Valentine Day पाइये मत, उसमें खो जाइये

Valentine Day: रोज अखबारों की सुर्खियों में कुछ खबर बहुत ही आमतौर पर छपती है। जिसके शीर्षक कुछ इस तरह के होते है जैसे प्यार में नाकाम युवक ने युवती पर तेजाब फेंका, एकतरफा प्यार में हुई हत्या, शक के चलते प्रेमिका की हत्या। बात सीधे तौर पर ये है कि, जहाँ पर विशुद्ध प्रेम होता है, वहाँ शंकायें, हीनता और असुरक्षा की कोई भावना नहीं होती है। प्रेम शब्द को तोड़कर देखा जाये तो, इसमें मैं नहीं ‘पर’ की भावना है। पाने की इच्छा रखने वाले के लिए प्रेम तो बना ही नहीं है। क्या आप लोग जानते है, शबरी मीरा और राधा में क्या समानता थी।

इन सभी को अपने इष्ट की प्राप्ति भौतिक रूप में कभी नहीं हुई। इनका नाम कालजयी क्यों है, कभी सोचा है। कारण सीधा सा है इनका प्रेम आत्मिकता भावनात्मक की सीमाओं से परे आध्यात्मिकता की ऊँचाइयों को छूता है। इसलिए इनका प्रेम अनन्त की सीमाओं से परे है। कृष्ण के लिए गोपिकाओं का अनन्य प्रेम तो भक्ति की पराकाष्ठा है। उद्धव जैसे ज्ञानी तक को प्रेम का पाठ पढ़ा डाला। राम दरस पाने की इच्छा में, पूरी उम्र गुजार देने वाली शबरी की प्रतीक्षा प्रेम के सर्वोच्च स्तर को दिखाती है। राजमहल की खोखली मर्यादाओं को तोड़कर मीरा कृष्ण के प्रति सर्वस्व समर्पित कर, दीवानी बन गयी और इन सबकी शिरोमणि है श्रीमती राधारानी। पत्नी तो रूकमिणी थी लेकिन आस्था को पूर्णता तभी मिलती है, जब श्रीयुगल सरकार की पूजा होती है। भक्ति के मार्ग में भी दो ही रास्ते बताये गये है, ज्ञानमार्ग और प्रेममार्ग। प्रेममार्ग में सहजता है और सरलता है। इसीलिए इसका अनुसरण आसान है।

इसी पर विचार करते हुए कुछ किस्से मानस के धरातल में तैर रहे है। सूफियों में एक कहानी बहुत मशहूर है। प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलने जाता है। दरवाज़े पर दस्तक देता है। अन्दर से आव़ाज आती है “कौन है” प्रेमी जव़ाब देता है “मैं हूँ” दरवाज़ा नहीं खुलता है। अगले दिन फिर से यहीं कवायद होती है। “कौन है” के जव़ाब में “मैं हूँ” आता है। दरवाज़ा नहीं खुलता है। कई दिनों तक ऐसा चलने के बाद प्रेमी काफी निराश हो जाता है। सबकुछ छोड़छाड़ कर एकान्त में निकल जाता है।

कुछ दिनों बाद उसे भटकते- भटकते परमानंद की अनुभूति होती है। आनंद की ऊर्जा उसके रोम-रोम से फूटने लगती है। आनंद उसकी नैनों से आंसू बनकर झरने लगता है। वो खुद को हवा, पानी, मिट्टी, आसमान हर जगह महसूस करने लगता है। वो खुद को एक आभामंडल में घिरा पाता है, जिसका रोमांच उसके चेहरे पर चमक बन कर जगमगा रहा होता है। शायद इन हालातों को आत्मज्ञान, कैवल्य, मोक्ष (Moksha) या इश्क हकीकी कहते है। अब उसकी प्रेम की उत्कंठा अपने चरम पर थी। प्रेमिका के घर पहुँच दस्तक दी, अन्दर से आव़ाज आयी “कौन है”, इधर से उत्तर गया “तू ही तो है” अबकि दरव़ाजा खुल जाता है।

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इसीलिए सूफियों का मानना है कि प्रेम के दरव़ाजे बाहर की ओर से नहीं अन्दर की ओर से खुलते है और खुलते तभी है, जब मैं मर जाता है। हमारे एक मित्र है वो अपने परिवार का एक किस्सा बताते है, उनके पिता जी युवावस्था में थे, तो उन्हें एक लड़की से प्रेम हो गया। दोनों तरफ के घरवालों को ये बात पता थी। रिश्ते नातेदारों के नज़रों में, ये जोड़ी एकदम बेहतरीन थी। वक़्त का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि, दोनों के बीच इश्क की नाजुक डोर परवान नहीं चढ़ पायी। दोनों की शादी अलग-अलग जगह हो गयी, लेकिन आज भी जब उस महिला का आमना-सामना मेरे मित्र के पिता जी और उनकी माता जी से होता है, वो दोनों के चरण स्पर्श करती हैं।

संबंध आज भी आत्मीयपूर्ण है, मेरे मित्र को वो महिला मातृवत् अगाध स्नेह करती है। अब उस महिला के पति और मेरे मित्र के पिता अच्छे दोस्त है। मेरे मित्र के पिता और उस महिला के प्रेम के बारे में, मित्र की माता और उस महिला के पति को पता है। यौवन, सुन्दरता,मोहकता और उन्माद प्रेम के सहचर नहीं हो सकते है। यदि इश्क इन चीज़ों के साथ परवान चढ़ता है, तो ये पक्का है कि एक दिन ये धम्म् से नीचे गिरेगा। इसी के मद्देनज़र एक किस्सा और निकलकर आता है।

