Gandhi Jayanti 2020: अहिंसा और स्वावलंबन का मूर्त रूप महात्मा गांधी

न्यूज़ डेस्क (शौर्य यादव): आज देशभर में गांधी जयन्ती (Gandhi Jayanti) मनाई जा रही है। एक दफा महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने बापू की सादगी और उनके काम को देखते हुए कहा था कि- लोगों को यकीन करना मुश्किल होगा कि कभी धरती पर ऐसा भी कोई इंसान आया होगा। मोहन दास करमचंद गांधी जिन्हें दुनिया बापू और महात्मा गांधी के नाम से जानती है। साबरमती के संत ने अहिंसा और क्षमा के रास्ते पर चलकर ब्रितानी साम्राज्य के कभी ना डूबने वाले सूरज को अस्तगामी कर दिया। पोरबंदर, साबरमती, दक्षिण अफ्रीका, दिल्ली, दांडी और चंपारण जहां जहां भी उन्होनें कदम रखा इतिहास की स्वर्णिम कलम वहां चलती गयी। आजादी हासिल करने के लिए उन्होनें वो रास्ता चुना जिसे तकरीबन नामुमकिन माना जाता था।

खास बात ये भी है कि उनके जन्मदिन के मौके पर पूरी दुनिया में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है। आततायी को किसी तरह सत्य, अहिंसा, प्रेम और स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर झुकाया जाता है, ये कोई बापू से सीखे। उनके बताये रास्ते आज गांधीवाद के नाम से जाने जाते है। उन्हें महात्मा यूं ही नहीं कहा जाता है उन्होनें महात्मा का जीवन जीकर दिखाया। सत्य के मार्ग पर चलने के लिए सत्य के साथ उन्होनें प्रयोग किये। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा और नेल्सन मंडेला की प्रेरणा के स्रोत गांधी जी थे। राष्ट्रपिता के तौर पर उन्हें सबसे पहले सुभाषचन्द बोस ने पुकारा था। गांधी का दर्शन और सिद्धान्त समतामूलक समन्वयवादी था। ईश्वर अल्लाह तेरे नाम और वैष्णव जन तैणें कहिये, जै पीर पराई जाणे रे। इन दो पंक्तियों में सम्पूर्ण गांधी वंग्मय समाहित है।

खादी, डंडा, चश्मा, धोती और अहिंसा जीवन भर उनके साथ ऐसे जुड़े रहे कि सभी गांधी के पर्याय बन गये। भारत सहित विश्व इतिहास में गांधी ने अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनके कद का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी शवयात्रा में तकरीबन 10 लाख लोग एक साथ शामिल होकर चल रहे थे। करीब 15 लाख लोग टकटकी लगाये उनके आखिरी सफर के गवाह बने थे। 5 बार उन्हें शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया। साल 1930 के दौरान प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रिका टाइम्स मैगजीन ने उन्हें Man Of the Year की उपाधि से सम्मानित किया। देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उनके नाम पर सड़कें बनी हुई है।

भारत में रामराज्य की परिकल्पना ज्ञात इतिहास में सबसे पहले बापू ने ही की थी। गांधी और गांधीवाद का विस्तार इतना व्यापक है कि उनके धुरविरोधी भी उनके सामने नतमस्तक हो जाते थे।

“दे दी हमें आजादी बिना खड्ग, बिना ढाल साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल”

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