न्यूज डेस्क (यर्थाथ गोस्वामी): आज वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि है। वरुथिनी एकादशी के साथ-साथ आज वल्लभाचार्य जी की 542 वीं जयंती (Vallabhacharya Jayanti 2021) मनाई जा रही है। वल्लभाचार्य महाराज पुष्टि संप्रदाय के संस्थापक थे। माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के श्रीनाथ स्वरूप से साक्षात्कार करने का प्रथम अवसर वल्लभाचार्य जी को ही मिला था। वैष्णव मान्यताओं के अनुसार वल्लभाचार्य अग्नि देवता के अवतार थे, जिनका अवतरण भक्ति भाव के प्रचार प्रसार के लिए हुआ था। वल्लभ या पुष्टि संप्रदाय वैष्णव संप्रदाय का खास हिस्सा है। जिसकी स्थापना प्रभु वल्लभाचार्य ने 16 वीं शताब्दी में की थी।
प्रभु वल्लभाचार्य का अवतरण सोमयाजी कुल के तैलंग ब्राह्मण लक्ष्मण भट्ट के यहां हुआ था। शिक्षा और अध्ययन से जुड़ा होने के कारण उनका अधिकांश समय वृंदावन, काशी और प्रयाग में बीता। उनकी माता का नाम इलम्मागारू था। सांसरिक जीवन का पालन करते हुए वे गृहस्थ भी हुए उनका विवाह महालक्ष्मी से हुआ। जिनसे उन्हें दो पुत्रों रत्न (गोपीनाथ और विट्ठलनाथ) की प्राप्ति हुई। प्रभु वल्लभाचार्य का जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर में चंपारण्य में साल 1478 में हुआ। इनके माता-पिता मुस्लिम आक्रांताओं (Muslim invaders) से भय दक्षिण भारत की ओर जा रहे थे।
रुद्र संप्रदाय के महामंडलेश्वर स्वामी विल्वामंगलचार्य जी महाराज (Mahamandaleshwar Swami Wilvamangalacharyaji Maharaj) से इन्हें अष्टादशाक्षर गोपाल मंत्र की दीक्षा मिली। त्रिदंड संन्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेंद्रतीर्थ से प्राप्त हुई। साल 1530 में महज़ 52 साल की उम्र में इन्होंने काशी के हनुमान घाट पर मां गंगा के आंचल में जल समाधि ली। प्रभु वल्लभाचार्य ने अपने जीवन काल के दौरान कुल 84 शिष्यों को दीक्षा दी। जिनमें से परमानंद दास, सूरदास, कुंभन दास और कृष्ण दास प्रमुख है।
वल्लभाचार्य जी ने अद्वैतवाद मत (Monotheism) को प्रतिपादित किया। जिसके अनुसार ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा यानी कि ईश्वर, जगत और जीव ही इस समस्त तत्वों के केंद्र में है। उन्होंने जीव और जगत के बीच परस्पर संबंधों के बारे में बताते हुए कहा कि, ब्रह्म ही सत्य, सर्व व्यापक और अंतर्यामी है। इसलिए उन्होंने उन्होंने ब्रह्म तत्व को कृष्ण से जोड़ा और उनकी महिमा का गान किया। माया की अवधारणा (Concept of Personified Illusion) को वल्लभाचार्य प्रभु ने पूरी तरह खारिज किया और इन्हीं तीन तत्वों को समस्त सृष्टि का आधार बताया। उनके मुताबिक तीन तत्वों की शुद्ध साम्य की उनके मत को प्रतिपादित करती है। इसीलिए प्रतिपादित मत शुद्ध द्वैताद्वैतवाद (Pure dualism) भी कहा जाता है।
भक्ति काव्य धारा में वल्लभाचार्य प्रभु को सगुण कृष्ण भक्ति (Saguna krishna bhakti) का प्रमुख संत माना जाता है। अपने जीवनकाल के दौरान उन्होंने कई ग्रंथों को लिखा। जिनमें अणुभाष्य, ब्रह्मसूत्र भाष्य, उत्तर मीमांसा, श्रीमद्भागवत सुबोधनी टीका और तत्वार्थ दीप निबंध प्रमुख है। मूल सूत्र वेदांत नामक दर्शनशास्त्र को उन्होंने खुद प्रतिपादित किया। उनके मत शुद्धद्वैता द्वैतवाद को पुष्टिमार्गीय भक्ति धारा का मुख्य स्त्रोत माना जाता है।