पितृपक्ष (Pitru Paksha) शुरू हो चुके है। बिना पित्तरों को प्रसन्न किया कोई काम सिद्ध नहीं होते। ऐसे में हम आपको पितृ पक्ष में करने वाले जाप करने वाले मंत्रों ओर स्तोत्र के बारे में बताने जा रहे है। जिन जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष है उन्हे ये मंत्र जाप ओर स्तोत्र पाठ जरूर करना चाहिए। इससे आप पर और आपके परिवार पर पितरों की कृपा हमेशा बनी रहेगी।
पितृ स्मरण मंत्र
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च |
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमोऽस्तुते ||
इस मंत्र का रोज सुबह शाम लगातार तीन -तीन बार जाप करने से पितृ खुश होते है। इस मंत्र का जाप हर रोज जब पूजा करे तो देव-देवी के पूजन के बाद जरुर करे।
पितृ मंत्र
ॐ सर्व पितृ मम मनः कामना सिद्ध कुरु कुरु स्वाहा।
इस मंत्र का जाप आप पितृपक्ष में अनुष्ठान (Ritual) कर सकते है। इसमें आप संकल्प लेकर इस मंत्र का जाप शुरू करे और अमावस्या के दिन गाय के शुद्ध देसी घी, तिल, गुड़ की आहुति के द्वारा दशांश हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोज (Brahmin Bhoj) करवाये। अगर आप हवन नहीं कर सकते तो दशांश जाप भी कर सकते है।
रूचि कृत पितृ स्तोत्र
रुचिरुवाच
अर्चितनाममूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसां |
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यतेजसां ||
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा |
सप्तर्षीणां तथान्येषां ताँ नमस्यामि कामदान ||
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा |
ताँ नमस्यामहं सर्वान पितृनप्सूदधावपि ||
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा |
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ||
देवर्षीणां जनितॄंश्च सर्वलोकनमस्कृतान |
अक्षय्यस्य सदा द्दातृन नमस्येहं कृताञ्जलिः ||
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च |
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ||
नमोगणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु |
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुसे ||
सोमाधारान पितृगणान योगमूर्त्तिधरांस्तथा |
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जागतामहम ||
अग्निरूपांस्तथैवान्यान नमस्यामि पितॄनहम |
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः ||
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः |
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिणः ||
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः |
नमो नमो नमस्ते में प्रसीदन्तु स्वधाभुजः ||
हिंदी में अनुवाद ओर अर्थ
रूचि की इस स्तुति करने पर पितर दसों दिशाओ में से प्रकाशित पुंज में से बाहर निकलकर प्रसन्न हुए। रूचि ने जो चन्दन-पुष्प अर्पण किये थे उसी को धारण कर पितर प्रकट हुए। तब रुचि ने फिर से पितरो को दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया। तब उसने पितरो को कहा कि ब्रह्माजी (Brahmaji) ने मुझे सृष्टि के विस्तार करने को कहा हैस इसलिए आप मुझे उत्तम श्रेष्ठ पत्नी प्राप्त हो ऐसा आशीर्वाद दो। जिससे दिव्यसंतान की उत्पत्ति (Origin of Divine Child) हो सके।
तब पितरो ने कहा यही समय तुम्हें उत्तम पत्नी की प्राप्ति होगी। उसके गर्भ से तुम्हे मनु संज्ञक उत्तम पुत्र की प्राप्ति होगी। तीनों लोको में वे तुम्हारे ही नाम से रौच्य नाम से प्रसिद्ध होगा।
पितरो ने कहा: जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करेंगे हम उसे मनोवांछित भोग और उत्तम फल प्रदान करेंगे। जो निरोगी रहना चाहता हो- धन-पुत्र को प्राप्त करना चाहता हो वो सदैव ये स्तुति करे इससे हम प्रसन्न होगें। ये स्तोत्र हमें प्रसन्न करनेवाला है। जो श्राद्ध में भोजन करनेवाले ब्राह्मण के सामने खड़े होकर भक्तिपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करेगा उसके वहां हम निश्चय ही उपस्थित होकर हमारे लिए किये हुए श्राद्ध को हम ग्रहण करेंगे।
जहां पर श्राद्ध में इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है, वहां हम लोगों को बारह वर्षों तक बने रहनी वाली तृप्ति प्राप्ति की समार्थ्यता प्राप्त होती है।
ये स्तोत्र हेमंत ऋतु में श्राद्ध के अवसर पर सुनाने से हमें बारह वर्षों तक तृप्ति प्रदान करता है, इसी प्रकार शिशिर ऋतु में हमें चौबीस वर्षों तक तृप्ति प्रदान करता है। वसंत ऋतु में हमें सोलह वर्षों तक तृप्ति प्रदान करता है। ग्रीष्मऋतु में भी सोलह वर्षों तक तृप्ति प्रदान करता है। वर्षाऋतु में किया हुआ ये स्तोत्र का पाठ हमें अक्षय तृप्ति प्रदान करता है।
शरत्काल में किया हुआ इसका पाठ हमें पंद्रह वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है। जिस घर में ये स्तोत्र लिखकर रखा जाता है। वहां हम श्राद्ध के समय में उपस्थित हो जाते है। श्राद्ध में ब्राह्मणो को भोजन करवाते समय इस स्तोत्र को अवश्य पढ़ना चाहिए ये हमें पुष्टि प्रदान करता है।
इस स्रोत का पाठ जातक को नित्य 15 दिनों तक करना चाहिये। इससे पितृ निश्चित रूप से प्रसन्न होते है और वंशजों को आशीर्वाद देते है।
अंत में एक साधारण सा उपाय हर रोज सुबह चांदी के पात्र में जल ओर दोनों तरह के तिल मिश्रित करके पीपल जी को पितृ गायत्री मंत्र का जाप करते हुए जल अर्पित करे।
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।