Manipur Clashes: महिलाओं ने संभाली विरोध-प्रदर्शन की कमान, इंफाल समेत कई मोर्चों पर है आगे

न्यूज डेस्क (शाश्वत अहीर): Manipur Clashes: मणिपुर में मैतेई और कुकी (Meitei and Kuki) जनजातीय समुदाय के बीच तनाव की वज़ह से हुई हिंसा और झड़पों में अब महिलाएं राज्य में अशांति का असली चेहरा बनकर उभर रही हैं। मणिपुर में ‘नारी शक्ति’ की एक अनोखी तस्वीर देखने को मिल रही है, जहां महिलायें ही सुर्खियां बटोर रही हैं। हालाँकि ज्यादातर हिंसक विरोध प्रदर्शनों और बड़े आंदोलनों में गड़बड़ी के केंद्र में पुरुष ही होते हैं, लेकिन महिलायें जल्द ही मणिपुर में गड़बड़ी का चेहरा बनकर उभरी हैं, खासकर भारतीय सेना के साथ सबसे हालिया भीड़ की घटना में।

मणिपुर में महिलाओं की अगुवाई में 1500 लोगों की भीड़ ने इंफाल में भारतीय सेना को घेर लिया, जिसकी वज़ह से भारतीय सेना (Indian Army) के अधिकारियों को कांगलेई यावोल कन्ना लुप (KYKL – Kanglei Yavol Kanna Loop) गुट के 12 उग्रवादियों को मौके पर ही छोड़ना पड़ा, सेना ने इन लोगों को पकड़ने के अपने ऑपरेशन को नाकामयाब माना।

हालाँकि ये पहली बार नहीं है जब अधिकारियों के साथ इस तरह के टकराव की बात सामने आयी, मणिपुर में महिलाओं ने मामले को अपने हाथों में ले लिया है। उग्रवादियों की रिहाई से एक दिन पहले महिलाओं के एक बड़े गुट ने सेना के जवानों को उस ठिकानों पर पहुंचने से रोक दिया था, जहां दंगाई गोलीबारी करते हुए कांगपोकपी और यिंगांगपोकपी (Kangpokpi and Yingangpokpi) इलाके में गड़बड़ी पैदा कर रहे थे।

इसी क्रम में अधिकारियों ने पिछले हफ्ते हुई एक घटना की भी जानकारी दी, जहां हथियारखाने से असलहों की लूट के मामले में चल रही जांच के बीच सीबीआई की एक टीम को इम्फाल पूर्व के पांगेई में मणिपुर पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज तक पहुंचने से रोक दिया गया था।

न सिर्फ मणिपुर में बल्कि दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) के घर के बाहर और जंतर-मंतर (Jantar Mantar) पर हुए विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करने वाली महिलायें ही थीं, जिन्होंने मेइतेई और कुकी समुदाय के बीच झड़पों की वज़ह से हुई हिंसा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था।

सूबे में मौजूदा अशांति के बीच जब सड़कों पर इकट्ठा होने की बात आयी तो मणिपुरी महिलाओं ने इसका नेतृत्व किया है। विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करने वाली महिलायें राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी बेहद मुखर होकर आलोचना कर रही हैं, जिससे अधिकारियों को हिंसा के दौर को खत्म करने के लिये भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है।

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