Geomagnetic storm: धरती की ओर तेजी से बढ़ रहा है सौर तूफान, मोबाइल और इंटरनेट सेवायें हो सकती है बाधित

नई दिल्ली (गंधर्विका वत्स): जानकारों के मुताबिक आज (13 जुलाई) या बुधवार को भू-चुंबकीय तूफान (Geomagnetic storm) के पृथ्वी के वायुमंडल से टकराने की पुख़्ता संभावना है। रिपोर्ट्स के मुताबिक ये तूफान एक लाख मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली सौर हवाओं का नतीजा है और इसके जल्द ही कभी भी पृथ्वी से टकराने की आशंका है।

अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सूर्य के वातावरण में एक छेद खुल गया है, जिससे आवेशित कणों और तेज गति वाली सौर हवाओं की एक धारा बन गयी है। तूफान पृथ्वी की दिशा की ओर तेजी बढ़ रहा है और 13 जुलाई से 14 जुलाई (मंगलवार और बुधवार) के बीच पृथ्वी के कुछ हिस्सों में इसके दस्तक देने की उम्मीद है।

विशेषज्ञों को डर है कि तेज हवायें पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर में एक भू-चुंबकीय तूफान को ट्रिगर (पैदा) कर सकती हैं। जिससे अंतरिक्ष में पृथ्वी की ऊपरी पहुंच शामिल है और इससे उत्तर और दक्षिण अक्षांशीय इलाकों में औरोरा (अंतरिक्षीय प्रकाश के मनभावन नज़ारें) का उदय हो सकता है।

क्या है Geomagnetic storm?

भू-चुंबकीय तूफान (Geomagnetic storm) मूल रूप से पृथ्वी के अंतरिक्षीय वातावरण में प्रवेश करने वाली सौर हवाओं से पैदा होता है, जिससे शक्तिशाली ऊर्जायें तरंगों के रूप में तेजी से बहती है। जिसके कारण पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर में कई वातावरणीय और तकनीकी गड़बड़ियां पैदा होती है।

नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के अनुमानों के मुताबिक सौर हवायें एक मिलियन मील प्रति घंटे की गति से चलने के लिये जानी जाती हैं। मौजूदा वक़्त में हवायें धरती की ओर 16 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आगे बढ़ रही है, माना जा रहा है कि इसकी रफ़्तार में और भी इज़ाफा हो सकता है।

पिछली रिपोर्टों के मुताबिक नेशनल वेदर सर्विस के स्पेस वेदर प्रेडिक्शन सेंटर ने इससे पहले जून में जी -1 श्रेणी के भू-चुंबकीय तूफान के बारे में भविष्यवाणी की थी। जो तेज सौर हवाओं के नतीज़न बना था।

इस बीच सूर्य ने हाल ही के बीते चार सालों के दौरान सबसे बड़े सौर फ्लेयर्स को बाहर की ओर निकाला है, जो कि धरती की ओर बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इससे अटलांटिक पर एक रेडियो ब्लैकआउट हो गया था। एक्स-क्लास सोलर फ्लेयर ने पृथ्वी के वायुमंडल के शीर्ष को आयनित (ionized) किया, जिससे अटलांटिक महासागर के ऊपर एक शॉर्टवेव रेडियो ब्लैकआउट (shortwave radio blackout) हो गया। इससे जीपीएस सिग्नल, ओवर द होराइजन राडार, फेज मॉड्यूलेशन, मोबाइल सिग्नल और रेडियो फ्रिक्वेंसी की कार्य प्रणाली में बाधा पहुँची थी।

Leave a comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More