Know how to do Pitrapaksha Rituals जानिये पितृपक्ष से जुड़े वैदिक विधान और बातें

हिन्दू मान्यताओं में अपने पूर्वजों और पितृ देवताओं के प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए पितृ पक्ष एवं श्राद्ध कर्म करना बेहद जरूरी है। सनातन धर्म में देवों को प्रसन्न करने से पहले, पितरों को प्रसन्न किया जाता है। हमारी सनातन परम्परा में एक पखवाड़ा इस कार्य के लिए पूर्ण रूप से समर्पित है। इन दिनों वैदिक आह्वान से हमारे पूर्वज तृप्त हो जाते हैं। इन दिनों में किये गये विधान, दान और कर्मकांड से पितर देवता सन्तुष्ट होते है और साथ ही पितृदोष भी समाप्त होता है। इस पखवाड़े में वैदिक विधि से किये गये श्राद्ध कर्म के माध्‍यम से भोग प्रसाद ग्रहण करके कुल के समस्त पितर देवता हमें आशीर्वाद देकर वापस अपने लोक चले जाते हैं।

आइये जानते है पितृपक्ष के श्राद्ध कर्म जुड़ी कुछ बातें 
  • श्राद्धपक्ष माह की भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्चिन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक जो भी दान -धर्म किया जाता है। वह सीधे ही पितरों को प्राप्त होता है। पितरों तक यह भोजन पदार्थ ब्राह्माणों व पक्षियों के द्वारा पहुंचता है। जिन व्यक्तियों की श्राद्ध तिथि का ज्ञान न हो, उन सभी का श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है।

  • यदि किसी पूर्वज की मृत्यु किसी शस्त्र, विष या दुर्घटना आदि में हुई हो तो, ऎसे पूर्वजों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है साथ ही चतुर्दशी तिथि में शरीर त्यागने वाले व्यक्तियों का श्राद्ध अमावस्या तिथि में करने का विशेष विधान है।

  • सनातन शास्त्रों में पितरलोक में निवासित पिता को वसु, दादा को रुद्र और परदादा को आदित्य का अंश माना गया है। तिल देवताओं का अन्न है। अतएव तर्पण के सभी विधान इसी से सम्पूर्ण होते है। आमतौर पर हिन्दू मान्यताओं में यमराज की पूजा नहीं होती है। लेकिन श्राद्ध पक्ष में हम यम के प्रतिरूपों (गऊ, कौआ, कुत्ता) का स्मरण करते हुए उन्हें भोजन कराते हैं। ।

  • पिंडदान के लिए बिहार में गया को खास माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गया गयासुर राक्षस के पीठ पर स्थित है। गया राक्षस को विष्णु से वरदान प्राप्त है कि, यहाँ यदि कोई श्राद्ध करता है या पिंडदान के विधान पूर्ण करता है तो उसके पितरों सद्गति और मुक्ति मिलती है। उनकी आत्माओं को स्वर्ग में स्थान मिलता है। भगवान राम ने भी यहीं पिंडदान के शास्त्रीय विधान किये थे। माना जाता है कि यहां की रेत पर रखे पिंड सीधे पितृ देवताओं को प्राप्त होते है।

  • इन दिनों में दान करने का विशेष महात्मय होता है। कुछ विशेष वस्तुओं का दान अभीष्ट की प्राप्ति के लिए आवश्यक होता है। इस पखवाड़े के दौरान काला तिल, भूमि, चांदी, वस्त्र, गुड़-नमक, जूते-चप्पल और छतरी का दान अच्छा माना जाता है। ये कुछ मूलभूत वस्तुयें जिनकी आवश्यकता पितरों की आत्माओं को दूसरे लोक में होती है।

  • सनातन धर्म के स्थापित मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध कर्म बारह तरीके के होते है। परिवार के पुरोहितों और आचार्यों आदि से विमर्श करके विशेष विधान के श्राद्ध कर्म को करे। इनके प्रकार क्रमशः है- नित्य श्राद्ध, पुष्टयर्थ श्राद्ध, नैमित्तक श्राद्ध, यात्रार्थ श्राद्ध, काम्य श्राद्ध, तीर्थ श्राद्ध, वृद्धि श्राद्ध, शुद्धयर्थ श्राद्ध, सपिंडन श्राद्ध, कर्मांग श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध और गोष्ठी श्राद्ध। श्राद्ध के ये अलग-अलग प्रकार विशेष फलदायी है। विधि विधान से करने पर ये खास़ परिणाम में फलीभूत होते है।

  • कौए को पितरों का साक्षात् रूप माना जाता है। श्राद्ध के दिन भोजन ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रूप धारण कर निर्धारित तारीख पर दोपहर के वक़्त घर पर आते हैं। यदि उन्हें श्राद्ध भोजन नहीं मिलता तो वह रूष्ट हो जाते हैं। इसी वज़ह से श्राद्ध में कौओं को खासा महत्व दिया जाता है।

  • रात्रिकाल को तामसी समय माना गया है। इसलिए रात में श्राद्ध कर्म वर्जित है। दोनों संध्याओं के मध्यकाल में भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय और फलदायी होता है। गंगाजल, दुग्ध, शहद, दौहित्र, कुशा और तिल श्राद्ध विधान में इनका होने आवश्यक है। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्रों का प्रयोग अतिउत्तम माना गया हैं। इनकी उपलब्धता के अभाव में पत्तल का इस्तेमाल किया जा सकता है।

और अन्त में पितृदेवता से, इस आशीर्वाद की याचना करनी चाहिए
दातारो नोऽभिवर्धन्तां वेदा: सन्ततिरव च।
श्रद्धा च नो मा व्यगमद् बहुदेयं च नोऽस्त्विति।। (अग्निपुराण)
अर्थात्- हे समस्त पितृ देवताओ आप हमें ऐसे आशीष से अनुगृहीत करें जिससे हमारे वंश में दानवीर संतानें पैदा हो और उनमें निरन्तर वृद्धि होती रही, जो नित्य वेद और पुराण का स्वाध्याय करे ऐसी संतान रत्न प्राप्ति में बढ़ोत्तरी हो, हमारी कुल-परम्परा में निरन्तर वृद्धि होती रही। सत्कर्म करने में हम कदापि विमुख न हो और हमारे पास दान देने के लिए प्रचुर मात्रा में धन-वैभव हो।

Leave a comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More