Hanuman Chalisa: जो सत् बार पाठ करे कोई, छूटही बंदी महासुख होई

जो हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) का 100 बार पाठ कर लेता है वो बंधनों से मुक्त हो जाता है। साथ साधक महासुख को प्राप्त करता है लेकिन ये सहज ही संभव नहीं होता है। भौतिक अर्थ इसका भले ही कुछ और हो लेकिन आध्यात्मिक रूप से यहाँ पर बंधन का अर्थ आतंरिक तथा शारीरिक (Internal And Physical Bondage) दोनों बंधन से है तथा महासुख अर्थात् शांत चित की प्राप्ति होना है। इन दोनों में से किसी स्थिति की प्राप्ति के लिए साधक को एक निश्चित प्रक्रिया को करना अनिवार्य है। एक निश्चित प्रक्रिया ही एक निश्चित परिणाम की प्राप्ति को संभव बना सकती है।

 उसका उल्लेख यहाँ पर किया जा रहा है लेकिन उससे पहले इससे सबंधित कुछ अनिवार्य तथ्य भी जानने योग्य है।

हनुमान चालीसा का ये प्रयोग सकाम प्रयोग तथा निष्काम प्रकार दोनों रूप में होता है। इसलिए साधक को अनुष्ठान करने से पूर्व अपनी कामना का संकल्प लेना आवश्यक है। अगर कोई विशेष इच्छा के लिए प्रयोग किया जा रहा हो तो साधक को संकल्प लेना चाहिए कि “ मैं अमुक नाम का साधक ये प्रयोग __कार्य के लिए कर रहा हूँ , भगवान हनुमान जी मुझे इस हेतु सफलता के लिए शक्ति तथा आशीर्वाद प्रदान करे”

अगर साधक निष्काम भाव (Selfless Spirit) से ये प्रयोग कर रहा है तो संकल्प लेना आवश्यक नहीं है।

साधक अगर सकाम रूप से साधना कर रहा है तो साधक को अपने सामने भगवान हनुमान का वीर भाव से युक्त चित्र स्थापित करना चाहिए अर्थात जिसमे वो पहाड़ को उठा कर ले जा रहे हो या असुरों का नाश कर रहे हो लेकिन अगर निष्काम साधना करनी हो तो साधक को अपने सामने दास भाव युक्त हनुमान का चित्र स्थापित करना चाहिये अर्थात जिसमे वो ध्यान मग्न हो या फिर श्रीराम के चरणों में बैठे हुए हो।

साधक को ये क्रम एकांत में करना चाहिए, अगर साधक अपने कमरे में ये क्रम कर रहा हो तो जाप के समय उसके साथ कोई और दूसरा व्यक्ति नहीं होना चाहिए।

स्त्री साधिका हनुमान चालीसा या साधना नहीं कर सकती ये मात्र मिथ्या धारणा है। कोई भी साधिका हनुमान साधना या प्रयोग सम्प्पन कर सकती है। रजस्वला समय में ये प्रयोग या कोई साधना नहीं की जा सकती है। साधक साधिकाओ को ये प्रयोग करने से एक दिन पूर्व, प्रयोग के दिन तथा प्रयोग के दूसरे दिन अर्थात कुल 3 दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

सकाम उपासना में वस्त्र लाल रहे निष्काम में भगवे रंग के वस्त्रों का प्रयोग होता है। दोनों ही कार्य में दिशा उत्तर रहे। साधक को भोग में गुड़ और उबले हुवे चने अर्पित करने चाहिए। कोई भी फल अर्पित किया जा सकता है। साधक दीपक तेल या घी का लगा सकता है। साधक को आक के पुष्प या लाल रंग के पुष्प समर्पित करने चाहिए।

ये प्रयोग साधक किसी भी मंगलवार की रात्रि को करे और समय 9 बजे के बाद का रहे। सर्व प्रथम साधक स्नान आदि से निवृत हो कर वस्त्र धारण कर के लाल आसान पर बैठ जाये। साधक अपने पास ही आक के 100 पुष्प रख ले। अगर किसी भी तरह से ये संभव न हो तो साधक कोई भी लाल रंग के 100 पुष्प अपने पास रख ले। अपने सामने किसी बाजोट पर या पूजा स्थान में लाल वस्त्र बिछा कर उस पर हनुमानजी का चित्र या यन्त्र या विग्रह को स्थापित करे।

उसके बाद दीपक जलाये। साधक गुरु पूजन गुरु मंत्र का जाप कर हनुमानजी का सामान्य पूजन करे। इस क्रिया के बाद साधक “हं” बीजमंत्र का उच्चारण कुछ देर करे तथा उसके बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम करे। प्राणायाम के बाद साधक हाथ में जल ले कर संकल्प करे तथा अपनी मनोकामना बोले। इसके बाद साधक “रां रामाय नमः ” का यथा संभव जाप करे।

जाप के बाद साधक अपनी तीनों नाड़ी अर्थात इडा, पिंगला तथा सुषुम्ना में श्री हनुमानजी को स्थापित मान कर उनका ध्यान करे तथा हनुमान चालीसा का जाप शुरू कर दे। साधक को उसी रात्रि में 100 बार पाठ करना है। हर एक बार पाठ पूर्ण होने पर एक पुष्प हनुमानजी के यंत्र/चित्र/विग्रह को समर्पित करे। इस तरह 100 बार पाठ करने पर 100 पुष्प समर्पित करने चाहिये। 100 पाठ पूरे होने पर साधक वापस ‘हं’ बीजमंत्र का थोड़ी देर उच्चारण करे और जाप को हनुमानजी के चरणों में समर्पित कर दे। इस प्रकार ये प्रयोग पूर्ण होता है। साधक दूसरे दिन पुष्पों का विसर्जन कर दे।

साभार – पंडित अनिल कृष्ण शास्त्री

Leave a comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More