जो मैनें कहीं पढ़ा था। जो कि कुछ इस तरह से है। अभी उसने अपने जीवन का सोलहवां बसन्त ही देखा था, चेहरे पर यौवन की तरूणाई फूट रही थी। तथागत से दीक्षा लेने के बाद तो उस नवयुवक बौद्ध भिक्षु के मुख पर शांति और यौवन के मिश्रण से बना, अज़ब सा सम्मोहन छाया हुआ था। मुस्कान सदैव सखी की भांति उसे चेहरे पर लाली बिखेरती थी। भिक्षापात्र लिये जब वो कहीं से निकलता तो दिव्यता का वातावरण बन जाता। उसके सामने कोटि-कोटि कामदेव भी लज्जित हो जाते। दुनियावी ख्वाहिशों से दूर वो भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को फैलाता। नगर-नगर, गांव-गांव घूमता। एक बार वो किसी उपवन से गुजर रहा था, तो वहाँ की विख्यात नगर वधू की नज़र उस बौद्ध भिक्षु पर पड़ी। नगर वधू उसके अपार यौवन पर रीझ पड़ी। और उससे गुजारिश करने लगी कि, वो उसे अपना ले और चलकर फेनिल मदिरा का आनंद ले, मोक्ष का रास्ता छोड़ दे।

ज्ञान और मोक्ष जैसी चीज़ों में कुछ नहीं रखा। भिक्षु नगर वधू की इस याचना पर मुस्कुराता रहता है, लेकिन कोई जवाब़ नहीं दिया। अपनी कोशिशों में खुद को हारता देख नगर वधू कहती है “भन्ते: मैं तुमसे से प्रेम करती हूँ” भिक्षु मुस्कुराते हुए कहता है कि “ ये समस्त सृष्टि, चराचर, ब्रह्मांड प्रेम की ही ऊर्जा से गतिमान है। मेरा इन सबसे प्रेम का नाता है, तुम इसी सृष्टि का एक हिस्सा हो, इसलिए मैं भी तुमसे प्रेम करता हूँ। लेकिन मेरा प्रेम तुम्हारे प्रति आज के लिए नहीं है” इस तरह वो कहकर आगे निकल जाता है। ऋतुयें आती है, जाती है। बसन्त धरती को पुष्पित- पल्लवित करता है।

वर्षा आती है नदी तालों को अपने स्नेह की ऊर्जा से भर देती है। ग्रीष्म अपनी करूणा की उष्मा से फसलों को पक्का देती है। शरद का उल्लास, त्यौहारों की परिणति पर आकर थमता है। लेकिन उस भिक्षु का अंतहीन सफर लगातार बन रहता है।

भिक्षु की वापसी कई वर्षों बाद उसी नगर में होती है। उसके चेहरे को देखकर लगता है कि समय उसके लिए बना ही ना हो। पहले जैसी आभा और शांति अभी उसके चेहरे पर है। घूमते-घूमते वो नदी के किनारे पर पहुँचता है। नदी किनारे टूटी-फूटी झोंपड़ी बनी हुई है, जिसमें एक बुढ़िया दर्द के मारे कराहा रही है। पूरे शरीर पर कोढ़ के गहरे घावों का प्रकोप है। उन घावों की मवाद फुहार में कीड़े कुलबुलाकर तैर रहे है। उसके शरीर से उठने वाली सड़न की बदबू से आम आदमी तो शायद वहाँ जाना भी गंवारा ना समझे। कौव्वे और गिद्ध उस बुढ़िया के शरीर का मांस नोंच-नोंचकर दावतें उड़ाकर धन्य हो रहे थे। शरीर गलकर कपाल और अस्थिपंजर की मानिक हो गया था। मानों मृत्यु देवता उस बुढ़िया के लिए घात लगाये बैठे हो।

बौद्ध भिक्षु झोले से अपना अंगरखा निकाल नदी में डुबोता है और निचोड़कर, उस बुढ़िया के जख्मों को साफ करते हुए कहता है कि, “तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम आज ही के लिए था” उस बुढ़िया के नेत्र सजल हो जाते है। दर्द और बदबू का स्थान करूणा और प्रेम ले लेते है। निस्वार्थ भाव और त्याग देखकर उस बुढ़िया का दर्द जाता रहा। अपने पूरे जीवन में आज उसने पहली बार अद्भुत सुख की अनुभूति की। जीवन भर जिन चीज़ों को उसने चाहा, उनसे उसे इतना संतोष ना मिला था, जितना आज मिला है। जीवन की आखिरी बेला में उसे प्रेम के वास्तविक अर्थ समझ में आये। आखिर में उन लोगों को मेरा मशवरा, जो इश्क को जबरन् हथियाना चाहते है, कोई आपसे प्रेम (Love) करता है तो उसे आज़ाद छोड़ दीजिए। अगर वो आपके पास लौटकर आता है तो, इसका सीधा सा मतलब है, वो आप ही का था। अगर वो वापस नहीं लौटता है तो, पाने की ख्वाहिशें छोड़कर उसमें खो जाइये।

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