Kisan Mahapanchayat: आज स्व. महेंद्र सिंह टिकैत जीवित होते तो वो अपने बेटो को अपना उत्तराधिकारी कभी नहीं बनाते – रामनिवास यादव

न्यूज़ डेस्क (उत्तर प्रदेश): केंद्र के विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में रविवार को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में आयोजित ‘किसान महापंचायत’ (Kisan Mahapanchayat) में विभिन्न राज्यों के किसानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) द्वारा आयोजित महापंचायत अगले साल महत्वपूर्ण यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मुजफ्फरनगर के सरकारी इंटर कॉलेज मैदान में आयोजित की गई।

मीडिया को संबोधित करते हुए, बीकेयू नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने आज कहा, “जब भारत सरकार हमें बातचीत के लिए आमंत्रित करेगी, हम जाएंगे। किसानों का आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार हमारी मांगों को पूरा नहीं करती।”

टिकैत ने कहा, “स्वतंत्रता के लिए संघर्ष 90 साल तक जारी रहा, इसलिए मुझे नहीं पता कि यह आंदोलन कब तक चलेगा। “हम संकल्प लेते हैं कि हम धरना स्थल को (दिल्ली की सीमाओं पर) वहां नहीं छोड़ेंगे, भले ही हमारा कब्रिस्तान वहां बन जाये। अगर जरूरत पड़ी तो हम अपनी जान दे देंगे, लेकिन जब तक हम विजयी नहीं हो जाते, तब तक धरना स्थल नहीं छोड़ेंगे।”

जहाँ एक और संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आयोजित इस महापंचायत में काफी भीड़ देखने को मिली वहीँ इस महापंचायत का विरोध करते हुए राष्ट्रीय अन्नदाता यूनियन के राष्ट्रीय अध्य्क्ष श्री रामनिवास यादव (Ram Niwas Yadav) ने कहा कि, "मुजफ्फरनगर मे हो रही किसान महापंचायत पूरी तरह से फेल हो गयी। इस महापंचायत में किसानो के नाम पर सपा, बसपा, कांग्रेस, लोकदल सहित किसानो की फसलों को लूटने वाले दलाल, किसानो के नाम पर शामिल हुए।"

यादव ने कहा कि, "इस महापंचायत के बाद संयुक्त किसान मोर्चा का, किसान हितैषी कृषि बिल पर असली चेहरा किसानो के सामने आया, जिसको पूरे देश का किसान अच्छी तरह से समझ गया है। जिस तरह से कथित किसान महापंचायत में देश विरोधी एवं देश के खिलाफ नारेबाजी लगाने वाले शामिल हुए उससे देश के किसान अपने आप को शर्मिंदा महसूस कर रहा है।"

रामनिवास ने किसान संगठनों की राजनीतिक पार्टियों के साथ सांठ-गांठ का आरोप लगते हुए कहा कि, "जिन तीनो कृषि बिलो का विरोध संयुक्त किसान मोर्चा एवं कुछ राजनैतिक दलों द्वारा किया जा रहा वह बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है। जिन कृषि बिलो को लागू करने की मांग किसानो के मसीहा स्व. महेंद्र सिंह टिकैत जी द्वारा लगातार की जा रही था जिसको पिछली सरकारों ने कभी लागू नहीं किया आज जब केंद्र की मोदी सरकार ने किसानो के हितो को देखते हुए तीनो कृषि बिलो को लागू किया तो पहले इन्ही किसान संगठनो ने इन कनूनो का स्वागत किया था परन्तु आज राजनैतिक कारणों एवं कुछ राजनैतिक दलों की सांठ-गांठ के कारण इन कानूनों का विरोध कर रहे है।"

यादव ने आगे कहा कि, "ये वे राजनैतिक दल है जिन्होंने कभी किसान हितो के लिए स्वामीनाथन आयोग बनाया था परन्तु इनकी सिफारिसो को कभी लागू नहीं किया। जब आज मोदी सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की लगभग सभी सिफारिसो को मानते हुए किसानो के हितो में तीनो कृषि बिलो को लागू किया तो वही राजनैतिक दल इन बिलो का विरोध करने लगे है क्योकि यह राजनैतिक दल एवं कुछ किसान संगठन कभी किसानो का हित नहीं चाह रहे थे सिर्फ राजनीती करना चाह रहे थे जिसको आज देश का किसान जान गया है।"

यादव ने टिकैत पर किसानों के साथ गद्दारी का आरोप लगते हुए कहा कि, "आज जब किसानो के मसीहा स्व. महेंद्र सिंह टिकैत जी का सपना पूरा हुआ तो कुछ राजनैतिक दलों ने पैसो के बल पर इनके बेटो को इन्ही के मांगो के खिलाफ खडा कर दिया जिससे इनके बेटे पैसे के लालच में आकर किसान हितैषी तीनो कृषि बिलो का विरोध करने लगे जबकि इनके बेटो ने पहले कृषि बिल स्वागत किया था। आज स्व. महेंद्र सिंह टिकैत जी जीवित होते तो वो भी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह जी की तरह निर्णय लेकर अपने बेटो को अपना उत्तराधिकारी कभी नहीं बनाते। वो तो उनकी अचानक मौत का फायदा उठा कर उनके बेटो ने किसान आंदोलन को राजनैतिक आंदोलन बनाकर किसानो का भला करने के नाम पर सीधा नुक्सान कर रहे है एवं स्व. महेंद्र सिंह टिकैत जी के नाम को बदनाम करने का काम कर रहे है जो बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है परन्तु राष्ट्रीय अन्नदाता यूनियन इनके मंसूबो को कभी सफल नहीं होने देगी इनके खिलाफ देश भर में आंदोलन चलाएगी।

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बता दें कि सिंघू सीमा (Singhu Border) पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के बाद, संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने शनिवार को 25 सितंबर को 'भारत बंद' (Bharat Band) का भी आह्वान किया है।

पिछले नौ महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान संघ ने एक बयान में कहा कि सिंघू बॉर्डर पर एसकेएम नेशनल कन्वेंशन ने "भारत के सभी राज्यों और जिलों में एसकेएम की संयुक्त समितियां बनाने का फैसला किया है, ताकि अखिल भारतीय विस्तार सुनिश्चित किया जा सके और साथ ही किसानों के संघर्ष की तीव्रता मिल सके।"

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