मोदी सरकार के खिल़ाफ हुआ RSS से जुड़ा संगठन

भले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खुद को सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन कहता हो, लेकिन मौजूदा सरकार की कई नीतियों की दिशा और दशा संघ ही तय करता रहा है। लेकिन कई मौके ऐसे भी आये है जब आरएसएस के आनुषांगिक संगठन भारतीय मजदूर संघ और केन्द्र सरकार के बीच विरोधाभासी स्थितियां पनपते देखी गयी है। भारतीय मजदूर संघ के दीर्घकालीन एजेंडे के तहत मोदी सरकार ने आज तक अनुबंधित कर्मियों को स्थायी करने से लेकर कई दूसरी अहम मांगों की नाफरमानी की है।

इसके साथ ही कई दूसरे मोर्चों पर भारतीय मजदूर संघ और केन्द्र सरकार के बीच दूरी देखी गयी है। विनिवेशीकरण की प्रक्रिया इस सूरत में काफी अहम् है। इस मुद्दे पर भी दोनों के बीच खुलकर रार देखी जा रही है। एयर इंडिया के बाद अब एलआईसी और आईडीबीआई बैंक में हिस्सेदारी बेचने को लेकर सरकार के प्रति भारतीय मजदूर संघ में भारी नाराजगी देखी जा रही है। बीएमएस ने इस कवायद को आत्मघाती बताते हुए कहा कि- इस तरह का फैसले लेकर सरकार गलत उदाहरण पेश कर रही है। राष्ट्र की धरोहरों के बेचकर पैसा जुटाने का, ये बेहद गलत तरीका है। सरकार की बेबसी का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब रेवन्यू पैदा करने के लिए राष्ट्र की धरोहरों की नीलामी की जा रही है।

बीएमएस ने सरकार को सलाह देते हुए वैकल्पिक मॉडल से राजस्व में बढ़ोत्तरी लाने की हिदायत देते हुए एलआईसी को मध्यमवर्ग की बचतों का रखवाला और आईडीबीआई को छोटी औद्योगिक इकाइयों का वित्तपोषण करने वाला बताया। सरकार को चेताते हुए फैसले के गंभीर नतीज़े भुगतने की बात कहीं।

गौरतलब है कि केन्द्र सरकार विनिवेशीकरण के तहत भारतीय जीवन बीमा निगम की कुछ हिस्सेदारी शेयर बाज़ार में आईपीओ के तौर पर लाने वाली है। जिसकी बात वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने बजट भाषण के दौरान कहीं थी। फिलहाल एलआईसी पूरी तरह से सरकार की नियन्त्रण में है। दूसरी जब केन्द्र सरकार आईडीबीआई बैंक में अपनी हिस्सेदारी बेचने का ऐलान किया तो आईडीबीआई बैंक के शेयर कल 10 फीसदी का सीधा उछाल दर्ज किया गया।

बीएमएस मोदी सरकार की नीतियों पर शुरू से ही मुखर रहा है। श्रमिक, श्रम कानून, संविदाकर्मियों का स्थायीकरण, कराधान नीतियां, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और केन्द्रीय संस्थानों का निगमीकरण, निजीकरण आदि मुद्दों पर सरकार और बीएमएस हमेशा से ही दो हिस्सों में बंटे दिखे है। ऐसे में सवाल उठने लाज़िमी है कि जिन संगठनों के कंधों पर चढ़कर भाजपा सत्ता के शीर्ष पर बैठी है, उन्हें दरकिनार करके वो क्या संदेश देना चाह रही है? अब भाजपा के सामने आरएसएस बौनी है ?

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