किस्सा गदर पार्टी के गुमनाम नायक Rehmat Ali Shah और उनके साथियों का

27 नवम्बर 1914 को फ़िरोज़पुर से मोगा जाते समय मस्रीवाला पुल के पास टांगे पर बैठ कर रहमत अली शाह (Rehmat Ali Shah) की क़यादत में जा रहे क्रांतिकारियों को पुलिस द्वारा रोका गया और उनके साथ बदतमीज़ी की जाने लगी और जब रहमत अली शाह ने उनका विरोध करते हुए सवाल किया तो उन्हे पुलिस वालों ने थप्पड़ जड़ दिया। इतना देखना था के उनके साथी जगत सिंह और कचरभाल गंधा सिंह ने पुलिस वालों पर हमला कर ज़ैलदार और थानेदार को वहीं पर मौत के घाट उतार दिया और बाक़ी पुलिस वाले एका एक हुए हमले से घबरा कर भाग गए।

तमाम क्रांतिकारी जंगल मे जा छुपे; पर पुलिस ने तब तक पूरे इलाक़े को घेर लिया और आग लगा दी। धियान सिंह और चंदा सिंह वहीं पर शहीद हो गए। कुछ लोग भागने में कामयाब रहे और कुल सात लोग पक़ड़ लिए गए।

फ़िरोज़पुर सेशन जज ने इन सभों को अंग्रेज़ी सरकार से बग़ावत और क़त्ल के जुर्म में सज़ा-ए मौत दी और 25 मार्च 1915 को वतन ए अज़ीज़ हिन्दुस्तान की आज़ादी की ख़ातिर मुजाहिद ए आज़ादी रहमत अली शाह 29 साल की उम्र में अपने साथी लाल सिंह, जगत सिंह और जीवन सिंह को मांटगेमरी सेंट्रल जेल (Montgomery Central Jail) जो अब पकिस्तान में है, में फांसी के फ़ंदे पर चढ़ जाते हैं। अगले दिन 26 मार्च 1915 को ध्यान सिंह, कांशी राम और बख़्शीश सिंह को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया। बाद में बाक़ी भागे हुए क्रांतिकारियों को भी गिरफ़्तार कर लिया गया, भगत सिंह दिसम्बर 1915 को गिरफ़्तार हुए, सुर्जन सिंह को हिमाचल प्रदेश से 2 मई 1916 में गिरफ़्तार किया गया, और बाबू राम को सितम्बर 1916 को गिरफ़्तार हुए, जिन्हें अलग-अलग तारीख़ को अलग-अलग जगह फांसी पर लटका दिया गया।

असल में 26 नवम्बर 1914 को ग़दर पार्टी की एक मीटिंग पंजाब के फ़िरोज़पुर शहर के बाहर जलालाबाद रोड पर हुई लेकिन वहां आगे के लिए किसी भी प्लान पर बात नहीं हो सकी। 27 नवम्बर 1914 को करतार सिंह सराभा (Kartar Singh Sarabha) के साथ सब लोग लुधियाना के लिए ट्रेन से निकले पर रहमत अली शाह अपने कुछ साथियों के साथ पीछे ही छूट गए और उन लोगों ने मोगा ज़िला जाने का इरादा किया और तांगे पर सवार हो कर कचरभाल गंधा सिंह, जगत सिंह, ध्यान सिंह और चंदा सिंह के साथ उधर के लिए निकल पड़े। रास्ते में ही इनकी पुलिस स्टेशन के पास कुछ पुलिस अहलाकारों से भिडंत हो गई थी।

ये सारे लोग ग़दर पार्टी के अंडरकवर कार्यकर्ता थे। ग़दर पार्टी का मक़सद प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पूरे भारत में वैसा ही ग़दर मचाना था, जैसा 1857 में क्रांतिकारी सिपाहियों ने मचाया था और इस मिशन को कामयाब बनाने के लिए ग़दर पार्टी ने विदेश में रह रहे भारतीयों को ग़दर मचाने की ख़ातिर वापस भारत जाने को तैयार किया। और ये सारे लोग भी हिन्दुस्तानी ही थे पर अमेरिका, चीन सहित दुनिया के कई मुल्कों में रह रहे थे। और अपने मुल्क हिन्दुस्तान को आज़ाद करवाने की ख़ातिर वापस हिन्दुस्तान आये थे।

साभार – मोहम्मद उमर अशरफ़

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