Hathras vs Karauli: हाथरस की मजबूरी और करौली से दूरी क्या है कांग्रेसी मायने?

  • Hathras vs Karauli: क्या है कांग्रेसी मायने?
  • करौली में मामले कांग्रेस का मानवीय पक्ष कहां सो रहा है?
  • कांग्रेसी कार्यकर्ता करौली जाने के लिए सड़कों पर क्यों नहीं उतर रहे?

न्यूज़ डेस्क (विश्वरूप प्रियदर्शी): राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने सियासी नज़रिये से हाथरस (Hathras) कांड को खूब भुनाया। ज़मीन से लेकर डिजिटल स्पेस हर जगह कांग्रेस ने जमकर योगी सरकार को घेरा। सूबे की शांति-व्यवस्था को लेकर कई बड़े सवालिया निशान लगाये। सांत्वना देने के नाम पर जमकर बवाल काटा और बूलगढ़ी गांव का रूख़ किया। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस (Congress) को अच्छी खासी मीडिया कवरेज़ मिली। सोशल मीडिया (social media) पर एक खास तबके ने राय रखते हुए कहा कि अगर इसी तर्ज पर राहुल गांधी आगे बढ़ते रहे तो उनकी सियासी छवि को बड़ा फायदा होगा।

कुछ हद तक ये हुआ भी। दोनों पीड़िता के घर पहुँचे परिजनों को ढाढ़स बंधाया। इस मौके पर खिंची गयी तस्वीरों ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। दूसरी ओर इसी बीच कांग्रेस शासित राजस्थान (Rajasthan) के करौली (Karauli) में स्थानीय दबंगों ने एक पुजारी की ज़मीन 90 फीसदी अवैध कब़्जा कर लिया। विरोध जताने पर पुजारी बाबूलाल वैष्णव (Pujari Babulal Vaishnav) को पेट्रोल ज़िदा जला दिया गया। मामला नेशनल मीडिया में आता है। देशभर में इसकी घोर निंदा की जाती है लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की इस मामले पर चुप्पी बहुत खलती है। दोनों की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया अभी तक सामने नहीं आयी।

खानापूर्ति के लिए सीएम अशोक गहलोत (CM Ashok Gahlot) ट्विट कर लिखते है कि सपोटरा, करौली में बाबूलाल वैष्णव जी की हत्या अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण एवं निंदनीय है, सभ्य समाज में ऐसे कृत्य का कोई स्थान नहीं है। प्रदेश सरकार इस दुखद समय में शोकाकुल परिजनों के साथ है। घटना के प्रमुख आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है एवं कार्रवाई जारी है। दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

हाथरस मामले में जितनी कांग्रेसी सक्रियता सामने आयी थी, वो इस घटना पर कहीं दबी छिपी रही। जिस तरह हाथरस मामले में दोनों ने योगी सरकार को खरी खोटी सुनाई थी। अशोक गहलोत के लिए दोनों को चुप्पी साधनी पड़ी। आखिर क्यूं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी करौली जाने के लिए उतावले नहीं दिखे। क्या हाथरस के बूलगढ़ी जाकर मृतका के परिवार को सांत्वना देना पॉलिटिकल ड्रामा था। अगर वो सच में मानवता के तहत किया गया था तो करौली में मामले कांग्रेस का मानवीय पक्ष कहां सो रहा है? कांग्रेसी कार्यकर्ता राजस्थान के करौली जाने के लिए सड़कों पर क्यों नहीं उतर रहे? स्पष्ट तौर पर ये खालिस सियासत है योगी सरकार की आलोचना करना कांग्रेस के लिए आसान है लेकिन अशोक गहलोत सरकार की निंदा करके कांग्रेस अपना दामन दाग से बचा रही है लेकिन उनके दामन पर दोमुंही राजनीति करने का धब्बा लग चुका है। करौली के पीड़ित परिवार को मुआवज़ा और नौकरी देकर ये धब्बा धुलने वाला नहीं है। इन दोनों घटनाओं ने कांग्रेस की सिलेक्टिव एप्रोज का पर्दाफाश कर दिया है।

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