Love Life & Jyotish: ग्रहों का होता लवलाइफ पर सीधा असर, इस तरह के होते है ज्योतिषीय समीकरण

प्रेम जीवन (Love Life) में ज्योतिषीय दशाओं (Jyotish Condition) और ग्रहों की स्थिति का सीधा असर पड़ता है जो कि अंतरंगता और नजदीकियों को तय करता है। प्रेमियों की कुंडलियां और नक्षत्रों की सामंजस्यता वैवाहिक संयोग और विरह के हालातों को पैदा करती है। इन्हीं तथ्यों का विश्लेषण ज्योतिषीय शास्त्रों में किया जाता है ताकि पता लगाया जा सके कि प्रेम आखिर किस मुकाम तक पहुँच सकता है।

कुंडली में प्रेम (योग) संबंध

  • कुंडली में शुक्र ग्रह का अच्छी स्थिति में होना एक सफल प्यार की निशानी को बताता है और अगर आपकी कुंडली में शुक्र ग्रह सही स्थिति में विराजमान हैं तो आपको जीवन में प्यार अवश्य मिल सकता है।
  • चंद्रमा आपकी कल्पनाशीलता को बढ़ाता है और आपको जीवन में किसी साथी की जरूरत महसूस कराता है। ये आपके मन पर नियंत्रण रखता है, जो कि प्रेम के लिए अत्यंत आवश्यक है ।
  • मंगल ऊर्जा प्रदान करने वाला ग्रह है और जीवन में किसी भी काम को करने के लिए हमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जब आप किसी को पसंद करते हैं तो आपके लिये ये जरूरी है कि आप उनसे अपने दिल की बात कहें। ये साहस आपको मंगल ग्रह ही प्रदान करता है।
  • कुंडली का पंचमभाव हमारी भाव भंगिमा और हमारे रुझान को बताता है। ये हमारी बुद्धि और विवेक का भाव भी है तो यहीं से हमारे प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिलती है। अगर आपका प्रेम भाव अर्थात पंचमभाव शुभ ग्रहों के प्रभाव में है तो आपके जीवन में प्रेम की उपस्थिति अवश्य होगी।

इस तरह ये कहा जा सकता है कि कुंडली में शुक्र, चंद्रमा, मंगल और पंचम भाव और पंचमेश अगर अच्छी और शुभ स्थिति का निर्माण कर रहे हैं तो इन ग्रहों की महादशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा (Mahadasha, Antardasha and Pratyantar Dasha) के दौरान व्यक्ति के जीवन में प्रेम का पदार्पण होगा। उसके जीवन में कोई खास व्यक्ति दस्तक देगा, जो बहुत जल्दी उसका अपना बन जायेगा। इसी आधार पर कुंडली में प्रेम योग का निर्माण होता है।

कुंडली में शुक्र चंद्रमा और मंगल से संबंधित दशायें अनुकूल स्थिति में आती हैं तो व्यक्ति के जीवन में प्रेम आता है। इन ग्रहों के कारण ही प्रेम परवान चढ़ता है और आप किसी को दिल से चाहने लगते हैं। अगर वैदिक ज्योतिष की बात करें तो ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को और साथ में चंद्र देव को स्त्री संज्ञक माना गया है जबकि मंगल देव को पुरुष ग्रह की संज्ञा दी गयी है। शुक्र और मंगल अगर कुंडली में एक साथ स्थित हो या एक दूसरे के नक्षत्र में स्थित हों या फिर एक दूसरे से किसी भी प्रकार का संबंध बना रहे हों तो जब इन ग्रहों की दशायें कुंडली में आती हैं तो जातक को प्रेम होता है। 

