Antibiotics: बेतहाशा इस्तेमाल से बेअसर होते एंटीबायोटिक्स

हेल्थ डेस्क (यामिनी गजपति): जिस तरह से हम लोग लगातार एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) ले रहे हैं, वो अभी के लिए फायदेमंद हो सकता है लेकिन ये फायदा आगे चलकर सबसे बड़ा नुकसान साबित होने वाला है। क्योंकि जब आप गंभीर रूप से बीमार होते हैं तो एंटीबायोटिक्स का आप पर कोई असर नहीं होगा। आईसीएमआर (ICMR) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आईसीयू में भर्ती कुछ मरीजों पर अब एंटीबायोटिक दवाओं का कोई असर नहीं हो रहा है और ये अपने आप में बड़ी चिंता का सब़ब है।

क्या आप इस बात पर विश्वास कर सकते हैं कि कई दशक पहले लोग मामूली खरोंच से मर जाते थे? लेकिन ये सच है। क्योंकि उस समय एंटीबायोटिक्स नहीं थे और मामूली घाव और खरोंच का इलाज नहीं किया जा सकता था। इस वजह से ये घाव धीरे-धीरे जानलेवा बन जाता था।

साल 1928 में अचानक से डॉ. एलेक्जेंडर फ्लेमिंग (Dr. Alexander Fleming) की लैब से पेनिसिलिन (Penicillin) नाम के एंटीबायोटिक का जन्म हुआ। ये दुनिया का पहला एंटीबायोटिक था। इस चमत्कारी औषधि की वजह से इंसानों की उम्र कई सालों तक बढ़ गयी। एंटीबायोटिक्स धीरे-धीरे हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गये। लेकिन आज हम बिना सोचे समझे एंटीबायोटिक्स ले रहे हैं। भारत में लोग धड़ल्ले से गूगल सर्च कर बिना प्रिस्क्रिप्शन के ही कैमिस्ट से एंटीबायोटिक खरीदकर इस्तेमाल कर रहे हैं जो कि बेहद खतरनाक है।

आम भाषा में एंटीबायोटिक का मतलब ऐसी दवाओं से होता हैं, जो बैक्टीरिया के खिलाफ काम करती हैं। लेकिन अब हमारे शरीर पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होने लगा है या ये बैक्टीरिया पर काबू पाने या उन्हें मारने में उतनी कारगर नहीं रही है।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानि ICMR की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी आशंका है कि देश में अब कई मरीज ‘कार्बेपेनम’ दवा से प्रभावित नहीं होंगे। रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादा एंटीबायोटिक्स खाने की वज़ह से ऐसा हो रहा है। कार्बापेनम (Carbapenem) एक ताकतवर एंटीबायोटिक दवा है, जो आईसीयू में भर्ती निमोनिया और सेप्टीसीमिया (Pneumonia And Septicemia) के रोगियों को दी जाती है। सेप्टिसीमिया ब्लड इंफेक्शन है। यानि इन दोनों बीमारियों के हालातों में अब तक जो दवा दी जाती थी, उसे देने का कोई फायदा नहीं होगा।

रिपोर्ट के मुताबिक निमोनिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाले खास तरह के एंटीबायोटिक का असर भी कम हुआ है। निमोनिया के खिलाफ इन एंटीबायोटिक दवाओं की कारगर क्षमता साल 2016 में 65 प्रतिशत थी, जो कि 2020 में घटकर 45 प्रतिशत और 2021 में 43 फीसदी पर आ गयी है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक रिसर्च में पाया गया है कि जिन बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक्स नियंत्रित या खत्म करने में सक्षम नहीं हैं, उनमें तेजी से काफी इज़ाफा हुआ है और अगर इसे वक़्त रहते ठीक नहीं किया गया तो ये आने वाले दिनों में महामारी को जन्म दे सकता है। इस रिपोर्ट में कई ऐसे बैक्टीरिया की पहचान की गयी है जिन पर एंटीबायोटिक्स असर नहीं कर रहे हैं।

यहां आपके लिये ये जानना भी जरूरी है कि गंभीर मरीज आईसीयू में भर्ती हैं। ऐसे में अगर एंटीबायोटिक्स काम न करें तो सवाल मरीजों की जिंदगी और मौत का हो जाता है।

