Katha: जब भगवान विष्णु ने अपना माथा पीटकर दे दिया वरदान

Katha: एक थे सर्वनिन्दक महाराज। काम-धाम कुछ आता नहीं था पर निन्दा गजब की करते थे। हमेशा औरों के काम में टाँग फँसाते थे। अगर कोई व्यक्ति मेहनत करके सुस्ताने भी बैठता तो कहते, ‘मूर्ख एक नम्बर का कामचोर है। अगर कोई काम करते हुए मिलता तो कहते, ‘मूर्ख जिंदगी भर काम करते हुए मर जायेगा।

कोई पूजा-पाठ में रुचि दिखाता तो कहते, ‘पूजा के नाम पर देह चुरा रहा है। ये पूजा के नाम पर मस्ती करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता।’ अगर कोई व्यक्ति पूजा-पाठ नहीं करता तो कहते, ‘मूर्ख नास्तिक (Atheist) है! भगवान से कोई मतलब ही नहीं है। मरने के बाद पक्का नर्क में जायेगा।

माने निन्दा के इतने पक्के खिलाड़ी बन गये कि आखिरकार नारदजी ने अपने स्वभाव अनुसार विष्णु जी के पास इसकी खबर पहुँचा ही दिया। विष्णु जी ने कहा ‘उन्हें विष्णु लोक में भोजन पर आमंत्रित कीजिए।’ नारद तुरन्त भगवान का न्यौता लेकर सर्वनिन्दक (Blasphemer) महाराज के पास पहुँचे और बिना कोई जोखिम लिये हुए उन्हें अपने साथ ही विष्णु लोक लेकर पहुँच गये कि पता नहीं कब महाराज पलटी मार दे।

उधर लक्ष्मी जी ने नाना प्रकार के व्यंजन अपने हाथों से तैयार कर सर्वनिन्दक जी को परोसा। सर्वनिन्दक जी ने जमकर हाथ साफ किया। वे बड़े प्रसन्न दिख रहे थे। विष्णु जी को पूरा विश्वास हो गया कि सर्वनिन्दक जी लक्ष्मी जी (Lakshmi ji) के बनाये भोजन की निन्दा कर ही नहीं सकते। फिर भी नारद जी (Narad ji) को संतुष्ट करने के लिए पूछ लिया, और महाराज भोजन कैसा लगा?

सर्वनिन्दक जी बोले, महाराज भोजन का तो पूछिये मत, आत्मा तृप्त हो गयी। लेकिन... भोजन इतना भी अच्छा नहीं बनना चाहिए कि आदमी खाते-खाते प्राण ही त्याग दे। विष्णु जी ने माथा पीट लिया और बोले, 'हे वत्स, निन्दा के प्रति आपका समर्पण देखकर मैं प्रसन्न हुआ। आपने तो लक्ष्मी जी को भी नहीं छोडा़ वर माँगो।

सर्वनिन्दक जी ने शर्माते हुए कहा– 'हे प्रभु! मेरे वंश में वृद्धि होनी चाहिए। भगवान् विष्णु (Lord Vishnu) ने कहा– 'तथास्तु।' तभी से ऐसे निरर्थक सर्वनिन्दक महाराज सभी जगहों में पाए जाने लगे। हम चाहे कुछ भी कर लें इन निन्दकों महाराजों की प्रजाति को संतुष्ट नहीं कर सकते। इनका काम ही ये है कि खुद कुछ ना करके दूसरों के किये की निन्दा करना। अतः ऐसे लोगों की परवाह किये बिना अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर रहना चाहिए।

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