नई दिल्ली (गौरांग यदुवंशी): अब जल्द ही राज्यसभा टेलीविजन (RSTV) और लोकसभा टेलीविजन (LSTV) को मिलाकर संसद टीवी का रूप दे दिया जायेगा। जिसके लिए प्रशासनिक कवायदें तेज कर दी गयी है। इस कार्रवाई के लिए राज्यसभा अध्यक्ष ने हाल में मंजूरी दी थी। जिसके तहत अब राज्यसभा सचिवालय ने संसद टीवी की कमान 1986 आसाम-मेघालय बैच के प्रशासनिक अधिकारी रहे रवि कपूर को सौंपने का फैसला लिया है। अब रवि कपूर बतौर मुख्य कार्यकारी अधिकारी संसद टीवी का कामकाज़ देखेगें। जिनकी नियुक्ति संविदा पर की जा चुकी है। हाल ही में इस फरमान को लेकर आदेश संख्या संसद टीवी/01/2021 जारी कर दी गयी।
फिलहाल एक साल या अगले आदेशों तक वो इस पद पर कार्यभार संभालेगें। दूसरी और मौजूदा राज्यसभा टेलीविजन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मनोज कुमार पाण्डेय की सेवाओं को राज्यसभा सचिवालय ने तुरन्त प्रभाव से निरस्त (Canceled with immediate effect) कर दिया है। जिसके लिए सक्षम अधिकारी के आदेश पर उन्हें एक महीने के अतिरिक्त पेशेवर शुल्क का भुगतान कर दिया गया है।
गौरतलब है कि RSTV का कॉन्टेंट कई मायनों ने दूरदर्शन से बेहतर माना जाता है। जहां दूरदर्शन के कई चैनल अभी भी 90 के दशक के कई प्रोग्राम चलाकर खानापूर्ति कर रहे है। वहीं राज्यसभा टेलीविजन के प्रोग्राम और उनकी आउटपुट क्वालिटी कई प्राइवेट चैनलों से बेहतर है।
जिसके पीछे एक बेहतरीन टीम (Great team) लंबे वक्त से काम करती आयी है। जिसके करीब सभी सदस्य संविदा पर ही कार्यरत है। अब इन्हीं लोगों की सालों की मेहनत जाया जाती दिख रही है। जिन लोगों ने राज्यसभा टीवी को फर्श से उठाकर अर्श तक पहुँचाया। अब उन लोगों के घरों के चूल्हे ठंड़े पड़ते दिख रहे है। जिसके लिए राज्यसभा सचिवालय अभी तक उन लोगों की सुध लेने नहीं आया। अभी तक उनके भविष्य को लेकर कहीं से कोई सकारात्मक आश्वासन नहीं मिला है। कोरोना संकटकाल के इस दौर में जहां अर्थव्यवस्था अपाहिज़ होकर लड़खड़ा रही और रोजगार के अवसर ना के बराबर है। वहीं एकाएक सरकार द्वारा संचालित संस्थान में लोगों की नौकरी जाने की पुख़्ता संभावनायें मानसिक तनाव बढ़ाने का काम कर रही है।
आमतौर से मीडिया संस्थानों में बैकडोर एन्ट्री और हाई प्रोफाइल सिफारिशी कैंडीडेट का चलन आम बात है। ऐसे में चल रहे सैटअप में काम कर रहे लोगों का नौकरी से हाथ धोना बेहद दर्दनाक बात होती है। ऐसे में राज्यसभा अध्यक्ष और लोकसभा अध्यक्ष को मानवीय पक्षों पर गौर करते हुए आगे आना चाहिए। साथ ही उन्हें संविदा पर काम कर रहे मीडियाकर्मियों के कैरियर को लेकर बनी अनिश्चितता (Uncertainty regarding career) से उन्हें मुक्त कराना चाहिए।
भले ही दोनों टीवी चैनल मिलकर एक हो रहे हो, लेकिन पेशेवर और प्रशिक्षित मीडिया कर्मियों को नौकरी को बहाल रखकर बेहतरीन मिसाल पेश की जा सकती है। इससे हायरिंग, इन्टरव्यूह और अपॉइंटमेंट में लगने वाले पैसे और वक्त की बचत तो होगी ही साथ ही कई लोगों का परिवार रोजीरोटी के मंडराते संकट से बच जायेगा। दोनों ही सदनों के अध्यक्ष और सचिवालय के अधिकारी इस बात से भली-भांति वाक़िफ है। अब देखना दिलचस्प रहेगा कि आने वाले वक़्त में लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा अध्यक्ष और दोनों सदनों के सचिवालय से जुड़े आला अधिकारी मानवीय पक्षों पर कितना खरा उतर पाते है।