  • शुक्र ग्रह अनुकूल होने पर व्यक्ति को अपने साथी के प्रति आकर्षण भी महसूस होता है और मंगल के साथ होने के कारण भोग, विलास और आनंद आदि में उसे काफी अच्छा महसूस होता है। पंचम भाव का स्वामी भी यदि अच्छी स्थिति में है तो उसकी दशा और अंतर्दशा में जातक को प्यार होता है और यदि पंचम भाव का संबंध सप्तम भाव से बन जाए तो व्यक्ति लंबे समय तक उस रिश्ते में रह सकता है और समय आने पर उस व्यक्ति से विवाह करके सारी जिंदगी उसके साथ रहने का संकल्प भी ले सकता है। यदि शुक्र ग्रह पंचम भाव में हो अथवा पंचम भाव पर उसकी दृष्टि हो तो जातक को जीवन में प्रेम मिलने की अच्छी संभावनाएं होती हैं। इसके अतिरिक्त शुक्र और चंद्रमा एक दूसरे के साथ ही युति सम्बन्ध में हों अथवा उनके बीच राशि परिवर्तन हो अथवा दृष्टि संबंध में हो तो भी इनकी दशायें प्यार की कोमल भावनाओं को उत्पन्न करके उन्हें आगे बढ़ाने वाली होते हैं।
  • कुंडली में पंचम भाव और एकादश भावों के स्वामियों का आपस में अच्छा संबंध होना प्रेम जीवन में सफलता का परिचायक होता है और जब इनकी दशाएं आती है तो व्यक्ति के जीवन में प्यार की बहार लौट आती है।
  • आपका दिल टूटेगा या उस को सुकून मिलेगा। जिस प्रकार शुक्र और मंगल की परिस्थिति जीवन में प्रेम और आकर्षण को बढ़ाने वाली मानी जाती है लेकिन अगर उसके ऊपर शनि ग्रह का प्रभाव आ जाये या केतु ग्रह की स्थिति का निर्माण हो तो जातक के प्रेम जीवन में समस्यायें आ जाती हैं। उन दोनों के बीच लड़ाई झगड़े होना, यहां तक कि रिश्ता टूटने की नौबत भी आ जाती है।

इसके अतिरिक्त कुंडली में शुक्र और चंद्रमा की स्थिति भी प्रेम योग का निर्माण करती है लेकिन अगर इनके साथ शनि देव स्थित हो जायें या इन पर शनि ग्रह की दृष्टि हो तो ये भी प्रेम योग को दूषित कर देती है क्योंकि चंद्रमा का शनि के साथ मिलन विष योग बनाता है और शुक्र के साथ शनि की स्थिति साथी से वियोग को दर्शाती है।

कुंडली में प्रेम विवाह के योग

ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत ये पता लग जाता है कि किसी जातक का विवाह प्रेम विवाह (love marriage) होगा या पारंपरिक विवाह (Traditional Marriage)। ग्रहों का परस्पर संयोग इस बात की ओर इशारा स्पष्ट रूप से दे देता है। विवाह योग्य उम्र में आपकी कौन से ग्रहों की दशायें चल रही हैं, वे भी इस बात की ओर इशारा करती हैं कि आपकी लव मैरिज होगी या फिर अरेंज मैरिज।

  • कुंडली का सप्तम भाव लंबी चलने वाली साझेदारी और विवाह का भाव भी माना जाता है। अगर कुंडली के पंचम भाव और सप्तम भाव के मध्य आपसी संबंध बन जाये तो व्यक्ति को प्रेम विवाह करने में आसानी होती है। इसके अतिरिक्त पंचम भाव का स्वामी यदि सप्तम भाव में स्थित हो अथवा सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तो भी प्रेम विवाह होना संभव हो सकता है।
  • कुंडली में राहु और शुक्र की एक साथ उपस्थिति होना विशेष रुप से पंचम, एकादश या सप्तम भाव में होना प्रेम विवाह का एक और साफ इशारा होता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार मंगल और शुक्र का लग्न अथवा सप्तम में बैठना भी प्रेम विवाह को जन्म दे सकता है।

