनीष तिवारी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। शून्यकाल में मनीष तिवारी ने भाजपा पर तीखा हमला करते हुए आरोप लगाया कि, भाजपा ने दाउद इब्राहिम के सहयोगी इकबाल मिर्ची से इलेक्टोरल बॉन्ड के तौर पर राजनीतिक चंदा लिया है। जिसके बाद से विपक्षी दलों को भाजपा को घेरने का मौका मिला गया। तिवारी ने आरोप लगाते हुए ये भी कहा कि सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड लाकर, भष्ट्राचार को सर्वमान्य अमलीजामा पहनाने की कोशिश की है। इस तरीके से ना तो चंदा देने वाले का पता चलता है और ना ही लेने वाले का। अपना पक्ष ढ़ंग से ना रख पाने की वज़ह से कांग्रेस पार्टी और सोनिया गांधी ने सदन से वॉक-आउट किया। बाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए मनीष तिवारी ने मामले की जांच के लिए जेपीसी गठन की मांग की। 

पहले जानिये इलेक्टोरल बॉन्ड है क्या ? 
पॉलिटिकल पार्टियों में राजनैतिक शुचिता और पारदर्शिता के मद्देनज़र इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था को देश में लागू किया गया। इसके तहत कोई भी व्यक्ति, संस्था, कॉर्पोरेट ऑर्गनाइजेशन और देशी-विदेशी कम्पनियां अगर किसी पॉलिटिकल पार्टी को फंड देना चाहती है तो, वह एसबीआई की चुनिन्दा शाखाओं से बांड खरीद कर राजनैतिक दलों को फंड कर सकती है। खास़ ये है कि बैंक इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने से पहले केवाईसी करेगा। इसकी बिक्री जनवरी से शुरू होकर हर तीन महीने के अन्तराल खुलेगी। यानि कि तीन महीने में एक बार ये खरीदा जा सकेगा। ये बॉन्ड खरीदने पाने वाले दोनों का ही नाम गुप्त रखा जायेगा। बैंक में इसका रिकॉर्ड दर्ज होगा और दानदाता को आईटीआर फाइल करते समय इसका जिक्र भी करना होगा। इस तरह से इसकी जानकारी खरीदने वाले, बैंक और आयकर विभाग के पास होगी। एक बार बॉन्ड खरीदने के बाद इसकी वैधता 15 दिनों के लिए होगी। 

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड के फायदे 
पहले पॉलिटिकल पार्टियां फंड इकट्ठा करते समय दानदाताओं पर कम या ज़्यादा दान देने का आरोप लगाती थी। अब ये पूरी तरह से खत्म हो जायेगा। अब कोई भी किसी को भी पॉलिटिकल फडिंग कर सकता है बिना किसी परवाह के। इसकी वज़ह से पॉलिटिकल फंडिंग करने वालों को नफा-नुकसान के बारे में नहीं सोचना पड़ेगा। फिलहाल इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से हज़ार, दस हज़ार, एक लाख, दस लाख और ज़्यादा से ज़्यादा एक करोड़ रूपये के पॉलिटिकल फंड़ देने की व्यवस्था। ध्यान रखने वाली बात ये है कि जो भी ये बॉन्ड खरीदेगा बैंक को उसका केवाईसी करना होगा और साथ ही उस व्यक्ति या संस्था को इसका जिक्र अपनी बैलेंस शीट में भी करना होगा। यानि की पारदर्शिता के नाम पर पॉलिटिकल फड़िंग में धन-प्रवाह की जानकारी दानकर्ता, बैंक और आयकर विभाग को रहेगी। इससे राजनीति में कालेधन पर लगाम कसी जा सकती है। कुल मिलाकर पॉलिटिकल पार्टियों के पास सिर्फ इतनी जानकारी रहेगी कि, उनके पास कितना फंड आया है। किसने दिया और कितना दिया। ये जानकारी उनके पास नहीं रहेगी। राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग से सिर्फ इतनी जानकारी दे सकती है कि, उसे कितना फंड मिला। 

कहां फंसा है पेंच 
सियासी रस्साकशीं का एक पुराना फॉर्मूला है। कोई भी प्लान फूलप्रूफ नहीं होता। कोई भी लॉबिस्ट, दलाल या फिर माफिया किसी पॉलिटिकल पार्टी को बदनाम करने के लिए इसका सीधा इस्तेमाल कर सकता है। मान लीजिए कि किसी आंतकी संगठन के सरगना ने विदेश में कोई मुखौटा कंपनी खोल रखी है। उसके द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद कर साजिशन किसी पॉलिटिकल पार्टी को फंड करता है। और उस पॉलिटिकल पार्टी को बदनाम करने के लिए खब़र प्लॉन्ट कर देता है कि फलां राजनीतिक दल का फलां आंतकी संगठन की मुखौटा कंपनी ने फंड़िंग की है। ऐसे में उस पॉलिटिकल पार्टी की बदनामी मीडिया ट्रायल से होगी। जबकि हकीकत ये है कि उस पार्टी को ये पता ही नहीं होता है कि फंड कहां से आया और किसने दिया। इसी मामले को लेकर मौजूदा व्यवस्था में पेंच फंसा हुआ है। 

आरबीआई और चुनाव आयोग ने आपत्ति जाहिर की थी 
आरबीआई ने इस प्रणाली पर सवालिया निशान लगाया है। रिजर्व बैंक के मुताबिक इसमें पारदर्शिता का अभाव है। ये मनी लॉड्रिंग एक्ट को कमजोर करता है। साथ ही बैकिंग ढांचे पर ये अतिरिक्त बोझ डालेगा। दूसरी ओर चुनाव आयोग के अनुसार ने पॉलिटिकल फडिंग में नाम ना जाहिर की वज़ह से, कई सारी फर्जी कम्पनियों के पनपने की गुंजाइश जहिर की थी। 

प्रियंका गांधी ने इस मामले को लेकर बैक-टू-बैक टू दो ट्विट किये। पहले ट्विट में एक वेब-पोर्टल की रिपोर्ट का भी हवाला दिया।

इलेक्टोरल बॉंड के जरिए चंदा लेने के मामले में एक रिपोर्ट ने 4 खुलासे किए हैं। कल भाजपा सरकार के मंत्री ने एक रटा रटाया कागज प्रेस के सामने पढ़ दिया! लेकिन इन प्रश्नों के जवाब कहाँ हैं?

1. क्या यह सच है कि RBI और चुनाव आयोग की आपत्तियों को नकारा गया? https://t.co/qJ3bzFIf0s

— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) November 22, 2019

2- रिपोर्ट में लिखा है कि प्रधानमंत्री जी ने कर्नाटक चुनाव के दौरान गैरक़ानूनी तरीक़े से बॉंड की बिक्री की अनुमति दी? क्या यह सच है?

3-चंदा देने वाले की पहचान गोपनीय है- क्या सरकार ने ये झूठ बोला?

— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) November 22, 2019

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