सेना को मिला पहला LCH ‘प्रचंड’, कई खासियतों से है लैस

न्यूज डेस्क (दिगान्त बरूआ): केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई में हुए भव्य समारोह में भारत में बने हल्के लड़ाकू (LCH) हेलीकॉप्टर को आज (3 अक्टूबर 2022) भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया। एलसीएच सबसे जटिल रूप से डिजाइन किये गये लड़ाकू हेलीकॉप्टर में से एक है। स्वदेश निर्मित हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर (Light Combat Helicopter) के पहले बेड़े को आज भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) में शामिल किया गया। इसकी जरूरत साल 1999 में कारगिल जंग (Kargil War) के दौरान महसूस हुई थी, जहां सेना के हाई एल्टीट्यूड पर लड़ने वाले हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की दरकार थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Defence Minister Rajnath Singh) ने इस एलसीएच को ‘प्रचंड’ नाम दिया है

दिग्गज एयरोस्पेस कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL- Hindustan Aeronautics Limited) ने इस 5.8-टन वाले ट्विन-इंजन गनशिप हेलिकॉप्टर को हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों, 20 मिमी माउंटेट गन, रॉकेट सिस्टम और अन्य हथियारों से लैस किया है। जोधपुर वायु सेना स्टेशन (Jodhpur Air Force Station) में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी (Chief of Air Staff Air Chief Marshal VR Choudhary) और अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की मौजूदगी में चार हेलीकॉप्टरों वाले बेड़े को भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया।

मौके पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि, “ये हमारे लिये बड़ा मौका है, जो दिखाता है कि रक्षा उत्पादन (Defence Production) में भारत किस रफ्तार के साथ स्वदेशी तकनीक (Indigenous Technology) विकसित करते हुए आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।”

बता दे कि एलसीएच ऊंचाई वाले इलाके में दुश्मन की पैदल सेना (Infantry), टैंक, बख्तरबंद बेड़े (Armored Fleet), बंकर, ड्रोन और अहम ठिकानों को नेस्तनाबूत करने में पूरी तरह कारगर है। दुर्गम हिमालयी इलाकों में इसकी हथियार और ईंधन जाने की क्षमता के साथ इसकी क्षमताओं को कई अलग-अलग माहौल में अच्छी तरह जांचा-परखा गया है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है स्टेल्थ एंड ड्रिस्टक्शन ऑफ एनिमी एयर डिफेंस यानि कि जंगी मैदान में ये छिपकर दुश्मन की हवाई रक्षा प्रणाली का आसानी से खात्मा कर सकता है।

इसे बनाने में स्टेट ऑफ द आर्ट टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है, जिसकी वज़ह से ये विजुअल रेंज में कम ही आ पाता है। ये रडार और इंफ्रारेड ट्रैकिंग (Radar and Infrared Tracking) को भी मात दे सकता है। इसके बेहतर तकनीकी इंटीग्रेशन इसे अगले 3 से 4 दशकों तक युद्ध मैदान में इसकी जंगी तैनाती (War Deployment) को कारगर बनाये रखेगें। इसके साथ ही हालातों के मुताबिक इसकी तकनीक में बदलाव किये जाने की पर्याप्त संभावनाओं को बनाये रखा गया है।

चूंकि एलसीएच भारत में बना है, ये अंतरराष्ट्रीय आयात और विदेशों के साथ किये गये रक्षा सौदों (Defence Deals) पर निर्भरता को कम करेगा। आयात निर्भरता को कम करने के अलावा इसकी खास विशेषतायें और डिजाइन इसे एक्सपोर्ट लिस्ट में उभरता सितारा बना सकती हैं।

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