पिहुरीखेड़ा गांव में जब पहली बार पहुँचा Pizza

नूडल, पिज्जा (Pizza) बेचनेवाली कंपनियां बता रही हैं कि अब गांवों में धुआंधारी से पिज्जा बिक रहा है। दे दनादन महंगी चाकलेट भी बिक रही हैं और महंगी वाली शराब भी बिक रही है। कोरोना की मंदी ने जितना शहरों को प्रभावित किया है, उतना गांवों पर असर नहीं डाला। गांवों में रोजगार की गारंटी योजना भी चल रही है। तरह तरह की स्कीमों में गांवों में रकम पहुंच रही है। रकम से पिज्जा खरीदा जा रहा है। कंपनियों के मजे आ रहे हैं।

मेरी चिंता यह है कि गांव में पौष्टिक आहार (Nutritious Food) के बहुत विकल्प मौजूद हैं, काहे पिज्जा में रकम गलानी। शहर के मां बाप ही परेशान रहते हैं कि बच्चे हर दूसरे दिन पिज्जा की मांग करने लगते हैं। औऱ भी गम हैं जमाने में पिज्जा के सिवा। पर पिज्जा का जो जलवा है, किसी और आइटम का नहीं है अब। और अब अंगरेजी शराब को नये ग्राहक गांवों में मिल रहे हैं। शोले फिल्म के रीमेक में वीरु टंकी पर चढ़कर जो दारु पीकर बवाल मचायेगा, वह अब अंगरेजी होगी। देशी ठर्ऱा पीकर वीरू मार नहीं मचायेगा। मार बवाल सिर्फ देशी पीकर ही क्यों हो, अंगरेजी के हिस्से भी कुछ बवाल जाना चाहिए। होगा जी, बिलकुल होगा। अंगरेजी गांव तक पहुंच रही है। अंगरेज मुल्क छोड़कर गये, अंगरेजी कभी नहीं जायेगी। उस दिन एक छात्र ने मुझसे पूछा कि कालेज कब खुलेंगे, मैंने जवाब दिया कि सबसे महत्वपूर्ण संस्थानों को प्राथमिकता के आधार पर खोला जा रहा है। मई -जून में  शराब की दुकानें खुल गयी थीं, नवंबर दिसंबर तक भी कालेज नहीं खुले हैं। समझा जाना चाहिए कि ज्यादा महत्व किसका है। अब अंगरेजी का महत्व गांव तक पहुंच रहा है। तेजी से पहुंच रहा है।

भारत में विकास के मायने क्या-यही कि जो आइटम महानगरों में उपलब्ध हैं, वो गांवों तक पहुंच जायें।

परम विकास गांवों का तब मान लिया जायेगा जब इस आशय की खबरें आने लगेंगी-पिहुरीखेड़ा से लहुराखेड़ा के दस किलोमीटर के रास्ते को तय करने में दस घंटे लगा-तीन किलोमीटर का जाम लगा। सुपर विकसित शहर (Super developed city) गुड़गांव में विकट जाम लगते हैं। पिहुरीखेड़ा में तीन घंटे का जाम लगेगा, तो वह भी गुड़गांव के लेवल पर विकसित मान लिया जायेगा। शहर का जाम अब हर तरह से गांव पहुंच रहा है। कई तरह के कारोबारियों को अब गांवों से उम्मीदें बंध गयी हैं। कुछ समय बाद वैलंटाइन उद्योग भी गांव पहुंच लेगा पूरी ताकत के साथ। गन्ने के खेत में पिज्जा के साथ आइये, अपने वैलंटाइन के साथ वैलंटाइन डे मनाइये-टाइप इश्तिहार एक कारोबारी के यहां तैयार होते देखे मैंने। समझाया मैंने कि भाई थोड़ा संभलकर इश्तिहार दीजिये-आपके इश्तिहार देखकर नौजवान गन्ने के खेत में आ जायेंगे, बाद में आप तो माल बेचकर वापस शहर आ जायेंगे, पर उन नौजवानों को तो गांव में रहना होगा। पंचायत उन नौजवानों का भरता बना देगी, यह खतरा भी समझ लीजिये। गांव में माल बेचने और शहर में माल बेचने में बहुत अंतर है। गांव में अब भी ऐसे बहुत लोग पाये जाते हैं, जो पूरी दुनिया को सुधारने की परियोजना पर काम करते हैं। शहर में आदमी आम तौर पर खुद ही सुधरने को तैयार ना दिखता।

खैर, पिहुरीखेड़ा में पिज्जा पहुंच रहा है, बिक रहा है। बस वैलंटाइनवाले होशियार रहें।

साभार – आलोक पुराणिक

Leave a comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More