दरअसल कोरोना महामारी के दौरान एंटीबायोटिक्स का खूब इस्तेमाल किया गया था। जरूरत न होने पर भी लोग एंटीबायोटिक्स खा लेते थे। सर्दी और फ्लू जैसे वायरल संक्रमण के बाद और उसके दौरान डॉक्टरों ने भी जमकर एंटीबायोटिक दवाएं दीं। नतीजा ये होता है कि जब एंटीबायोटिक्स की असल में जरूरत होती है, तो वो शरीर पर काम करना बंद कर देते हैं।

अब आपको द लैंसेट की रिपोर्ट देखनी चाहिये जो अनावश्यक रूप से या बिना चिकित्सकीय सलाह के एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल पर केंद्रित है। ये रिपोर्ट पिछले हफ्ते आयी थी और इसमें दी गयी जानकारी काफी चौंकाने वाली है।

सबसे बड़ी बात ये है कि ये रिपोर्ट कोरोना से पहले 2019 में भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल पर है। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में भारत में 507 करोड़ से ज्यादा एंटीबायोटिक डोज की खपत हुई। रिपोर्ट के अनुसार भारत में लोग बिना सोचे-समझे एंटीबायोटिक्स लेते हैं और इससे होने वाले नुकसान पर ध्यान नहीं देते।

भारत में कुल एंटीबायोटिक खपत का 75% हिस्सा सिर्फ 12 एंटीबायोटिक मॉलिक्यूल्स (Antibiotic Molecules) का है। यानि भारतीय इन 12 एंटीबायोटिक दवाओं का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक दवा एज़िथ्रोमाइसिन है। साल 2019 में देश में एज़िथ्रोमाइसिन (Azithromycin) 500 मिलीग्राम दवा का सबसे ज़्यादा सेवन किया गया। इसके बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक सेफिक्साइम (Cefixime) 200mg थी।

सबसे चिंताजनक बात ये है कि 47 फीसदी ऐसे एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिनके फॉर्मूलेशन को रेगुलेटरी अप्रूवल नहीं मिला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के पास एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर नज़र रखने और उसे रोकने के लिये मजबूत व्यवस्था नहीं है, इसलिए एंटीबायोटिक दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है।

गोलियों की तादाद के मामले में भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक दवाओं की खपत होती है। पिछले साल जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति एंटीबायोटिक के इस्तेमाल में पिछले दशक में यानि 2010 से 2020 तक 30 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है। जबकि पिछले एक दशक में कुल एंटीबायोटिक इस्तेमाल में 47.40 प्रतिशत की बढ़त हुई है।

साल 2000 और 2010 के बीच ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका में दुनिया में सबसे ज़्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बढ़ा है।

आज 77 साल बाद एलेक्जेंडर फ्लेमिंग की बात सही साबित हो रही है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरी दुनिया में हर साल लाखों लोगों की मौत एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (Antibiotic Resistance) की वजह से होती है। यानि संक्रमण होने पर जब कोई एंटीबायोटिक दिया जाता है तो वो बिल्कुल भी काम नहीं करता है।

एक अध्ययन के मुताबिक साल 2019 में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण 1.2 मिलियन लोगों की मौत हुई। यानि एंटीबायोटिक दवा का उन पर बिल्कुल भी असर नहीं हुआ और जिस बीमारी से वो संक्रमित हुए थे उससे उनकी मौत हो गयी। ये आंकड़ा हर साल मलेरिया या एड्स (Malaria or AIDS) से मरने वालों की तादाद से ज्यादा है। साल 2050 तक प्रति वर्ष एंटीबायोटिक प्रतिरोध से मरने वालों की संख्या 10 मिलियन हो सकती है। इसमें भारत में हर साल 20 लाख लोगों की मौत हो सकती है।

कहा जाता है कि जिंदगी में बहुत अति करना हमेशा खतरनाक होता है। और अगर आप ज़्यादा दवा खाते समय ऐसा करते हैं तो सोचें कि आप अपनी जान को कितना खतरे में डाल रहे हैं। इसलिए एंटीबायोटिक लेने की अपनी आदत को खुद बदलें। जब भी कोई परेशानी हो तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें क्योंकि दवा कोई टॉफी नहीं होती, जिसे बिना समझे खा लिया जाये।

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