  • यदि कुंडली का पंचम भाव और सप्तम भाव बहुत अच्छे से संभला हुआ है अर्थात उन पर किसी भी पाप ग्रह या अशुभ ग्रह का प्रभाव नहीं है और इन भावों पर शुक्र और चंद्रमा जैसे ग्रहों की स्थिति है तथा मंगल उसमें उत्प्रेरक का काम कर रहा है तो प्रेम विवाह अवश्य ही हो जाता है।
  • शुक्र और चंद्रमा का एक साथ बैठना या एक दूसरे को दृष्टि देना या एक दूसरे से राशि परिवर्तन में होना भी प्रेम विवाह का कारण बन जाता है।
  • इसके अतिरिक्त प्रेम का मुख्य कारक शुक्र ग्रह होने के कारण अगर शुक्र ग्रह का संबंध जातक की कुंडली में उसके लग्न भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव अथवा एकादश भाव से हो जाये तो व्यक्ति प्रेम की भावना से युक्त होता है और प्रेम विवाह की ओर अग्रसर होता है।
  • कुंडली के पंचम भाव का संबंध यदि नवम भाव से हो तो भी प्रेम विवाह की संभावना बढ़ जाती है और ये माना जाता है कि इन दोनों व्यक्तियों के मध्य पूर्व जन्म का प्रेम ऋण बकाया होने के कारण ये वर्तमान जीवन में प्रेमी प्रेमिका बन कर जन्म लेते हैं और एक दूसरे से प्रेम विवाह करके सदा सदा के लिए एक दूसरे के हो जाते हैं।

इस तरह हम कह सकते हैं कि कुंडली के लग्न भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव तथा एकादश भाव पर शुक्र, चंद्रमा और मंगल का प्रभाव जातक को प्रेम विवाह की दिशा में लेकर जाता है।  शुक्र और मंगल की युति आकर्षण के बाद प्रेम को बढ़ाती है। जहां मंगल ऊर्जा देता है, वहीं शुक्र प्यार की भावना को बढ़ावा देता है। इस तरह जातक और जातिका एक दूसरे से परस्पर शारीरिक आकर्षण (Physical attraction) में बंध कर प्रेम विवाह की ओर अग्रसर हो जाते हैं।

  • अगर कुंडली के लग्न भाव के स्वामी अर्थात लग्न का संबंध पंचम भाव से हो और पंचम भाव का स्वामी सप्तम भाव से संबंध बनाये तो प्रेम विवाह होने की अच्छी संभावना बनती है और वो काफी लंबे समय तक चलता भी है। अगर शुक्र और मंगल की युति शुक्र की राशि में हो तो भी प्रेम विवाह संभव हो सकता है।
  • यदि शुक्र ग्रह और चन्द्रमा पंचमेश व सप्तमेश होकर एक दूसरे के भाव में स्थित हों और लग्न से संबंध बनाएं तो लग्न और त्रिकोण के भाव का संबंध होने पर भी व्यक्ति का प्रेम विवाह होता है।
  • अगर जन्म कुंडली में सप्तम भाव का स्वामी कमजोर अवस्था में है और अगर वह अस्त है अथवा नवांश कुंडली में वो नीच राशि में स्थित है तो ऐसा भी देखा जाता है कि व्यक्ति अपने कुल से निम्न कुल में विवाह करता है।
  • पंचम भाव और सप्तम भाव के स्वामी अगर पंचम भाव, एकादश भाव, लग्न भाव या सप्तम भाव में युति कर रहे हों तो ये भी प्रेम संबंधों को मजबूती देता है और प्रेम विवाह की स्थिति बना देता है। इस स्थिति में जातक का प्रेम विवाह लंबे समय तक चलता है।
  • यदि शुक्र पंचम भाव को देख रहा हो अथवा चंद्रमा पर शुक्र की दृष्टि हो तो ऐसा प्यार चुपके चुपके शुरू होता है और फिर धीरे-धीरे परवान चढ़ता है।
  • पंचम भाव प्रेम और भावनाओं का भाव है तो एकादश भाव महत्वाकांक्षा और उनकी पूर्ति का भाव है। यदि पंचमेश और एकादशेश एक साथ कुंडली में संयुक्त हों तो प्रबल प्रेम योग बनता है।
  • अगर राहु का संबंध पंचम या सप्तम भाव से हो अथवा वह शुक्र से संयुक्त हो तो प्रेम विवाह की स्थिति का निर्माण करता है। ऐसा विवाह अंतर्जातीय विवाह हो सकता है।
  • यदि पंचम अथवा सप्तम भाव में स्वराशि का मंगल शुक्र के साथ स्थित हो तो प्रेम को विवाह के रूप में बदलने में मदद करता है लेकिन विवाह के बाद ज्यादा लंबे समय तक साथ देने में समस्या आती है। 
  • अगर कुंडली में प्रेम विवाह का योग हो लेकिन शुक्र ग्रह अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हो अथवा प्रबल पाप कर्तरी योग में स्थित हो तो प्रेम विवाह होने में समस्यायें आती हैं अथवा विवाह होने के उपरांत भी विवाह चलने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
  • अगर उपरोक्त में से कोई भी प्रेम विवाह का योग कुंडली में बना हुआ है लेकिन सप्तम भाव पाप कर्तरी योग में अथवा अशुभ ग्रहों की दृष्टि या संबंध से युक्त है तो प्रेम विवाह में अत्यधिक समस्यायें आती हैं और विवाह बड़े विलंब से होता है। विवाह होने के बाद भी जातक जातिका को उस विवाह को चलाने के लिए बहुत प्रयास करने पड़ते हैं।
  • यदि जातक की कुंडली में पंचम भाव का स्वामी अष्टम भाव में जाकर नीच राशि में चला जाये तो व्यक्ति को अपने पूर्व जन्म के कर्मों के कारण प्रेम संबंधों में धोखा अथवा समस्या होती है और प्रेम विवाह हो नहीं पाता है। यदि कुंडली में अन्य योगों के कारण प्रेम विवाह संभव हो भी जाये तो जातक को जीवनसाथी से सुख नहीं मिलता है।
  • किसी जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह अर्थात प्रेम का कारक ग्रह कुंडली के लग्न भाव से छठे भाव में, आठवें भाव में अथवा बारहवें भाव में हो तो प्रेम की संभावनायें तो हो जाती हैं लेकिन प्रेम विवाह नहीं हो पाता है। यदि किसी कारणवश प्रेम हो भी जाए तो प्रेम विवाह के बाद भी समस्यायें बनी रहती हैं।
  • अगर किसी जातक की कुंडली में पंचम भाव का स्वामी और सप्तम भाव का स्वामी छठे भाव, आठवें भाव या बारहवें भाव में बैठ जायें और उन पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तथा शुभ ग्रह की कोई दृष्टि अच्छा संबंध ना हो तो लव लाइफ में बाधा आती है। अर्थात प्रेम संबंधों में टूटन आ सकती है और उन्हें जीवन में अपने प्यार की कुर्बानी देनी पड़ सकती है।

कुंडली में प्रेम योग को मजबूत बनाने के उपाय

अगर आपकी कुंडली में प्रेम योग कमजोर है या आपको प्रेम विवाह करने में समस्या आ रही है या फिर आप जिन्हें प्यार करते हैं उनसे आप की नहीं बनती तो आपको कुछ विशेष उपाय करने चाहिए, जिनसे आप के मध्य प्रेम की वृद्धि हो और आप प्रेम विवाह करने में भी सफल हो जायें।

  • अपनी कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति मजबूत करें। इसके लिए ये जानकर कि शुक्र कुंडली के लिए शुभ अथवा अशुभ ग्रह है, उसका दान और मंत्र जाप किया जा सकता है।
  • अपनी कुंडली के पंचम भाव के स्वामी को जानकर उस को मजबूत करने से भी आपको प्रेम संबंधों में सफलता मिल सकती है।
  • पंचम भाव के साथ साथ सप्तम भाव के स्वामी को मजबूती देने से आपका प्रेम विवाह संभव हो सकता है।
  • सोमवार के दिन शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती माता के मध्य कलावे से गठबंधन करके शीघ्र विवाह की कामना करें तो मनपसंद जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।
  • कन्याओं को मनपसंद जीवनसाथी प्राप्त करने के लिए मंगला गौरी व्रत करना चाहिए।
  • राधा कृष्ण की उपासना करने से भी प्रेम संबंध मजबूत होते हैं। 
  • मां कात्यायनी का ध्यान करें उनके बीज़ मंत्रों का पाठ करते हुए ताम्रपत्र पर कात्यायनी यंत्र (Katyayani Yantra) की पूजा अर्चना करें।
  • इसके अतिरिक्त किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी कुंडली दिखाकर उनके द्वारा बताये गये उपाय करने से भी आप अपने प्रेम जीवन को सफल बना सकते हैं।

साभार – ज्योतिषाचार्य पंडित इष्टदेव शुक्ल

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